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Ram Mandir Pran Pratishtha: भगवान श्रीराम ने अपने सिद्धांतों और मूल्यों का जीवन भर पालन किया

भारतीय मानस में श्रीराम का महत्व इसलिए नहीं है क्योंकि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं बल्कि उनका महत्व इसलिए है कि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही धैर्य व शिष्टतापूर्वक किया। अपने सबसे कठिन क्षणों में भी उन्होंने स्वयं को अत्यंत गरिमापूर्ण रखा। उसके अनंतर वे एक बार भी न तो क्रोधित हुए ना उन्होंने किसी को दोष दिया ना ही घबराए या उत्तेजित हुए।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Mon, 08 Jan 2024 12:20 PM (IST)Updated: Mon, 08 Jan 2024 12:20 PM (IST)
Ram Mandir Pran Pratishtha: भगवान श्रीराम ने अपने सिद्धांतों और मूल्यों का जीवन भर पालन किया

सद्गुरु, (ईशा फाउंडेशन के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु)। Ram Mandir Pran Pratishtha: यदि आप श्रीराम के जीवन की घटनाओं पर गौर करें तो पाएंगे कि वह त्रासदियों का एक अंतहीन सिलसिला था। सबसे पहले उन्हें अपने जीवन में उस राजपाट को छोड़ना पड़ा, जिस पर उस समय की परंपराओं के अनुसार उनका एकाधिकार था। उसके बाद 14 वर्ष वनवास भोगना पड़ा। वन में उनकी पत्नी सीता का अपहरण कर लिया गया। पत्नी को मुक्त कराने के लिए उन्हें अपनी इच्छा के विरुद्ध एक भयानक युद्ध में उतरना पड़ा। उसके बाद जब वह पत्नी को लेकर अपने राज्य में वापस लौटे, तो उन्हें आलोचना सुनने को मिली। इस पर उन्हें अपनी पत्नी को वन में ले जाकर छोड़ना पड़ा, जो उनके जुड़वां बच्चों की मां बनने वाली थीं। फिर उन्हें जाने-अनजाने अपने ही बच्चों के विरुद्ध युद्ध लड़ना पड़ा और अंत में वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी से हाथ धो बैठे। श्रीराम का पूरा जीवन ही त्रासदीपूर्ण रहा। इसके बावजूद लोग श्रीराम की पूजा करते हैं।

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भारतीय मानस में श्रीराम का महत्व इसलिए नहीं है, क्योंकि उन्होंने जीवन में इतनी मुश्किलें झेलीं; बल्कि उनका महत्व इसलिए है कि उन्होंने उन तमाम मुश्किलों का सामना बहुत ही धैर्य व शिष्टतापूर्वक किया। अपने सबसे कठिन क्षणों में भी उन्होंने स्वयं को अत्यंत गरिमापूर्ण रखा। उसके अनंतर वे एक बार भी न तो क्रोधित हुए, ना उन्होंने किसी को दोष दिया, ना ही घबराए या उत्तेजित हुए। उन्होंने हर स्थिति को बहुत मर्यादित तरीके से संभाला, इसलिए जो लोग मुक्ति और गरिमापूर्ण जीवन की आकांक्षा रखते हैं, उन्हें श्रीराम की शरण लेनी चाहिए।

श्रीराम में यह देख पाने की क्षमता थी कि जीवन में बाहरी परिस्थितियां कभी भी बिगड़ सकती हैं। यहां तक कि अपने जीवन में अनेक व्यवस्थाओं के होने के अनंतर भी बाहरी परिस्थितियां विरोधी हो सकती हैं। जैसे घर में सब कुछ ठीक-ठाक हो, पर अगर तूफान आ जाए तो वह आपसे आपका सब कुछ छीनकर ले जा सकता है। यदि आप सोचते है कि 'मेरे साथ यह सब नहीं होगा' तो यह मूर्खता है। जीने का विवेकपूर्ण तरीका तो यही होगा कि आप सोचें, 'अगर मेरे साथ ऐसा होता है तो मैं इसे धैर्य व शिष्टता से ही निपटूंगा।'

लोगों ने श्रीराम को इसलिए पसंद किया, क्योंकि उन्होंने राम के आचरण में निहित सूझबूझ को समझा। आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले अनेक लोगों में अक्सर जीवन में किसी त्रासदी की कामना करने की परंपरा देखी गई है। वे चाहते हैं कि उनके जीवन में कोई ऐसी दुर्घटना हो, ताकि मृत्यु आने से पहले वे अपनी सहने की क्षमता को तौल सकें। जीवन में अभी सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है और आप को पता चले कि जिसे आप हकीकत मान रहे हैं, वह आपके हाथों से छूट रहा है, तो आपका अपने ऊपर से नियंत्रण छूटने लगता है। इसलिए वे लोग त्रासदी की कामना करते हैं।

दरअसल, श्रीराम की पूजा इसलिए भी नहीं की जाती कि हमारी भौतिक इच्छाएं पूरी हो जाएं। मकान बन जाए, प्रमोशन हो जाए, सौदे में लाभ मिल जाए। ऐसा नहीं है। राम की पूजा हम उनसे यह प्रेरणा लेने के लिए करते हैं कि मुश्किल क्षणों का सामना कैसे धैर्यपूर्वक बिना विचलित हुए किया जाए। इसलिए सवाल यह नहीं है कि आपके पास कितना है, आपने क्या किया, आपके साथ क्या हुआ और क्या नहीं। असली बात तो यह है कि जो भी हुआ, उसके साथ आपने खुद को कैसे संचालित किया।

श्रीराम ने अपने जीवन की परिस्थितियों को सहेजने का काफी प्रयास किया, लेकिन वे हमेशा ऐसा नहीं कर सके। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में ही अपना जीवन बिताया, जिसमें चीजें लगातार उनके नियंत्रण से बाहर निकलती रहीं, लेकिन इन सबके बीच सबसे महत्वपूर्ण यह था कि उन्होंने हमेशा खुद को संयमित और मर्यादित रखा। आध्यात्मिक बनने का यही सार है। श्रीराम ने कभी भी किसी भी परिस्थिति में क्रोध नहीं किया और ना ही कभी अपने अंदर कड़वाहट पैदा की। उन्होंने कभी अपना संयम नहीं खोया। वे हमेशा अपना संतुलन सौ प्रतिशत बनाए रखते थे। उन्होंने अपने सिद्धांतों और मूल्यों का जीवन भर पालन किया। वे हमेशा स्थिर और परिस्थितियों से अछूते बने रहे। इन्हीं गुणों के आगे हम झुकते हैं।

हम उनके आगे इसलिए नहीं झुकते कि वे एक बहुत सफल व्यक्ति थे। आप चाहे कुछ भी कर लें, आप उनकी भीतरी प्रकृति को उनसे अलग नहीं कर सकते। अगर इनमें से कोई एक दुर्घटना किसी व्यक्ति के जीवन में घटित हो, तो वह टूट जाएगा। है न?

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इनमें से सिर्फ एक दुर्घटना किसी के जीवन में घटित हो तो वह दिमागी संतुलन खो बैठेगा। श्रीराम के जीवन में निरंतर दुर्घटनाएं होती रहीं, लेकिन वे हमेशा संतुलित रहे। हम इस गुण को नमन करते हैं, क्योंकि यही गुण भीतरी प्रबंधन है, क्योंकि आप बाहरी परिस्थितियों को नियंत्रित नहीं कर सकते। अगर आप दुनिया में कुछ करना चाहें, तो आपको दुनिया से क्या मिलेगा, इस पर आपका कोई नियंत्रण नहीं है। लेकिन आप उन परिस्थितियों को अपने जीवन में कैसे ढालते हैं, वह सौ प्रतिशत आपके ऊपर है।


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