जीवन दर्शन: योग के द्वारा मन को कैसे काबू में करें?
सत्य की खोज अपने आप में एक बहुत बड़ा छलावा है क्योंकि जिसे हम ‘सत्य’ कहते हैं वह हमेशा और हर कहीं उपस्थित होता है। हमें उसे खोजना या ढूंढ़ना नहीं पड़ता। वह तो हमेशा मौजूद है। वस्तुत समस्या सिर्फ यह है कि आप जीवन का अनुभव सिर्फ सीमित आयाम के माध्यम से ही करने में सक्षम हैं। यह जो सीमित आयाम है इसे मन कहते हैं।
By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik SharmaUpdated: Mon, 19 Feb 2024 04:41 PM (IST)
नई दिल्ली, सद्गुरु (ईशा फाउंडेशन)। सुख या दुख मन की अवस्था पर निर्भर करता है। चंचल मन हमारी भावनाओं को नियंत्रित करने लगता है। मन को शांत करके ही हम अपने जीवन में ऐसी स्थिति ला सकते हैं, जहां सुख दुख का प्रभाव कम से कम हो। यह योग से संभव है।
सत्य की खोज अपने आप में एक बहुत बड़ा छलावा है, क्योंकि जिसे हम ‘सत्य’ कहते हैं, वह हमेशा और हर कहीं उपस्थित होता है। हमें उसे खोजना या ढूंढ़ना नहीं पड़ता। वह तो हमेशा मौजूद है। वस्तुत: समस्या सिर्फ यह है कि आप जीवन का अनुभव सिर्फ सीमित आयाम के माध्यम से ही करने में सक्षम हैं। यह जो सीमित आयाम है, इसे मन कहते हैं।
पतंजलि ने योग को ‘चित्तवृत्ति निरोध’ कहा है। इसका मतलब है कि अगर आप मन की चंचलता या गतिविधियों को स्थिर कर सकते हैं, तो आप योग को प्राप्त कर सकते हैं। आपकी चेतनता में सब कुछ एक हो जाता है। योग में मन को स्थिर करने के लिए अनेक उपकरण और उपाय हैं। हम अपने जीवन में ऐसे बहुत सारे कार्य करते हैं, ऐसी प्रक्रियाओं से गुजरते हैं, जिन्हें हम अपनी उपलब्धियां कहते हैं, मगर मन की चंचलता से परे जाना सबसे मूलभूत और सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। यह इंसान को उसकी किसी भी खोज, अंदर और बाहर के अंतर आदि प्रत्येक से मुक्त कर देता है। मात्र एक अपने मन को स्थिर करके वह व्यक्ति एक चरम संभावना बन सकता है।
प्रसन्नता और शांति बड़ी कोमल और क्षणिक होती है
अधिकांश लोगों का लक्ष्य अपने जीवन में प्रसन्नता और शांति प्राप्त करना होता है। हम अपने जीवन में जो प्रसन्नता और शांति जानते हैं, वह मुख्यत: बड़ी कोमल और क्षणिक होती है। वह हमेशा बाहरी स्थितियों के अधीन होती है। इसलिए ज्यादातर लोग एक सटीक बाहरी स्थिति बनाए रखने की कोशिश में पूरा जीवन बिता देते हैं, जो प्राप्त करना असंभव है। योग आंतरिक स्थिति पर जोर देता है। अगर आप एक सटीक आंतरिक स्थिति पैदा कर सकते हैं, तो बाहरी स्थिति चाहे जैसी भी हो, आप पूर्ण आनंद और शांति में मग्न हो सकते हैं।
गुरु के साथ आनंद और प्रसन्नता मिलती थीमुझे दक्षिण भारतीय योग परंपरा की एक कहानी की याद आ रही है। एक बार तत्वार्य नामक एक शिष्य था। उसे अपने जीवन में एक महान गुरु का सान्निध्य मिला था, जिनका नाम स्वरूपानंद था। यह गुरु मौन रहते थे। वे कभी-कभार बात भी करते थे, मगर एक गुरु के रूप में उन्होंने कभी कुछ नहीं बोला था। वह एक मौन गुरु थे। तत्वार्य को अपने गुरु के साथ अपार आनंद और प्रसन्नता मिलती थी। उसने अपने गुरु के लिए एक भरणी (विरुदावली) रची। भरणी तमिल में एक प्रकार की काव्य रचना होती है, जिसे महान नायकों के लिए रचा जाता है। समाज में विरोध हुआ और कहा गया कि ऐसे व्यक्ति के लिए भरणी नहीं लिखी जा सकती, जिसने कभी अपना मुंह खोला तक न हो और चुपचाप बैठे रहने के सिवा और कुछ न किया हो। यह किसी महान विजेता या महानायक के लिए ही रची जा सकती है, जैसे किसी ने एक हजार हाथियों को मारा हो। जिसने कभी अपना मुंह न खोला हो, निश्चित रूप से वह भरणी लिखे जाने के योग्य नहीं हैं। तत्वार्य ने कहा, ‘नहीं, मेरे गुरु इससे कहीं ज्यादा के योग्य हैं, मगर मैं उनके लिए सिर्फ इतना ही कर सकता हूं।’
शहर में इस पर खूब चर्चा हुई। फिर तत्वार्य ने तय किया कि इस मुद्दे को सुलझाने का बस यही उपाय है कि इन लोगों को अपने गुरु के पास ले जाया जाए। उसके गुरु एक पेड़ के नीचे मौन बैठे थे। वे सब जाकर वहां बैठ गए और तत्वार्य ने गुरु के सामने समस्या रखी, ‘मैंने आपके सम्मान में एक भरणी रची है, जिसका लोग विरोध कर रहे हैं। इनका कहना है कि भरणी सिर्फ महान नायकों के लिए ही रची जा सकती है।’ गुरु ने सारी बात सुनी और चुपचाप बैठे रहे। सभी लोग चुपचाप बैठे रहे। घंटों बीत गए, वे चुपचाप बैठे रहे।
स्वरूपानंद ने अपने मन को किया सक्रियदिन बीत गया और वे चुपचाप बैठे रहे। इस तरह सब लोग वहां आठ दिनों तक यूं ही बैठे रहे। उन सभी के आठ दिनों तक मौन बैठे रहने के बाद स्वरूपानंद ने अपने मन को सक्रिय किया। तब अचानक सबकी विचार प्रक्रिया भी सक्रिय हो गई। तब जाकर उन्हें प्रतीत हुआ कि असली नायक तो यह है, जिसने ‘मन’ और ‘अहं’ नाम के इन मतवाले हाथियों को वश में कर लिया था। आठ दिनों तक गुरु के साथ बैठने के दौरान ये दोनों हाथी शांत और स्थिर थे। फिर उन्होंने कहा, ‘यही वह इंसान है, जो वाकई भरणी के लायक है।’
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