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Pitru Paksha 2024: दिवंगत आत्माओं को सद्गति देने के लिए राजयोग ध्यान है जरूरी

श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है। छोटे हों या बड़े श्राद्ध सभी दिवंगत आत्माओं के लिए किया जाता है। जीते जी हम छोटे व बड़ों के प्रति जितना अपने स्नेह श्रद्धा व सम्मान का उपयोग करेंगे उतना हमें छोटों से सम्मान बड़ों से आशीर्वाद और पूर्वजों से शक्तियां मिलेगी। पहले हमें बुजुर्गों और बच्चों के प्रति सोच विचार और दृष्टिकोण को दृढ़ करना होगा।

By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 23 Sep 2024 01:33 PM (IST)
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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष का आध्यात्मिक महत्व

ब्रह्मा कुमारी शिवानी (आध्यात्मिक प्रेरक वक्ता)। हम अपने दिवंगत पूर्वजों को श्राद्ध पक्ष में सम्मान देते हैं। इसी प्रकार हमें अपने जीवित माता-पिता, दादा दादियों का भी ध्यान रखना चाहिए। उनका आदर सम्मान करें। उनके प्रति हमारी यही सच्ची श्रद्धा है। देखा जाए तो श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है। छोटे हों या बड़े, श्राद्ध सभी दिवंगत आत्माओं के लिए किया जाता है। जीते जी हम छोटे व बड़ों के लिए अपने स्नेह, श्रद्धा वा सम्मान का जितना अधिक उपयोग करेंगे, उतना हमें छोटों से सम्मान, बड़ों से आशीर्वाद और पूर्वजों से शक्तियां मिलेगी। मानवीय संबंध कभी भौतिक आयामों से जुड़ा नहीं होता है।

भौतिक पक्ष ने कभी हमें प्रेम, प्रसन्नता, संतोष व उद्देश्य का एक भाव दिया था, किन आज यही तनाव, पीड़ा व जलन का स्रोत बन गया है। हमें एक साथ मिलकर इन संबंधों की अच्छाई को वापस लाना होगा। हर संबंध की एक भौतिक पहचान या नाम होता है, जैसे कि माता, पिता, संतान, पति और पत्नी आदि। यह सामने वाले पर निर्भर करता है कि उसका संबंध दूसरे के साथ कैसा होगा। आमतौर पर संबंध दो आत्माओं के बीच का संपर्क है।

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दूसरी आत्माओं के साथ हमारा संबंध कैसा होगा, वह हमारे स्वयं के साथ संबंध की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। दूसरे, आत्मा के साथ हमारा संबंध प्रेमपूर्ण तब होगा, जब स्वयं का अपने अंतरात्मा के साथ संबंध प्रेममय होगा। क्योंकि, हमारे अंतरात्मा का मूल गुण या स्वभाव प्रेम है। प्रेम करना व पाना। दूसरों के साथ संबंध स्थापित करने का अर्थ है, दूसरों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।

जब हम बाहरी और आंतरिक दोनों आयामों को अलग कर देते हैं, तो हमारे संबंध इतना सुंदर नहीं बन पाता है। हम अक्सर एक-दूसरे को अपने कहे हुए शब्दों और आपसी कार्य संबंध के आधार पर देखते हैं। कई बार हम सोचते हैं कि इतने सहयोग के बाद, इतना कुछ करने के बाद भी हमारा नाता उतना मजबूत नहीं है, जितना होना चाहिए था।

हमे देखना होगा कि क्या हम अच्छे शब्दों का चयन करने और अच्छे व्यवहार करने के साथ-साथ, दूसरे व्यक्ति की अच्छाई व भलाई के बारे में भी सोच रहे हैं? क्योंकि, हमारे बोल या व्यवहार से पहले ही हमारा विचार दूसरे व्यक्ति के पास पहुंच जाता है। किसी भी संबंध निर्माण करने में, हमारी विचार या भावनाएं अधिक महत्व रखती हैं। क्योंकि संबंध दो आत्माओं के बीच ऊर्जा का आदान-प्रदान है।

हालांकि, आजकल हम इसे स्थूल उपहार, वाणी और व्यवहारों के लेन-देन से ज्यादा नहीं मानते हैं। संबंधों में एक-दूसरे के लिए अच्छा करना भी महत्व रखता है। परंतु, इतना कुछ करने के बाद भी हम अपनी संबंधों से जूझ रहे हैं, क्योंकि हम संबंध की इमारत के बाहरी रूप को संपूर्ण बनाने की कोशिश करते हैं। हम इसकी अदृश्य नींव-विचार और भावनाओं-पर ध्यान नहीं देते हैं।

आज घर-परिवार में भी हम देखते हैं कि कुछ लोग ऊपर से स्नेह सहयोग देते तो हैं, पर अंदर से दूसरों के लिए आलोचक बन जाते हैं। बाहरी तौर पर तो यह एक संपूर्ण संबंध दिखता है, परंतु इसकी स्नेह, श्रद्धा व विश्वास वाली भावनात्मक नींव कमजोर रहती है। मजबूत रिश्ते बाहरी दिखावे, झूठी प्रशंसा पर नहीं टिकते हैं। दिखावे के मीठे बोल-व्यवहार से दूसरा कभी सहज महसूस नहीं करेगा। असल में, स्थाई संबंधों का आधार हमारा सोच और विचार ही है। हम दूसरों के बारे में क्या सोचते हैं, यह अधिक महत्व रखता है।

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पहले हमें बुजुर्गों और बच्चों के प्रति सोच, विचार और दृष्टिकोण को दृढ़ करना होगा, तब उनके साथ प्यार भरे संबंध की इमारत हम खड़ा कर सकते हैं। हम यह भी मानते हैं कि आज हमारा जो बच्चा है, हो सकता है वह हमारे पूर्वज आत्माओं में से एक है। तभी चाहें घर के बुजुर्ग हों या बच्चे, सबके प्रति हमारी शुभ भावना, शुभ कामना और संवेदनशील आचरण सदा बना रहे। उसके लिए हमें अपनी चेतना, चिंतन, दृष्टि, वृत्ति, बोल, व्यवहार और भावनाओं को आत्मिक बनाना होगा।

इस आत्मबोध के आधार पर ही मधुरता, स्नेह, श्रद्धा, दया, करुणा, आदर सम्मान और संवेदनशीलता आदि मानवीय मूल्य विकसित होंगे। इन आत्मिक गुणों को अपनाने के लिए आंतरिक शक्ति और क्षमताओं को बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए हमें परमात्मा से सहज राजयोग ध्यान के माध्यम से जुड़ने की आवश्यकता है। इससे हम न केवल अपने जीवन, आचरण और सांसारिक संबंधों को बेहतर बना सकते हैं, अपितु पूरे विश्व परिवार के जीवित तथा दिवंगत आत्माओं के लिए शांतिपूर्ण व सुखमय गति एवं सद्गति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।