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ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से शिव तत्व को इस तरह करें अनुभव

भगवान शिव का एक नाम अद्यंतहीन है जिसका कोई आदि और अंत ना हो। हममें से अधिकतर लौकिक रूप में यह सोचते हैं कि शिव अपने गले में सर्प लपेटे हुए पहाड़ों पर बैठे हैं लेकिन आध्यात्मिक रूप में शिव कोई व्यक्ति नहीं हैं चेतना हैं। शिव वह हैं जिसमें से हर एक का जन्म होता है जो इस क्षण को चला रहे हैं। जिसमें हर रचना विलीन हो जाएगी।

By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik SharmaUpdated: Mon, 04 Mar 2024 10:36 AM (IST)
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ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से शिव तत्व को इस तरह करें अनुभव
नई दिल्ली, श्री श्री रवि शंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता, आध्यात्मिक गुरु)। आप शिव की पूजा तभी कर सकते हैं, जब आप स्वयं शिव हों, चिदानंद रूप, शुद्ध आनंद की चेतना। शिव तपो योगगम्य हैं, उन्हें तप और योग के माध्यम से जाना जा सकता है। ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से शिव तत्व को अनुभव किया जा सकता है। महाशिवरात्रि (8 मार्च) पर विशेष।

शिव गहन मौन और स्थिरता का एक ऐसा आकाश हैं, जहां पर मन की सभी गतिविधियां घुल जाती है। यह आकाश, आप जहां पर भी हैं, वहीं पर है। आपको दिव्यता पाने के लिए बड़े-बड़े तीर्थ करने की आवश्यकता नहीं है। आप जहां पर हैं, यदि वहां पर दिव्यता नहीं पा सकते तो इसे अन्यत्र पाना असंभव है। जिस क्षण आप केंद्र में स्थित होते हैं, आप दिव्यता को हर क्षण, हर स्थान पर देखते हैं। ध्यान में ऐसा ही होता है।

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आध्यात्मिक रूप में शिव कोई व्यक्ति नहीं हैं
भगवान शिव का एक नाम अद्यंतहीन है, जिसका कोई आदि और अंत ना हो। हममें से अधिकतर लौकिक रूप में यह सोचते हैं कि शिव अपने गले में सर्प लपेटे हुए पहाड़ों पर बैठे हैं, लेकिन आध्यात्मिक रूप में शिव कोई व्यक्ति नहीं हैं, चेतना हैं। शिव वह हैं, जिसमें से हर एक का जन्म होता है, जो इस क्षण को चला रहे हैं। जिसमें हर रचना विलीन हो जाएगी। शिव की मूर्ति में जो भी रूप आप देख रहे हैं, वह उनका ही रूप है। सिर्फ उसी में नहीं, वे समस्त रचनाओं में समाए हुए हैं। ना तो उनका जन्म हुआ है, ना ही उनकी मृत्यु होगी। वे शाश्वत हैं।

महाशिवरात्रि के दिन शिव तत्व को इस तरह करें अनुभव

शिव को विरुपाक्ष भी कहा जाता है। इसका अर्थ है, जिसका कोई आकार ना हो, लेकिन वह सब देखता हो। ऐसा क्वांटम मैकेनिक्स में भी बताया गया है। वह जो देखता है और जो देखा जाता है, दोनों ही देखने की प्रक्रिया से प्रभावित हो जाते हैं। हम जानते हैं कि हमारे चारों तरफ वायु है और हम इसे अनुभव भी कर सकते हैं, लेकिन तब क्या हो, जब हवा भी हमें अनुभव करना आरंभ कर दे? हमारे चारों तरफ आकाश है, हम इसे पहचानते हैं, लेकिन क्या हो यदि आकाश हमारी उपस्थिति को पहचानने लगे? दिव्यता हमारे चारो ओर है और आपको देख रही है। यह हमारे अस्तित्व का निराकार भाग है और यही उद्देश्य भी - दृष्टा, दृश्य और देखा जाना। यह निराकार दिव्यता ही शिव है।

महाशिवरात्रि के दिन शिव तत्व को इस प्रकार अनुभव करना ही जागृति है। प्राय: जब उत्सव होता है तो सजगता नहीं होती। गहन विश्राम और जागृति के साथ उत्सव ही शिवरात्रि है। इसमें हम पूरी सजगता के साथ विश्राम करते हैं। जब आप किसी समस्या का सामना करते हैं तो आप सजग और सावधान होते हैं। जब सब कुछ सही हो तो हम विश्राम की अवस्था में होते हैं। लेकिन शिवरात्रि पर हम विश्राम सजगता के साथ करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि योगी तब भी जागता है, जब सब सो रहे होते हैं। एक योगी के लिए हर दिन शिवरात्रि होती है।

योग में शिव चेतना की चौथी तुरीय अवस्था है

योग में शिव चेतना की चौथी अवस्था है। तुरीय अवस्था। ध्यानस्थ अवस्था, जो जागृति, निद्रा और स्वप्नावस्था से परे है। शिव अद्वैत चेतना हैं, जो सब जगह उपस्थित हैं। इसलिए शिव पूजन से पहले अपने आप को शिव में विलीन करना होता है। आप शिव की पूजा तभी कर सकते हैं, जब आप स्वयं शिव हों। जो कि चिदानंद रूप है - शुद्ध आनंद की चेतना। शिव तपो योगा गम्या हैं, उन्हें तप और योग के माध्यम से जाना जा सकता है। बिना योग के शिव अनुभव नहीं हो सकते। योग का अर्थ मात्र आसनों से नहीं है, ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से शिव तत्व को अनुभव करना है।

पांच तत्वों को शिव के पांच मुख माने गए हैं

शिव को पंचमुख भी कहते हैं। पंचतत्व। पांच तत्वों को शिव के पांच मुख माने गए हैं। जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश। पांच तत्वों को समझना ही तत्वज्ञान है। शिव पूजन का अर्थ है, शिव तत्व में विलीन होना और फिर प्रत्येक के प्रति शुभेच्छा रखना। सर्वे जना सुखिनो भवंतु। महाशिवरात्रि पर अनेकता से युक्त चेतना को एकरूप चेतना में परिवर्तित करना है, जो कि हर एक रचना का कारण है।

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