Ramlala Pran Pratishtha: भारत की भोर का प्रथम स्वर हैं मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम
Ramlala Pran Pratishtha मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम भारत की कालजयी सनातन संस्कृति का मेरुदंड हैं। श्रीराम के अवलंबन का अर्थ मर्यादा शील चरित्र और संयम का अनुगमन है! राम-स्मृति सर्वथा कल्याणकारी है! जो लोग मुक्ति और गरिमा पूर्ण जीवन की आकांक्षा रखते हैं उन्हें श्रीराम की शरण लेनी चाहिए। राम ही भारत का धर्म हैं। धर्म की मूर्ति भी राम हैं।
नई दिल्ली, स्वामी अवधेशानंद गिरि। Ramlala Pran Pratishtha: श्रीराम इस राष्ट्र के प्राणतत्व हैं। भारत की भोर का प्रथम स्वर हैं राम। जो राष्ट्र का मंगल करे, वही राम हैं। जो लोकमंगल की कामना करे, वही राम हैं। जहां नीति और धर्म है, वहां श्रीराम हैं। संयम, शांति, सौहार्द, सांप्रदायिक-एकता एवं समन्वय ही धर्म का वास्तविक स्वरूप है! श्रीराम साक्षात धर्म विग्रह हैं! राम एक ऐसा दीप हैं, जो कभी बुझ नहीं सकता।
राम भारत की कालजयी सनातन संस्कृति का मेरुदंड हैं। श्रीराम के अवलंबन का अर्थ मर्यादा, शील, चरित्र और संयम का अनुगमन है! राम-स्मृति सर्वथा कल्याणकारी है! जो लोग मुक्ति और गरिमा पूर्ण जीवन की आकांक्षा रखते हैं, उन्हें श्रीराम की शरण लेनी चाहिए। राम ही भारत का धर्म हैं। धर्म की मूर्ति भी राम हैं। महर्षि वाल्मीकि कहते हैं-रामोविग्रहवान धर्म:! राम में ही धर्म है, राम में ही रस है। राम को बार-बार जप लिया, तो आप धर्म से परे नहीं जाएंगे। आप में वैराग्य रहेगा, आप में मर्यादाएं रहेंगी, त्याग रहेगा। आप किसी का अहित नहीं करेंगे।
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राम धर्म ही हैं, राम मर्यादा हैं। जिसके हृदय में मंगलमय भगवान की स्मृति होती है, उसके जीवन में हर दिन उत्सव ही होता है। बाहर और भीतर की संपदा उसके साथ होती है। जिसने गुरु और भगवान के वचनों को अपने हृदय में धारण किया है, वह चाहे कैसी भी स्थिति में हो, आनंद में रहता है। श्रीराम जैसा दयालु कोई नहीं। उन्होंने दया कर सभी को अपनी छत्रछाया में लिया। उन्होंने सभी को आगे बढ़कर नेतृत्व करने का अधिकार दिया।
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सुग्रीव को राज्य दिलाना उनके दयालु स्वभाव का ही प्रतीक है। श्रीराम ने हर जाति, हर वर्ग के व्यक्तियों के साथ मित्रता की, हर संबंध को हृदय से निभाया। प्रभु श्रीराम ने ईश्वर होकर भी हमेशा संन्यासी की तरह जीवन जिया। प्रेमत्व का जीवंत उदाहरण हैं - प्रभु श्रीराम। उन्होंने अपने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा। श्रीराम एक कुशल प्रबंधक थे। वो सभी को साथ लेकर चलने वाले थे। अतः श्रीराम के श्रेष्ठ नेतृत्व क्षमता के कारण ही लंका जाने के लिए पत्थरों का सेतु बन पाया।