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रक्षाबंधन 2023: बहन की रक्षा के वचन का पर्व

रक्षाबंधन है और यह श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। वेदों के अनुसार जब संग्राम में देवता दैत्यों से पराजित हो गए तब इंद्राणी ने देवगुरु बृहस्पति से परामर्श कर इसी दिन रक्षोघ्न मंत्र से देवताओं को रक्षा बांधा था। कालांतर में यह भाई द्वारा बहन की रक्षा के वचन का पर्व हो गया। आइए प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री जी जानते हैं इस पर्व का महत्व।

By Shantanoo MishraEdited By: Shantanoo MishraUpdated: Sun, 27 Aug 2023 01:09 PM (IST)
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प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री जी से जानिए रक्षाबंधन पर्व का महत्व और मुहूर्त।
प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री (विभागाध्यक्ष, ज्योतिष विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी) । रक्षा सूत्र का बांधना ही रक्षाबंधन है और यह श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह अत्यंत प्राचीन काल से सनातनी हिंदुओं द्वारा प्रमुखता से मनाया जाता है। वैदिक काल में रक्षा करंड रक्षोघ्न मंत्र से अभिमंत्रित करके यजमान की रक्षा हेतु पुरोहित 'रक्षतु त्वा द्यौ रक्षतु पृथिवी सूर्यश्च त्वा रक्षतां चन्द्रमाश्च अन्तरिक्षं रक्षतु देवहेत्या:' मंत्र पढ़कर यजमानों की कलाई में बांधते थे। वेदों के अनुसार, जब संग्राम में देवता दैत्यों से पराजित हो गए, तब इंद्राणी ने देवगुरु बृहस्पति से परामर्श कर इसी दिन रक्षोघ्न मंत्र से देवताओं को रक्षा बांधा था। कालांतर में यह भाई द्वारा बहन की रक्षा के वचन का पर्व हो गया। बहनें भाइयों के हाथ में रक्षा सूत्र बांधने लगीं, ताकि भाई-बंधु बहनों के सम्मान को सुरक्षित रखें।

पौराणिक कथानक है कि जब राजा बलि को वामन भगवान ने पाश से बांधकर पाताल लोक का अधिपति बनाया, तब वामन ने बलि से कुछ मांगने को कहा। बलि ने कहा आप इसी वामन रूप में मेरे दरवाजे पर सदा रहें, ताकि आपके इस रूप का दर्शन मुझे सदैव होता रहे। भगवान बलि के साथ रहने लगे। वैकुंठ में लक्ष्मी जी दुःखी रहने लगीं और योजनापूर्वक श्रावण पूर्णिमा को सुंदर नारी का वेष बनाकर बलि के पास दुखी मन से उपस्थित हुईं। बलि द्वारा दुख का कारण पूछे जाने पर लक्ष्मी जी ने कहा, मेरे कोई भाई नहीं है। आज रक्षा बंधन पर्व है, यदि आप मुझे बहन मानें तो मैं आपकी कलाई में राखी बांध दूं। बलि के हां कहने पर लक्ष्मी जी ने रक्षा सूत्र बांधा और उपहार रूप में वामन को मांग लिया। उसी समय से रक्षा बांधने का पौराणिक मंत्र आज भी रक्षा बांधते समय बोला जाता है, जो इस प्रकार है :

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

अर्थात जिस रक्षा के द्वारा महाबली राजा बलि बांधे गए, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षा, चलायमान मत होना। वर्ष में एक दिन ही वह समय निर्धारित है, जो श्रावण पूर्णिमा को धूमधाम से मनाया जाता है। राज पुरोहित या राज गुरु भी इसी दिन भद्रावर्जित समय में राजाओं को रक्षासूत्र बांधते रहे। इसलिए कहा गया :

भद्रायां द्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।

श्रावणी नृपतिं हंति ग्रामं दहति फाल्गुनी॥

रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त

रक्षासूत्र अथवा राखी बांधते समय दो बातें ध्यान देने की हैं। प्रथम, उस समय भद्रा न हो तथा दूसरा, प्रतिपदा तिथि न हो। आचार्यों को भद्रा का परिहार मान्य नहीं है, जबकि प्रतिपदा का परिहार्य स्वीकार्य है। अतः भद्रारहित पूर्णिमा तिथि में ही रक्षा बांधने का विधान है, भले ही वह रात्रिकाल में ही क्यों न हो। प्रतिपदायुक्ता पूर्णिमा का निषेध भी है, किंतु जब पूर्णिमा उदयातिथि में प्राप्त हो और तीन मूहूर्त अर्थात् छह घटी अर्थात सूर्योदय से दो घंटा 24 मिनट तक हो, तब प्रतिपदा का दोष स्वतः समाप्त हो जाता है, यही प्रतिपदा का परिहार है। तब प्रतिपदा में रक्षा विधान करना चाहिए। इसमें संपूर्ण दिन रक्षाबंधन करना श्रेयस्कर होता है। इस विषय को स्पष्ट करते हुए धर्मसिंधुकार कहते हैं कि भद्रारहित तीन मुहूर्त से अधिक उदयकालव्यापिनी पूर्णिमा को अपराह्न अथवा प्रदोषकाल में रक्षाबंधन करना चाहिए।

तीन मुहूर्त से कम होने पर पहिले दिन भद्रा रहित समय में करना चाहिए। काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी के ज्योतिष विभाग से प्रकाशित विश्वपंचांग की गणनानुसार, 31 अगस्त 2023 गुरुवार को पूर्णिमा तिथि सूर्योदय से छह घटी नौ पल है। अतः तीन मुहूर्त से अधिक होने के कारण दिन भर रक्षाबंधन का मुहूर्त है। यजुर्वेदीय माध्यंदिनी वाजसनेयी शाखा वालों का 30 को श्रावणी उपाकर्म तथा यजुर्वेदीय तैत्तिरीय शाखा एवं उदय काल की पूर्णिमा में विहित अन्य सभी शाखावलंबियों के लिए 31 को श्रावणी उपाकर्म का शुभमुहूर्त रहेगा। अनेक मतमतांतरों के रहते हुए भी सर्वमान्य रक्षाबंधन का समय 30 अगस्त की रात्रि नौ बजे के बाद अर्थात भद्रा के पश्चात रात्रिकाल में तथा 31 को संपूर्ण दिन रक्षा (राखी) बांधना उत्तम रहेगा।