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जीवन दर्शन: निरंतर निराकार की भक्ति करने वाला ही परमेश्वर को पा सकता है

श्रीकृष्ण कहते हैं ‘अगर कोई निरंतर निराकार की भक्ति कर सकता है तो वह भी मुझे पा सकता है।’ जब वह ‘मैं’ कहते हैं तो वह किसी व्यक्ति के रूप में अपनी बात नहीं करते हैं वह उस आयाम की बात करते हैं जिसमें साकार और निराकार दोनों शामिल होते हैं। ‘यदि कोई वह रास्ता अपनाता है तो वह भी मुझे प्राप्त कर सकता है।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarPublished: Sun, 17 Dec 2023 11:23 AM (IST)Updated: Sun, 17 Dec 2023 11:23 AM (IST)
जीवन दर्शन: निरंतर निराकार की भक्ति करने वाला ही परमेश्वर को पा सकता है

सद्गुरु, (ईशा फाउंडेशन के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु): श्रीमद्भगवद्गीता के 12वें अध्याय भक्ति योग में अर्जुन ने पूछा,‘जो भक्त आपके प्रेम में डूबे रहकर आपके सगुण रूप की पूजा करते हैं, या फिर जो शाश्वत, अविनाशी और निराकार की पूजा करते हैं, इन दोनों में से कौन अधिक श्रेष्ठ है?’ भगवान श्रीकृष्ण बोले, ‘जो लोग मुझमें अपने मन को एकाग्र करके निरंतर मेरी पूजा और भक्ति करते हैं तथा खुद को मुझे समर्पित कर देते हैं, वे मेरे परम भक्त होते हैं। जो लोग मन-बुद्धि से परे सर्वव्यापी, निराकार की आराधना करते हैं, वे भी मुझे प्राप्त कर लेते हैं।

मगर जो लोग मेरे निराकार स्वरूप में आसक्त होते हैं, उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि सशरीर जीव के लिए उस रास्ते पर चलना बहुत कठिन है। मगर हे अर्जुन, जो लोग पूरे विश्वास के साथ अपने मन को मुझमें लगाते हैं और मेरी भक्ति में लीन होते हैं, उन्हें मैं जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर देता हूं।’ जो अव्यक्त और निराकार होता है, उसका आप अनुभव नहीं कर सकते। उसमें आप सिर्फ विश्वास कर सकते हैं। चाहे आप निराकार में विश्वास करते हों, फिर भी जो नहीं है, उसके प्रति गहरी भक्ति और प्रेम को विकसित करते हुए उसे बनाए रखना आपके लिए बहुत मुश्किल होगा। जो है, उसकी भक्ति करना आपके लिए ज्यादा आसान है।

श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘अगर कोई निरंतर निराकार की भक्ति कर सकता है, तो वह भी मुझे पा सकता है।’ जब वह ‘मैं’ कहते हैं, तो वह किसी व्यक्ति के रूप में अपनी बात नहीं करते हैं, वह उस आयाम की बात करते हैं, जिसमें साकार और निराकार दोनों शामिल होते हैं। ‘यदि कोई वह रास्ता अपनाता है, तो वह भी मुझे प्राप्त कर सकता है, मगर उसे बहुत मुश्किलें झेलनी पड़ेंगी।’ क्योंकि जो चीज नहीं है, उसमें मन लगाना आपके लिए मुश्किल है। अपनी भक्ति में लगातार स्थिर होने के लिए आपको एक आकार, एक रूप, एक नाम की जरूरत पड़ती है, जिससे आप जुड़ सकें।

‘सशरीर जीव के लिए उस रास्ते पर चलना कठिन है।’ इसका मतलब है कि अगर आप शरीर और बुद्धि-विवेक युक्त जीव की तरह, अस्तित्व के एक निराकार आयाम की आराधना करते हैं, तो आपकी बुद्धि रोज आपसे पूछेगी कि आप किसी मंजिल की तरफ बढ़ भी रहे हैं या यूं ही समय बर्बाद कर रहे हैं। जो शरीरहीन जीव (शरीर से उठ चुके, विदेह हो चुके) हैं, उनके लिए संभावना मौजूद है, क्योंकि उन्हें अपनी बुद्धि के साथ तर्क-वितर्क नहीं करना पड़ता, वे अपने झुकाव और प्रवृत्ति के मुताबिक चलते हैं।

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इसलिए, अशरीरी जीवों के लिए यह उपयुक्त मार्ग है, क्योंकि वे पंचतत्वों की सीमाओं से परे होते हैं, बुद्धि और विवेक की सीमाओं से परे होते हैं। मगर किसी सशरीर जीव के लिए अपनी भावनाओं को किसी ऐसी चीज में लगाना बेहतर होता है, जिससे आप जुड़ सकें। इसलिए भगवान कहते हैं कि एक जीवित व्यक्ति के रूप में उनका ध्यान करने पर उन्हें प्राप्त करना अधिक आसान है। निराकार की खोज आपके भीतर एक दार्शनिक नाटक बन सकती है, जिसमें आप बिना आगे बढ़े वहीं के वहीं अटके रह सकते हैं।

‘मगर हे अर्जुन, जो लोग पूरे विश्वास के साथ अपने मन को मुझमें लगाते हैं और मेरी भक्ति में लीन होते हैं, उन्हें मैं जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दे देता हूं।’ यह सिर्फ कृष्ण ने नहीं कहा है। हर पूर्ण आत्मज्ञानी जीव किसी न किसी रूप में यही कहता है। जब लोग मुझसे इस तरह के सवाल पूछते हैं कि ‘क्या मुझे इस जन्म में मुक्ति मिलेगी?’ तो मैं उनसे कहता हूं, ‘आप सिर्फ मेरी बस में चढ़ जाइए, आपको ड्राइव नहीं करना पड़ेगा, आपको सिर्फ बस में बैठना है।’ मगर आपका अहं ऐसा है कि आप बस को चलाना भी चाहते हैं।

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अगर आप किसी विशेष व्यक्ति की मौजूदगी में हैं, तो आखिरी वक्त में आपकी मुक्ति आसान हो जाती है। सवाल यह है कि आप अपने बाकी जीवन को कितनी खूबसूरती से जीते हैं। चाहे आपने कैसा भी जीवन जिया हो, किसी विशेष की उपस्थिति में आपकी चरम मुक्ति में कोई परेशानी नहीं होगी। बस अपने जीवन के आखिरी पलों में आप सारा काम बिगाड़ न दें। अगर आखिरी पल में भी आपको आवश्यक ज्ञान नहीं होता है और आप गुस्सा, नफरत या लालसा की भावनाओं के वशीभूत हो जाते हैं, तो आपका अगला जन्म हो सकता है। वरना, एक बार आप मेरे साथ बैठने की गलती कर लें, तो जब आप मरेंगे तो वह अच्छे के लिए होगा। यहां पर भी वह यही कह रहे हैं। अंग्रेजी में यह अनुवाद बिल्कुल सटीक नहीं हैं। वास्तव में वह कहते हैं, ‘अगर कम से कम एक पल के लिए भी तुम्हारा ध्यान पूरी तरह मुझमें लगा हुआ है, तो तुम मुझे पा लोगे।’

कृष्ण बाहरी स्थितियां अर्जुन पर छोड़कर, भीतरी स्थितियां खुद संभालते हैं। वह अर्जुन से कहते हैं, ‘युद्ध के परिणाम की चिंता मत करो। तुम यहां हो। तुम्हें लड़ना है। तुम जीतोगे या नहीं, यह तुम्हारी योग्यता है और बाकी चीजों पर निर्भर करता है। बस लड़ो और अच्छी तरह लड़ो। अगर तुम जीतते हो, तो राज्य का आनंद उठाओ। अगर तुम मर जाते हो, तो मैं तुम्हारा परम कल्याण सुनिश्चित करूंगा।’ यहां पर भी वह यह स्पष्ट कर रहे हैं कि जब बात बाहरी स्थितियों की होती है, तो वह हर चीज सुनिश्चित नहीं कर सकते। आंतरिक स्थितियों में पूरी गारंटी होती है।

मगर वह कहते हैं, ‘मैं यह पक्का करूंगा कि आपको आगे जन्म न लेना पड़े।’ मेरे साथ भी यह सच है। मैं पक्का कर सकता हूं कि आपको दोबारा जन्म न लेना पड़े, मगर मैं यह पक्का नहीं कर सकता कि आपको कल नाश्ता मिल जाए। किसी तार्किक दिमाग को यह बात बेतुकी लग सकती है, अगर आप इतनी बड़ी चीज सुनिश्चित कर सकते हैं, तो आप नाश्ता सुनिश्चित क्यों नहीं कर सकते?’ जीवन का सत्य यही है। मैं आपके लिए कल का नाश्ता पक्का नहीं कर सकता, मगर मैं आपका परम कल्याण सुनिश्चित कर सकता हूं। जब आंतरिक आयामों की बात आती है, तो मैं उसका पूरा जिम्मा ले सकता हूं। जब बाहरी स्थितियों की बात आती है, तो कोई गारंटी नहीं होती, हर किसी को संघर्ष करना पड़ता है।


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