जीवन दर्शन: जिंदगी अपनी विभिन्नताओं के कारण ही दिलचस्प लगती है...
एक बात समझ लें हमारे चारों ओर के लोग बहुत ही अच्छे हैं उनमें कोई ऐब नहीं है। संभव है एकाध मौकों पर पागलों जैसा व्यवहार हो गया हो उन्हें तूल देना उचित नहीं है। चाहे रिश्तेदार हों सहकर्मी हों चाहे मित्र हों या पड़ोसी देश के हों दुनिया में पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति हो उनके पास ऐसे गुण होंगे जो आपको पसंद हों।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 15 Oct 2023 01:00 PM (IST)
सद्गुरु, (ईशा फाउंडेशन के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु): क्या आप दूसरों को समझ पाए हैं? संसार में दूसरों के साथ आपका रिश्ता कैसा है, यह आपके जीवन की गुणवत्ता का निर्णय करने वाले घटकों में प्रमुख स्थान रखता है। यहां आपको नाना प्रकार के लोगों से पाला पड़ता है। एक छोटे से चौकोर कमरे में केवल एक सहयोगी के साथ बैठकर काम करना पड़े तो समस्याओं से निपटना आसान होता है, लेकिन सैकड़ों कर्मचारियों को निभाने की नौबत आने पर आपको कई विचित्र अनुभव मिलेंगे।
यह भी पढ़ें- जीवन दर्शन: सृष्टि के चर-अचर सब प्राणियों का प्रेम व स्नेह के साथ मार्गदर्शन करती हैं मां जगदंबाबेशक आप प्रमुख व्यक्ति हो सकते हैं, मगर यदि आप चाहते हैं कि सभी कर्मचारी आपको समझें और आपके मन के अनुसार काम करें, तो इसमें आपको भारी निराशा ही हाथ लगेगी। यह स्थिति इसलिए पैदा नहीं हुई कि दूसरे लोग आपको समझ नहीं पाए, बल्कि इसलिए उत्पन्न हुई कि आप दूसरों को समझ नहीं पाए।
कर्मचारियों से ही क्यों, निकट के कई संबंधियों से भी कई बार आपको निराशा मिली होगी। एक बार किसी महिला ने महीनों तक ‘कोमा’ की स्थिति में चले गए अपने पति की बड़ी निष्ठा और लगन के साथ सेवा-टहल की। जब पति को होश आया, उसने अपनी पत्नी को पास में बुलाया और कहा, ‘संकट की हर घड़ी में तुमने मेरा साथ दिया है।जब मेरी नौकरी चली गई थी, तुमने आशाजनक वचन बोलकर मुझे दिलासा दिया। फिर मैंने अपना कारोबार शुरू किया, उसमें नुकसान-दर-नुकसान होने पर तुमने रात-दिन काम करके पैसा कमाया और परिवार चलाया था। मुकदमे में जब हमारे मकान की कुर्की हो गई तब भी मन छोटा किए बिना तुम मेरे साथ छोटे घर में रहने के लिए चली आईं।
आज अस्पताल के इस बिस्तर में भी तुम मेरे साथ रहती हो। पता है, तुम्हें देखते हुए मेरे मन में कौन-सा ख्याल आता है?’ वह धीमी आवाज में बोल रहा था। पत्नी की आंखों में आनंद के आंसू थे। गदगद होकर उसने पति के हाथों को पकड़ लिया। पति ने कहा, ‘मुझे लगता है तुम हमेशा मेरे साथ रहती हो, इसी वजह से मेरे ऊपर एक के बाद एक संकट के पहाड़ टूट रहे हैं।’इस तरह बातों को उल्टे दिमाग से गलत ढंग से समझने वाले लोगों के साथ कौन-सा रिश्ता स्थायी रह सकता है? रिश्तों को कैसे निभाना है? हम उन्हें कैसे निभा रहे हैं? चाहे कितना ही घनिष्ठ मित्र हो, हमने उसके और अपने बीच एक सीमा रेखा खींच रखी है। दोनों में से कोई भी उसे लांघे तो विरोध का झंडा उठा देते हैं। कोई एक उदारतापूर्वक झुक जाए, तभी कड़वाहट दूर हो सकती है।
एक बात समझ लें, हमारे चारों ओर के लोग बहुत ही अच्छे हैं, उनमें कोई ऐब नहीं है। संभव है, एकाध मौकों पर पागलों जैसा व्यवहार हो गया हो, उन्हें तूल देना उचित नहीं है। चाहे रिश्तेदार हों, सहकर्मी हों, चाहे मित्र हों या पड़ोसी देश के हों, दुनिया में पैदा हुआ कोई भी व्यक्ति हो, उनके पास ऐसे गुण होंगे, जो आपको पसंद हों। ऐसे गुण भी होंगे, जो आपको पसंद न हों।दोनों तरह के गुणों को समान रूप से स्वीकार करने की परिपक्वता आ जाए, तो सारी समस्याएं खत्म हो जाएं। इसके विपरीत जरूरत पड़ने पर दूसरों पर लाड़-प्यार बरसाने और जरूरत खत्म होने पर उन्हें दुत्कारने का रवैया जब तक रहेगा, अनबन और मनमुटाव का माहौल बना ही रहेगा। एक बात समझ लें, हमारे चारों ओर के लोग बहुत ही अच्छे हैं, उनमें कोई ऐब नहीं है। संभव है, एकाध मौकों पर पागलों जैसा व्यवहार हो गया हो। उन्हें तूल देना उचित नहीं है।
आप क्यों ऐसी प्रतीक्षा करते हैं कि वे बदल जाएं? आप स्वयं बदलिए न। जहां जिन-जिन से जैसा व्यवहार करना चाहिए, वैसा बरतने के लिए तैयार रहिए। अगले व्यक्ति से निपटने के लिए जो युक्ति कारगर रहेगी, उसका प्रयोग कीजिए। एक बार शंकरन पिल्लै एक खुली नाली के अंदर गिर पड़े। बड़ी कोशिशों के बावजूद बाहर नहीं निकल पाए। ऊंची आवाज में चिल्लाने लगे, ‘बचाओ, आग... आग!’आसपास के लोग घबरा गए। दमकल वालों को बुलवा लिया। उन्होंने शंकरन पिल्लै को बाहर निकाला। पूछने लगे, ‘आप तो चिल्ला रहे थे आग आग! कहां है आग?’ शंकरन पिल्लै ने पूछा-‘अगर मैं नाली-नाली चिल्लाता रहूं, आप थोड़े ही आते! इसलिए मैंने आवाज लगाई, आग...आग!’
घर के सभी लोग बदलकर यदि आप जैसे हो जाएं तो सोचिए क्या होगा? फिर आप किसे डांटेंगे-‘बेवकूफ कहीं का’ अक्लमंद कहकर किसको दाद देंगे? आध घंटे भर भी नहीं निभा सकते। यदि घर में ही यह हाल रहे तो पूरी दुनिया को अपने समान बदलने की कोशिश करना कितनी बड़ी नासमझी है?जिंदगी अपनी विभिन्नताओं के कारण ही दिलचस्प लगती है। इंतजार मत कीजिए कि प्रत्येक व्यक्ति आपकी इच्छानुसार अपने को ढाल लें, बल्कि अगले आदमी को उसी रूप में अपनाइए। ऐसा करने पर चाहे दूसरे लोग आपके मन के अनुसार न बदलें, जिंदगी आपके मनोनुकूल बन जाएगी।