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जीवन दर्शन: इन जगहों पर न करें क्रोध, जीवन के लिए सत्य, प्रेम और करुणा है जरूरी

इसमें कोई संदेह नहीं है कि युवाओं में कथा सत्संग अध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ रही है। सदियों से माना जाता रहा है कि जो संसार में कोई काम करने लायक नहीं रहे ऐसे लोग ही सत्संगों कथाओं में पहुंचते हैं। मेरा 50 साल से भी ज्यादा का अनुभव है कि कथाओं में देश और विदेश दोनों ही जगहों पर कम से कम 30 प्रतिशत लोग युवा होते हैं।

By Jagran News Edited By: Vaishnavi Dwivedi Updated: Mon, 11 Mar 2024 10:06 AM (IST)
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मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। इन जगहों पर बिल्कुल भी न करें क्रोध
मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। इसमें कोई संदेह नहीं है कि युवाओं में कथा, सत्संग, अध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ रही है। सदियों से माना जाता रहा है कि जो संसार में कोई काम करने लायक नहीं रहे, ऐसे लोग ही सत्संगों, कथाओं में पहुंचते हैं। मेरा 50 साल से भी ज्यादा का अनुभव है कि कथाओं में देश और विदेश दोनों ही जगहों पर कम से कम 30 प्रतिशत लोग युवा होते हैं। ऐसे में मुझे लगता है कि बदलाव आ रहा है। मैं भी कथाओं में कहता रहता हूं कि बुजुर्ग लोग थोड़ा विश्राम करें। कथा सत्संग में युवाओं के आने के लिए मार्ग प्रशस्त करें। युवाओं के इस बदलाव को लेकर मैं बहुत आश्वस्त हूं। इसी के आधार पर बार-बार कहता रहता हूं कि भारत का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है। आप मांगेंगे तो मैं इसका प्रमाण नहीं दे पाऊंगा, लेकिन यह साधु के अंत:करण की आवाज है।

अवश्य पढ़ें ग्रंथ

मेरा मानना है कि युवा पीढ़ी को शास्त्रों का ज्ञान होना आवश्यक है। अगर आपके पास इतना समय नहीं है कि ग्रंथ खोलकर पढ़ सकें तो आजकल तकनीक का जमाना है। आपके हाथ में जो मोबाइल, लैपटाप रहता है, उस पर सभी ग्रंथ उपलब्ध हैं। तकनीक का सदुपयोग करते हुए जब भी समय मिले, कोई न कोई ग्रंथ खोलकर अवश्य पढ़ना चाहिए। मैं श्रीरामचरितमानस को लेकर पूरी दुनिया में घूमता हूं, लेकिन मेरा कोई ऐसा आग्रह नहीं है कि युवा भी मानस को ही पढ़ें। जिस ग्रंथ में भी आपकी रुचि हो, जब भी अनुकूलता हो, उस ग्रंथ को नेट पर खोलकर पढ़ लें। मैं श्रीराम का नाम लेता हूं, लेकिन आपकी जिस नाम में भी रुचि हो, आप उसी नाम को लेते रहें। अगर अध्यात्म की राह पर चलना है तो क्रोध से बचना जरूरी है। क्रोध में जागे, क्रोध में सोवे, बाद में जो भी होवे, वो भी खोवे।

इन जगहों पर बिल्कुल भी न करें क्रोध

युवाओं से मेरा कहना है कि छह जगहों पर बिल्कुल भी क्रोध न करें। पहला, सुबह उठते ही क्रोध न करें। दूसरा, भजन-पूजन के समय क्रोध न करें। तीसरा, घर से बाहर जाते समय क्रोध न करें। चौथा, दफ्तर से आते समय क्रोध न करें। पांचवां, बच्चों पर क्रोध न करें और छठा रात्रि में सोते समय क्रोध न करें। आप पूछेंगे कि इन छह के अलावा क्या कहीं भी क्रोध कर सकते हैं, तो उसके जवाब में मेरा कहना है कि जब आप इन छह स्थानों पर क्रोध नहीं करेंगे तो फिर धीरे-धीरे क्रोध आपसे छूट ही जाएगा। आप फिर कहीं भी क्रोध नहीं कर सकेंगे। युवा पूछते हैं तो मैं कथाओं में उन्हें सुखी दांपत्य के सूत्र बताता रहता हूं। मैं अक्सर कहता हूं कि पहले शादी करो, कथा सुनने बाद में आना। युवाओं से मेरी गुजारिश ये भी रहती है कि अगर घर में कभी झगड़ा हो तो रात को सोने से पहले उसे सुलझा लेना। झगड़ा खत्म करके ही सोना, नहीं तो घर स्वर्ग से नरक बन जाएगा। घर को कनक भवन होना चाहिए, कोप भवन नहीं।

सुखी दांपत्य जीवन के सूत्र

सुखी दांपत्य के दो प्रमुख सूत्र होते हैं। पहला, पुरुष को पत्नी के प्रति प्रेम होना चाहिए। दूसरा, पत्नी का पति के प्रति आदर भाव होना चाहिए। स्त्री प्रेम की और पुरुष आदर का भूखा होता है। युवाओं को विशेष रूप से यह ध्यान रखना चाहिए। युवाओं से मेरा यह भी कहना है कि खूब पढ़ाई करो। डिग्रियां लो और खूब कमाओ। दो हाथों से कमाओ तो चार हाथों से भगवत कार्य के लिए लुटाओ भी। मुझे प्रसन्नता है कि देश-विदेश के हजारों युवा कमा भी रहे हैं और भगवत कार्यों में खर्च भी कर रहे हैं। युवाओं से मेरा कहना है कि भगवत कार्य हो अथवा राष्ट्र की सेवा, ये सब कार्य जात-पात से ऊपर उठकर होने चाहिए। युवाओं से यह भी कहता हूं कि वो डिबेट नहीं, बल्कि डायलॉग करें। डिबेट के नाम पर टीवी चैनल में कचरे डाले जा रहे हैं। डिबेट नहीं, डायलॉग होना चाहिए। बहस नहीं, संवाद होना चाहिए। जगत भर के धर्मों का सार सत्य, प्रेम और करुणा है। कोई इसे झुठला नहीं सकता।

प्रेम और करुणा को करें आत्मसात

सभी युवा सत्य, प्रेम और करुणा को आत्मसात करें। सत्य, प्रेम और करुणा के भाव जाग्रत होने पर अपराध भी रुक सकते हैं। अध्यात्म इन गुणों को जाग्रत करने का काम करता है। पूरे विश्व की युवा पीढ़ी बलवान बनें, विद्वान बनें और बुद्धिमान बनें, तभी जगत का कल्याण संभव है। कट्टरता से परे रहकर युवाओं को बल, बुद्धि और विद्या से समृद्ध बनने का प्रयास करना चाहिए, तभी परिवार, समाज और राष्ट्र समृद्ध होगा। एक बार सार के रूप में रामकथा के पांच सबक मुझसे पूछे गए थे। वैसे तो वे सभी के लिए हैं, लेकिन युवाओं के लिए विशेष रूप से कहना चाहता हूं। पहला, जहां तक संभव हो, सच बोलें और वह भी प्रिय बोलें। दूसरा, अहंकार से सावधान रहें। ये बड़ी आसानी और सूक्ष्म रूप से घुस आता है। रामकथा सिखाती है कि जितना हो सके, इसके प्रति जागरूक रहें। तीसरा, हर व्यक्ति को अपने धर्मग्रंथ का पठन-पाठन, चिंतन-मनन करना चाहिए। चौथा, जहां तक हो सके, मौन धारण करके रखना चाहिए। इस मौन में उस परम तत्व की स्मृति बनी रहे, इसका निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए।

शुभ का संग

पांचवां और अंतिम, शुभ का संग यानी सत्संग करना चाहिए। सत्संग से मेरा आशय सिर्फ धार्मिक क्रिया से नहीं है। वह तो सत्संग है ही, लेकिन मेरे लिए सत्संग का अर्थ बहुत व्यापक है। एक अच्छी शायरी, कविता, गीत भी मेरे लिए सत्संग है। किसी फिल्म का गीत अगर प्रेरणा देता है तो मेरे लिए वह भी सत्संग का ही हिस्सा है। युवा इस बात को ध्यान में रखें कि प्रत्येक लाभ में शुभ नहीं होता, लेकिन प्रत्येक शुभ में लाभ ही होता है। जब हम सच की बात करते हैं तो एक कहावत कही जाती है कि सत्य हमेशा कड़वा होता है। वह आसानी से पचता नहीं है। मैं ऐसा नहीं मानता। मुझे लगता है कि सत्य को जानबूझकर कड़वा कर दिया जाता है। जो लोग कड़वा बोलने की तैयारी करके सत्य बोलते हैं, वही उसे कड़वा बनाते हैं।

गलत शब्दों का चुनाव करके, गलत अंदाज में बोलकर। युवाओं से मैं कहना चाहता हूं कि आप सत्य को मीठा बनाकर भी बोल सकते हैं। दूसरे का दिल भी न दुखे और बात भी समझ में आ जाए। सत्य कड़वा नहीं होता, उसे कहने का ढंग कड़वा हो सकता है। युवाओं को एक और बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि कथा और सत्संग से उन्हें निष्क्रिय नहीं बनना है, बल्कि अपने सभी कर्तव्यों का, दायित्वों का अच्छी तरह से पालन करने की कला को सीखना है।

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श्रीरामचरितमानस में भी लिखा है -

''कर्म प्रधान बिस्व करि राखा।

जो जस करइ सो तस फल चाखा''।।

अर्थात यह विश्व कर्म प्रधान है और जो व्यक्ति जिस तरह का कर्म करता है, उसे फल भी उसी के अनुरूप मिलता है। जिस चीज का मूल ठीक नहीं, उस पर फूल कभी नहीं आएगा। इस सूत्र को युवा याद रखें तो आध्यात्मिक यात्रा में बहुत आगे तक जा सकते हैं। युवाओं की तरफ से एक प्रश्न अक्सर पूछा जाता है। सच्चे संत या सदगुरु की क्या पहचान है? इसके तीन मापदंड हैं। एक, जो सभी को स्वीकार करें, प्यार करें। किसी का भी तिरस्कार न करे। उसमें अहंकार और आक्रामकता न हो। दो, जिसमें आडंबर न हो यानी जो दुनिया को दिखाने के लिए नहीं, अपने मन की खुशी के लिए अच्छे काम करता हो। तीन, जिसकी शरण में हम प्रसन्न रहें, हमें प्रकाश मिले, हमारी स्वतंत्रता बनी रहे। वह जो हमें सबके प्रभाव से, खुद के भी प्रभाव से मुक्त करके हमें खुद के स्वभाव में बनाए रखे, वही सच्चा संत है, सदगुरु है, बुद्ध पुरुष है।

प्रस्तुति : राज कौशिक

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