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जीवन दर्शन: दूसरों के लिए त्याग करने की शिक्षा देता है श्रीरामचरितमानस

भगवान राम ने भरत के लिए राज छोड़ा तो भरत ने राम के लिए त्याग किया। त्याग और समर्पण की शुरुआत परिवार से होनी चाहिए। जिस परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति त्याग और समर्पण की भावना होती है वहां सदैव खुशहाली निवास करती है। सनातन धर्म की ज्योति है। पोथी पुरानी भी हो सकती है लेकिन ज्योति पुरानी नहीं हो सकती।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 07 Jul 2024 01:33 PM (IST)
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जीवन दर्शन: दूसरों के लिए त्याग करने की शिक्षा देता है श्रीरामचरितमानस

मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। हिंदू धर्म और सनातन धर्म के सिद्धांत विशाल आकाश से भी अधिक व्यापक हैं। किसी को दुख देना तो दूर, प्रत्येक जीव के सुख की कामना करना बहुत बड़ी सोच है। सनातनी वह है जो दीन, हीन, उपेक्षित लोगों की सेवा को सदैव तैयार रहे। कोई भूखा न रहे। जगत में सबका कल्याण हो। ऐसी भावना रखना सनातन की सबसे बड़ी शक्ति है। सनातन कहता है कि जीवन में वाह-वाह के साथ स्वाह की भावना भी होनी चाहिए। स्वाह यानी त्याग और समर्पण। ऐसे काम करने की सभी लोगों की इच्छा रहती है, जिससे उन्हें वाहवाही मिले। इसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन व्यक्ति में वाह की इच्छा के साथ स्वाह यानी त्याग की भावना भी होनी चाहिए।

श्रीरामचरितमानस दूसरों के लिए त्याग करने की शिक्षा देता है। राम ने भरत के लिए राज छोड़ा तो भरत ने राम के लिए त्याग किया। त्याग और समर्पण की शुरुआत परिवार से होनी चाहिए। जिस परिवार के सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति त्याग और समर्पण की भावना होती है, वहां सदैव खुशहाली निवास करती है। युवा पीढ़ी तक सनातन का दर्शन पहुंचे, इसके लिए आवश्यक है कि सभी सरकारी और निजी विद्यालयों में सनातन का इतिहास पढ़ाया जाना चाहिए। युवा लोग मूल इतिहास पढ़ें।

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इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में हुई राम कथा में वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री ऋषि सुनक पधारे तो उन्होंने खुद को हिंदू कहा था। यह सभी के लिए सीख और प्रेरणा की बात है। उन्होंने दो बार जय सिया राम का उद्घोष भी किया। यदि उनके जैसा विश्व नेता गर्व से हिंदू के रूप में पहचान दे सकता है तो किसी अन्य हिंदू को इसके लिए अनिच्छुक क्यों होना चाहिए? गांधी जी और स्वामी विवेकानंद जी स्वयं को हिंदू कहते थे। हिंदू धर्म के अनुयायियों को आत्मविश्वास के साथ खुद को हिन्दू और सनातनी कहना चाहिए और राम का नाम लेना चाहिए।

युवाओं से अनुरोध है कि सनातन की व्यापकता को समझने के लिए जब भी समय मिले, धर्म ग्रंथों का अध्ययन करें। जिस धर्म ग्रंथ में आपकी रुचि हो, उसे पढ़ें और उसका मर्म समझें। मैं तो श्रीरामचरितमानस की पोथी लेकर पूरी दुनिया में घूम रहा हूं। मानस पोथी नहीं, सनातन धर्म की ज्योति है। पोथी पुरानी भी हो सकती है, लेकिन ज्योति पुरानी नहीं हो सकती। यद्यपि यह स्वयं प्रकाशमान है, इसमें न घी, ना बाती और ना ही दीये की जरूरत है। ये जो चांद, सूरज उगते हैं, मानस की ज्योति में अपनी सार्थकता लिए प्रकाश उड़ेल रहे हैं।

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कलयुग में नाम प्रभाव है, पोथी के बिना कुछ भी नहीं। मानस के बिना भी कुछ नहीं। जैसे खंभे को खड़ा रखने के लिए उसकी जड़ों में कुछ गाड़ना पड़ता है, उसी प्रकार यदि प्रेम भक्ति के खंभे को खड़ा रखना है तो दृढ़ता से उसकी जड़ों में विश्वास डालना पड़ता है। श्रीरामचरितमानस का एक-एक अक्षर मेरे और आपके मन के मैल और काल के मैल का, कलयुग के प्रभाव का शमन करता है।

तुलसीदास जी ने विनय पत्रिका में एक पद लिखा है कि हमारे जीवन में जितने मल हैं, उनको राम कथा खत्म करती है। मोह से उत्पन्न हुआ अनेक प्रकार का मल हमारे हृदय में लगा है। कितने ही प्रयत्न करें तो भी ये मल निकलता नहीं। तुलसी कहते हैं कि व्रत, दान, तप...ये सब मल से मुक्त होने के साधन हैं, लेकिन श्रीराम के चरण में प्रेम रूपी जल नहीं होगा, तब तक हमारा मल मिट नहीं पाएगा। ऐसा सोच सिर्फ सनातन के ही पास है। इसलिए सनातन महान है। हमें गर्व करना चाहिए कि हम सनातनी हैं।