जीवन दर्शन: रिश्ते को मधुर और मजबूत बनाने के लिए इन बातों पर जरूर करें गौर
संसार में जो कुछ है वह हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। हमारा सुख-दुख भी। हम अपने व दूसरों के दृष्टिकोण को बदलकर जीवन व जगत के दृश्य को बदल सकते हैं। कहते भी हैं जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। यह सृष्टि हमारे सोच दृष्टिकोण कर्म और संबंधों पर आधारित है। हम अपने संबंधों में पास भी आ सकते हैं और दूर भी जा सकते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 25 Aug 2024 02:09 PM (IST)
ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता)। हम अपने आपसी संबंधों में मधुरता चाहते हैं, सही ऊर्जा का लेन-देन करने की प्रयास करते हैं। अगर आपसी लेन-देन की हमारी ऊर्जा में सामंजस्य व समानता नहीं होगी तो हम लोगों के बीच असहज-सी भावना होगी। ऐसा अनुभव किसी पड़ोसी, सहकर्मी, संबंधी या फिर अपने ही परिवार के सदस्यों के साथ भी हो सकता है। अगर हम अपने संबंधों की गुणवत्ता की जांच करना चाहें तो हमें बाहर देखने की आवश्यकता नहीं है। अपने दृष्टिकोण और विचारों पर दृष्टि रखते हुए हम देख सकते हैं कि हम दूसरों के साथ किस तरह का संबंध रखते हैं। जिनके बारे में हम अधिकतर अच्छा सोचते हैं, उनके साथ हमारे सुंदर संबंध होते हैं और जिनके साथ हमारा सोच उलझा हुआ होता है, उनके साथ संबंधों में कटुता हो सकती है।
हम अपने संबंधों में पास भी आ सकते हैं और दूर भी जा सकते हैं। यह सब हमारे दृष्टिकोण और निर्वाह के ढंग पर निर्भर करता है। मान लीजिए, आपने अपने किसी सहकर्मी के कार्य से संतुष्ट न होकर उसके बारे में नकारात्मक सोचा और चाहा कि वह काम छोड़कर चला जाए। भले ही आपने उसे कुछ कहा नहीं, पर आपके इस सोच का स्पंदन उसके पास पहुंच गया। वह उदास हुआ और उसने काम छोड़ने का निश्चय किया। उसके सोच का भी स्पंदन आप तक पहुंचा तो आपने मन में ही उसे शुभ भावना का स्पंदन भेजा। आप देखेंगे कुछ समय के बाद वह बहुत ही स्नेही व बदला हुआ दिखेगा और आपके साथ पुन: काम करने के लिए तैयार हो जाएगा। यह उदाहरण हमें नजरिया बदल कर नजारा बदलने की बात को पुष्टि करता है। आपने उसके लिए सोच और दृष्टिकोण बदला, तो वह भी बदल गया। वह आपके नकारात्मक विचारों के स्पंदन के वशीभूत होकर काम छोड़कर जाना चाहता था, लेकिन जब आपने सकारात्मक विचारों का स्पंदन भेजा, उसे स्नेहमयी ऊर्जा का उपहार भेजा, तो वह पुन: काम करने के लिए तैयार हो गया।
यह भी पढें: जिंदगी अपनी विभिन्नताओं के कारण ही दिलचस्प लगती है
कई बार अपने नकारात्मक कार्यकलापों के लिए हम क्षमा मांग लेते हैं, पर उस दशा में हमें मनचाहे परिणाम नहीं मिलते हैं, क्योंकि संबंधों का विरोध बाहरी नहीं, भीतरी है। जब हम किसी के विरोध में होते हैं, तो हमारे मन के भीतर की डोरियां उलझ जाती हैं। एक बार उन्हें खोल दें तो बाहरी तौर पर क्षमा तुरंत स्वीकार हो जाती है। यदि हम क्षमा मांगें, पर हमारे ही विचार हमारा साथ न दें, तो वही व्यक्ति हमारी क्षमा-याचना को ठुकरा देगा। भले ही आप उसे नौकरी में ठहरने को कहें, परंतु वह छोड़ने के लिए अड़ा रहेगा, क्योंकि क्षमा का स्पंदन उसके अंत:करण तक पहुंचा ही नहीं है।
हम किसी के बारे में लगातार नकारात्मक विचार तब उत्पन्न करते हैं, जब हम उसके व्यक्तित्व के किसी विशेष संस्कार के साथ सहज नहीं होते हैं। हमारा मन उन विचारों में उलझ जाता है। परंतु जब हम उस संस्कार पर केंद्रित होना बंद कर देते हैं तो हमारे भीतर कोई भारी ऊर्जा जमा नहीं होती, जबकि वह संस्कार उस व्यक्ति में तब भी उपस्थित होता है। इसका अर्थ है कि हमारा संबंध-दो आत्माओं के बीच ऊर्जा के आदान-प्रदान की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। इस पहलू को समझना आवश्यक है कि प्रतिदिन हम बहुत से ऐसे लोगों से मिलते हैं, जिनके संस्कार हमसे मेल नहीं खाते हैं। अगर हम पुराने ढांचे के सोच से जुड़े रहे, तो बहुत से लोगों से हमारी विरोध की स्थिति बन सकती है।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके साथ हम नाता नहीं जोड़ पाते, क्योंकि हमारा स्वभाव उनके साथ मेल नहीं खाता। हम ऐसे मामले में भी आपसी तालमेल रख सकते हैं। हो सकता है कि उनके दोष हमें दिखें, परंतु अगर हम नकारात्मकता को अपने ऊपर हावी नहीं होने देंगे, तो हमारे संबंधों में सामंजस्य हो सकता है। इससे यह पाठ सीखने को मिलता है कि विरोध दूसरे व्यक्ति के व्यवहार में नहीं, अपितु आपके दृष्टिकोण एवं कार्यशैली में होता है।
यह भी पढें: बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए आध्यात्मिक ज्ञान है बेहद जरूरी
संबंध का अर्थ है एक आत्मा का दूसरे आत्मा से संपर्क। जब भी हम दूसरे व्यक्ति का विरोध करते हैं, तो इसका अर्थ है कि दोनों आत्माओं के बीच आपस में संपर्क नहीं रहता है। वे अपने मूल गुणों व योग्यताओं से दूर हो जाते हैं। उनकी ऊर्जा में बाधा उत्पन्न होती है। हम दूसरों के साथ संघर्ष में आते हैं, क्योंकि पहले हमारे बीच कुछ हुआ था या इन दिनों में हो रहा है या हम भविष्य के लिए आशंकित हैं। संघर्ष व टकराव के दौरान लगी ठेस हमारी स्मृति में अंकित हो जाती है और मन में यह प्रोग्रामिंग बन जाती है कि, 'मेरा दिल इसके कारण दुखा।' जब भी हम उस व्यक्ति के बारे में सोचते हैं तो वही भावना या विचार सामने आ खड़ा होता है। यह भावना या विचार उस व्यक्ति की आत्मा से संपर्क साधने में बाधा उत्पन्न करता है।
कई बार हम बड़ी आसानी से दूसरों के बारे में धारणा बना लेते हैं, ' वे तो ऐसे ही हैं।' क्योंकि हम ऐसा ही देखते हुए बड़े हुए हैं। हमें वही व्यवहार का ढंग सामान्य लगने लगा है। पहले हम लोगों के बारे में धारणा बनाते हैं, फिर उसके अनुसार उन्हें पसंद या नापसंद करते हैं। हम अपनी चेतना में उनकी एक छवि बना लेते हैं। यही वजह है कि जब हम किसी को परखते हैं, तो हम उसे नहीं, स्वयं को परिभाषित करते हैं। मान लेते हैं कि चार कलाकार आपका चित्र तैयार कर रहे हैं। वे चारों ही अलग-अलग चित्र तैयार करेंगे, चाहे विषय एक ही हो। क्योंकि हर कलाकार अपने व्यक्तित्व व दृष्टिकोण के अनुसार रेखांकन करेगा और उसमे रंग भरेगा। इस तरह पेंटिंग उस विषय को नहीं, कलाकार की भावना और दृष्टिकोण को परिभाषित करती है। अगर चित्र विषय को परिभाषित करता तो चारों कलाकारों का चित्र एक-सा होता। इसी तरह हम एक-दूसरे को अपने ही दृष्टिकोण और विचारों के रंगों के अनुसार परखते हैं।
जब हम किसी व्यक्ति के बारे में कुछ कहते हैं तो इससे उनका नहीं, हमारा व्यक्तित्व रेखांकित होता है। अलग-अलग लोग अपने दृष्टिकोण के आधार पर अलग-अलग तरह से समझते हैं। मान लीजिए आपके पास पांच सुंदर गुण व पांच कमजोरियां हैं। एक व्यक्ति उन पांच कमियों के आधार पर आपकी छवि तैयार करेगा। दूसरा व्यक्ति एक कमी और चार गुणों के अनुसार आपकी छवि तैयार करेगा। हो सकता है कि तीसरा व्यक्ति इसके ठीक विपरीत करें। और हो सकता है कि कोई दूसरा आपकी सारी अच्छाइयों के हिसाब से छवि बनाए। जो व्यक्ति केवल आपकी कमियों के आधार पर आपकी छवि बनाता है, उसमें निंदा का संस्कार है। जो व्यक्ति आपके सारे गुणों को देख रहा है, वह दूसरों को सराहने का संस्कार रखता है।
इसलिए, हमारा संबंध लोगों से नहीं, बल्कि उस छवि से है जो हमारे मन में उनके प्रति बसी है। अगर हम अपने संबंधों को और सुंदर बनाना चाहते हैं, तो हमें अपने भीतर बसी उस छवि या दृष्टिकोण को निखारते रहना चाहिए। दूसरे नहीं बदलेंगे, न ही हम दूसरों को बदलने की उम्मीद रखें। हम केवल अपने सोच, दृष्टिकोण और संस्कारों को बदल सकते हैं, जिससे हम संसार की परिदृश्य को बदलने में विशेष योगदान दे सकते हैं।