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शरद पूर्णिमा विशेष: क्या था जगद्गुरु कृपालु जी के जन्म का उद्देश्य ?

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का जन्म सन् 1922 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के निकट स्थित मनगढ़ गाँव में शरद पूर्णिमा की रात्रि को हुआ। उनका आगमन मध्यरात्रि में हुआ जो 5000 वर्ष पूर्व वृंदावन में उस क्षण का अनुसरण करता है जब श्री राधा-कृष्ण ने जीवों को महा-रास का विलक्षण आनंद प्रदान किया था। मध्यरात्रि का यह समय उनके दिव्य प्रयोजन का सूचक था।

By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Wed, 16 Oct 2024 03:57 PM (IST)
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क्या था जगद्गुरु कृपालु जी के जन्म का उद्देश्य ?
ब्रांड डेस्क, नई दिल्ली। हम सभी जीवन में निरंतर आनंद की तलाश करते रहते हैं, लेकिन वह हमारे हाथों से ऐसे फिसल जाता है जैसे बंद मुट्ठी से रेत। इसके विपरीत, हमारे बीच कुछ ऐसी भी हस्तियां होती हैं जो सदा से आनंद में डूबी हुई होती हैं। स्वयं की इच्छाओं से मुक्त, वे हमारी राह को आलोकित करने, हमें भगवान के प्रेम की राह दिखाने हमारे बीच आते हैं। इस दिव्य प्रेम का सर्वोत्तम रस, श्री राधा-कृष्ण द्वारा शरद पूर्णिमा की पवित्र रात्रि में महा-रास के माध्यम से दिया जाता है, जैसा कि श्रीमद्भागवत में वर्णित है। यह महारास एक अत्यंत ही विलक्षण रस है; इसे उन सामान्य रास लीलाओं की तरह न समझें, जो हम अक्सर बच्चों, स्थानीय समूहों या वृंदावन भ्रमण के समय देखते हैं।

कब हुआ जगद्गुरु कृपालु जी का जन्म?

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज का जन्म सन् 1922 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के निकट स्थित मनगढ़ गाँव में शरद पूर्णिमा की रात्रि को हुआ। उनका आगमन मध्यरात्रि में हुआ, जो 5,000 वर्ष पूर्व वृंदावन में उस क्षण का अनुसरण करता है जब श्री राधा-कृष्ण ने जीवों को महा-रास का विलक्षण आनंद प्रदान किया था। मध्यरात्रि का यह समय उनके दिव्य प्रयोजन का सूचक था।

अगली एक शताब्दी पर्यन्त, श्री कृपालु जी ने भारत और विश्वभर में वेदों के शाश्वत ज्ञान के प्रसार हितार्थ अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उनका उद्देश्य एक सरल और व्यावहारिक मार्ग प्रदान करना था, जिससे सर्वोच्च दिव्य आनंद प्राप्त किया जा सके। हजारों प्रेरक प्रवचनों के माध्यम से, उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भक्ति मन को करनी है, शारीरिक इन्द्रियों को नहीं एवं बिना मन के संयोग के कोई भी कर्म भगवान नोट ही नहीं करते। अनुयायियों द्वारा उन्हें स्नेहपूर्वक “श्री महाराज जी” कहकर सम्बोधित किया जाता है। उन्होंने वेद, भागवत, गीता, रामायण और अनेक धार्मिक ग्रंथों द्वारा यह सिद्ध किया कि भक्ति ही ईश्वर-प्राप्ति का सरलतम मार्ग है।

रूपध्यान: ध्यान की उन्नत विधि

भक्तों के मार्गदर्शन के लिए, श्री महाराज जी ने ध्यान की एक उन्नत विधि 'रूपध्यान' को प्रकट किया। श्री राधा कृष्ण के सुंदर रूप का यह ध्यान उनकी दिव्य लीलाओं, नामों और गुणों का स्मरण करते हुए किया जाता है जो इश्वर प्रेम को अतिशीघ्र प्रगाढ़ बना देता है। रूपध्यान का अभ्यास करते-करते जीव की भगवान के मिलन की व्याकुलता इतनी तीव्र हो जाती है कि वह भगवान के दर्शन के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकता। तब भगवान भक्त के समक्ष प्रकट हो जाते हैं, उसे माया के बंधन से मुक्त कर देते हैं और अपने शाश्वत धाम गोलोक में स्थान प्रदान करते हैं।

रूपध्यान के अभ्यास को सुगम बनाने हेतु, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने कई भक्तिमय रचनाएँ प्रकट कीं, जिनमें “प्रेम रस सिद्धांत” और “प्रेम रस मदिरा” प्रमुख हैं। प्रेम रस सिद्धांत श्री महाराज जी के भक्तियोग तत्वदर्शन का सार स्वरूप है जिसमें भक्ति पथ पर आने वाली प्रत्येक शंका का समाधान समाहित है। प्रेम रस मदिरा प्रेम-रस में डुबाने वाले 1,008 पदों का संगीतबद्ध संकलन है, जो भावुक प्राणियों को श्री राधा कृष्ण के प्रेम में डुबा देता है।

उनकी करुणा केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शन तक ही सीमित नहीं थी। श्री महाराज जी ने अनेक शैक्षिक संस्थानों और अस्पतालों की स्थापना की, जो आज भी गरीबों और ज़रूरतमंदों को निःशुल्क उच्च गुणवत्ता की सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने तीन प्रमुख मंदिरों—प्रेम मंदिर (वृंदावन), भक्ति मंदिर (श्री कृपालु धाम - मनगढ़), और कीर्ति मंदिर (बरसाना)—की भी स्थापना की, जो लाखों भक्तों के लिए भगवत पथ पर तीव्र गति से अग्रसर होने की आधारशिला बन चुके हैं।

जगद्गुरु कृपालु जी का 102वाँ जयंती समारोह

आगामी 16 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की 102वीं जयंती मनाई जाएगी। इस ऐतिहासिक अवसर पर भव्य महाआरती, अभिषेक, और मनोरम सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जायेंगे। पूरा महोत्सव जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर रात 9 बजे से 1 बजे तक लाइव स्ट्रीम किया जाएगा।

जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के विलक्षण प्रवचनों एवं सरस संकीर्तनों द्वारा लाखों व्यक्तियों के जीवन की दशा एवं दिशा परिवर्तित हो चुकी है। उनके भक्ति सिद्धांत को समझने के लिए एवं उसे अपने जीवन में उतारकर लाभान्वित होने के लिए, कृपया +918882480000 पर संपर्क करें या contact@jkp.org.in पर ईमेल करें।

अधिक जानकारी के लिए, जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के आधिकारिक WhatsApp चैनल पर जाएं।

Note:- यह आर्टिकल ब्रांड डेस्क द्वारा लिखा गया है।