Samudra Manthan: निर्मल मन बिना साधना को समुचित दिशा नहीं मिलती
जब तक इंद्रियां वासना से विमुख नहीं होती हैं तब तक मन की चंचलता नहीं मिटती है क्योंकि इंद्रियों का स्वामी मन है। जब मन पवित्र और निर्मल हो जाता है तब इंद्रियां भी अंतर्मुखी होकर साधक की साधना में सहायक हो जाती हैं। वशिष्ठ योग में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि मनुष्य का मन ही उसके बंधन और मोक्ष का हेतु है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 11 Aug 2024 12:13 PM (IST)
आचार्य नारायण दास (श्रीभरतमिलाप आश्रम, ऋषिकेश)। समुद्र-मंथन के दूसरे क्रम में गो माता कामधेनु निकलीं, जिन्हें ब्रह्मवादी ऋषि-मुनियों ने लिया। जिससे लोक कल्याण के निमित्त किए जाने वाले यज्ञ हेतु गोघृतदुग्धादि सुलभ हो सके। कामधेनु गौ माता मन की निर्मलता का प्रतीक हैं। जब मन से विषय-वासना रूपी विष निकल जाता है, तब आत्मानुभूति हो जाती है अर्थात भगवत्प्राप्ति की अनुभूति हो जाती है। श्रीरामचरितमानस में यह भगवान श्रीराम जी का साधक की सिद्धि के लिए स्पष्ट रूप से डिंडिम घोष किया गया है :
निर्मल मन जन सो मोहिं पावा।मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।
जब तक मन निर्मल नहीं होगा, तब तक साधक की साधना की गति-मति को समुचित दिशा नहीं प्राप्त हो सकेगी। मन को नश्वर संसार के प्रति आकर्षित करने वाले तीन दोष अत्यंत प्रबल हैं, पहला-कपट, दूसरा है छल और तीसरा है छिद्र। जब व्यक्ति अपने स्वार्थ की सिद्धि हेतु किसी को धोखा देकर, उसकी भावना का दोहन करता है, तो यह कपट कहलाता है। जब वास्तविक रूप को छिपाकर, छद्मरूप धारण कर लोगों की भावना का दोहन कर, स्वार्थ सिद्धि की जाए तो उसे छल कहते हैं। ईर्ष्या के वशीभूत होकर, दूसरों के गुणों में दोषों का अनुसंधान करना ही छिद्र है। गो का एक अर्थ इंद्रिय भी होता है।
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जब तक इंद्रियां वासना से विमुख नहीं होती हैं, तब तक मन की चंचलता नहीं मिटती है, क्योंकि इंद्रियों का स्वामी मन है। जब मन पवित्र और निर्मल हो जाता है, तब इंद्रियां भी अंतर्मुखी होकर साधक की साधना में सहायक हो जाती हैं। वशिष्ठ योग में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि मनुष्य का मन ही उसके बंधन और मोक्ष का हेतु है। 'मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः'। जिस चाबी से ताला बंद होता है, उसी से खुलता भी है। केवल विपरीत क्रियाएं करनी होती हैं। किसी को भी छल, कपट और छिद्र अच्छा नहीं लगता है, फिर भला भगवान को कैसे रुचिकर होगा?
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समुद्र से कामधेनु गाय का निकलना इस तथ्य को भी अभिव्यंजित करता है कि गो के द्वारा ही चराचर सृष्टि सुरक्षित और संरक्षित होती है। गो को भारतीय संस्कृति में माता के तुल्य माना गया है, जिसके द्वारा निस्सरित समस्त पदार्थों से लोक मंगल होता है। गोमय-गाय का गोबर सबसे उत्तम माना गया है, जिसके प्रयोग से पृथ्वी की उर्वरा शक्ति संवर्धित होती है। गाय का दुग्ध और उससे निर्मित दधि, मक्खन, घृत आदि शरीर को हृष्ट-पुष्ट और निरोगी रखने में एक उत्तम और औषधियुक्त द्रव्य है। गोमूत्र से अनेकानेक रोगों का शमन हो जाता है। समुद्र मंथन से दूसरे क्रम पर कामधेनु गाय का निकलना यह संकेत है कि शरीर और साधना को संपुट करने के साथ-साथ गो संवर्धन और गो संरक्षण परम आवश्यक है।