Sita Ashtami 2023: पढ़िए शक्तिस्वरूपा सीता के अवतरण से जुड़ी अनसुनी कथा
Sita Ashtami 2023 फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन जनकनंदिनी सीता प्रकट हुई थीं। लेकिन इनके अवतरण से जुड़ी घटना से जनमानस अपरिचित नहीं है। आइए पढ़ते हैं माता सीता के प्रकट होने से जुड़ी अनसुनी कथा।
नई दिल्ली, संतोषकुमार तिवारी (रामकथा के अध्येता) | Sita Ashtami 2023: जगज्जननी सीता साक्षात महाशक्तिरूपा और लोककल्याण की अधिष्ठात्री देवी हैं। पृथ्वी से उत्पन्न होने के कारण इन्हें भूमिजा भी कहा जाता है। इनके अवतरण से जुड़ी घटना से जनमानस अपरिचित नहीं है। राजा जनक अपनी प्रजा को भीषण अकाल से मुक्त करने व उनके भरण-पोषण के लिए खेत में हल चलाते हैं। हल मूलत: भारतीय कृषि कर्म का जीवंत उपादान है। बिना हल के धनधान्य और लक्ष्मी की प्राप्ति संभव नहीं। हल को मैथिली भाषा में सीत कहते हैं। यद्यपि जनक के हल चलाते समय सीता धरती में एक कुंभ (घड़े) से प्राप्त हुईं, इसीलिए सीता कहलाईं। श्रम और लोकरक्षण की प्रबल भावना व औदार्य की देवी हैं सीता। प्राचीन ग्रंथ निर्णय सिंधु में कहा गया है:
फाल्गुनस्य च मासस्य कृष्णाष्टम्यां महीयते।
जाता दाशरथे पत्नी तस्मिन्नहनि जानकी।।
अर्थात् फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन दशरथ पुत्र प्रभु श्रीराम की पत्नी जनकनंदिनी प्रकट हुई थीं। अद्भुत रामायण में माता सीता के अवतरण से जुड़ी अलग और अद्भुत कथा मिलती है, जिसमें उन्हें लंकाधिपति रावण व मंदोदरी की कन्या बताया गया है। जिसे जन्म लेते ही मंदोदरी ने इसलिए समुद्र में प्रवाहित कर दिया, क्योंकि वेदवती नामक कन्या ने पूर्वजन्म में शाप दिया था कि वह रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेकर रावण के वंश के विनाश का कारण बनेगी। समुद्र ने इस कन्या को देवी पृथ्वी को पालन-पोषण हेतु सौंप दिया। कालांतर में वही पूर्वजन्म की वेदवती राजा जनक को धरती से सीता रूप में प्राप्त हुईं। निस्संतान राजा जनक और सुनयना पुत्री रूप में सीता को पाकर अत्यंत प्रसन्न हुए। सीता को सामान्य कन्या न मानकर उन्होंने यह प्रतिज्ञा की थी कि जो शिव के धनुष का खंडन करेगा, वही सीता का स्वामी होगा। सीता स्वयंवर में जनकराज श्रीराम को सीता का हाथ सौंपते हुए कहते हैं, 'हे कौशल्यानंदन! मेरी पुत्री सीता को पत्नी रूप में वरण कीजिए। यह आपके साथ प्रतिच्छाया के समान हमेशा उपस्थित रहेंगी।' सीता पिता द्वारा पति श्रीराम को दिए वचन का अक्षरश: पालन करते हुए जीवन में अनेक संकटों का बड़ी निर्भीकता से सामना करती हैं। यह प्रत्येक भारतीय महिला के लिए अनूठा उदाहरण है। लव और कुश का जन्म उनके निर्वासन के दिनों में ऋषि आश्रम में होता है। सीता अष्टमी को कुमारी कन्याएं और सुहागिन स्त्रियां दोनों माता सीता का पूजन करके व्रत रखती हैं। कन्याएं श्रीराम जैसे पति को प्राप्त करने की आकांक्षा से तो सुहागिन महिलाएं अपने अटल सुहाग की कामना से गौरी गणेश को साक्षी मानकर दिन भर श्रीराम की वामांगी शक्तिरूपा की पूजा-अर्चना करती हैं। पूजन के समय पीले फूल, वस्त्र एवं षोडश श्रृंगार की समस्त वस्तुओं को माता सीता को अर्पित करती हैं। पूजन के समय महिलाएं 'जानकी रामाभ्यां नम: या सीताया: नम:' का जप करके सीता को प्रसन्न करने का बहुविधि उद्यम करती हैं। श्रीराम और सीता सबसे आदर्श, मर्यादा संपन्न पति-पत्नी हैं। माता सीता लोक परलोक में अपने शील, सौंदर्य, सेवा, औदार्य, पराक्रम, नेतृत्व और परोपकारिता के लिए पूज्य और वंदनीय के साथ हर युग, देशकाल व समाज की आधी आबादी के लिए अनुकरणीय पात्र हैं और रहेंगी।