बाबाजी स्मृति दिवस: मृत्युंजय महावतार, जिन्होंने दिया था प्राचीन क्रिया योग के प्रसार का दायित्व
Mahavatar babaji किसी भी शताब्दी में बाबाजी कभी जनसाधारण के सामने प्रकट नहीं हुए। सृष्टि में एकमात्र शक्ति होते हुए भी चुपचाप अपना काम करते रहने वाले स्रष्टा की तरह ही बाबाजी भी विनम्र गुमनामी में अपना कार्य करते रहते हैं। योगी कथामृत में वर्णित ये शब्द हमें महावतार बाबाजी के कार्यों के विषय में जानने के लिए उत्सुक बनाते हैं।
By Jagran NewsEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Sun, 23 Jul 2023 11:09 AM (IST)
डा. मंजु लता गुप्ता । 'किसी भी शताब्दी में बाबाजी कभी जनसाधारण के सामने प्रकट नहीं हुए। सृष्टि में एकमात्र शक्ति होते हुए भी चुपचाप अपना काम करते रहने वाले स्रष्टा की तरह ही बाबाजी भी विनम्र गुमनामी में अपना कार्य करते रहते हैं।' 'योगी कथामृत' में वर्णित ये शब्द हमें महावतार बाबाजी के कार्यों के विषय में जानने के लिए उत्सुक बनाते हैं। श्री श्री परमहंस योगानंद जी द्वारा रचित इस ग्रंथ में अमर महावतार बाबाजी के विषय में कुछ अध्याय सम्मिलित हैं।
क्रियायोग के लुप्त ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए कुंभ के मेले में स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी (जो बाद में योगानंद जी के गुरु हुए) से बाबा जी ने कहा था, 'कुछ वर्षों पश्चात मैं आपके पास एक शिष्य भेजूंगा, जिसे आप पश्चिम में योग का ज्ञान प्रसारित करने के लिए प्रशिक्षित कर सकते हैं....' वह शिष्य थे परमहंस योगानंद, जिन्होंने पूर्व में योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया तथा पश्चिम में सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की स्थापना करके आध्यात्मिक विज्ञान की प्रविधि, क्रियायोग का प्रसार किया। धार्मिक उदारतावादियों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने हेतु अमेरिका जाने से पहले जब श्री श्री योगानंद ने आशीर्वाद पाने हेतु ईश्वर से प्रार्थना की, तब बाबाजी ने उनके समक्ष प्रकट होकर उनके संपूर्ण संरक्षण का आश्वासन दिया। यह दिन था 25 जुलाई का, जिसे संसार भर में भक्तगण स्मृति दिवस के रूप में हर साल मनाते हैं।
मान्यता है कि इस जगत में विशेष कार्यों के लिए जो महापुरुष आते हैं, उनकी सहायता करना, जगत को आत्मोद्धारक स्पंदन भेजना बाबाजी का कार्य है। लाहिड़ी महाशय के अनुरोध पर उन्होंने गृहस्थों को भी क्रियायोग विद्या सिखाने की अनुमति प्रदान की थी। क्रियायोग विज्ञान के विषय में गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'इस धर्म का थोड़ा-सा भी साधन जन्म-मृत्यु के चक्र में निहित भय से तुम्हारी रक्षा करेगा।' इस विज्ञान को सीखने का मार्ग है पाठमाला का गृह-अध्ययन। साधक योगदा सत्संग सोसाइटी आफ इंडिया की वेबसाइट पर विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध पाठमाला में नामांकित कर इस प्रविधि को सीख सकते हैं।
'योगी कथामृत' में वर्णित एक प्रेरक गाथा को सुनकर आत्मनिरीक्षण करने का मन होता है। कुंभ मेले में लाहिड़ी महाशय ने बाबाजी को देखा कि वे एक जटाधारी संन्यासी के समक्ष नतमस्तक हैं। आश्चर्यचकित हो उन्होंने कहा, आप यह क्या कर रहे हैं? इस पर बाबाजी ने कहा, 'मैं इस संन्यासी का पद प्रक्षालन कर रहा हूं, इसके बाद मैं इनके खाने के बर्तन मांजूगा...' फिर उन्होने कहा, 'ज्ञानी-अज्ञानी साधुओं की सेवा करके मैं उस सबसे बड़े सद्गुण को सीख रहा हूं, जो ईश्वर को अन्य सभी गुणों से सबसे अधिक प्रिय है-विनम्रता।' आइए, आज के युग में नितांत आवश्यक विनम्रता के इस महान गुण को अपने दैनिक जीवन में जीने का प्रयास करें, जिसका निरूपण महागुरु बाबाजी ने किया।