जीवन दर्शन: भक्त के प्रयास सदा गुरु की सहायता से सुदृढ़ होते हैं
जब कोविड महामारी फैली और सबको अपने घरों में रहना पड़ा था तब बंदी के कारण सभी ध्यान केंद्र और आश्रम भी बंद थे। लॉकडाउन के कुछ महीने पूर्व ही योगदा में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ऑनलाइन ध्यान केंद्र का आरंभ किया गया था जिसमें भक्तगण एक साथ घर बैठे समूह ध्यान कार्यक्रमों और सत्संगों में भाग ले सकते थे।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 24 Dec 2023 12:46 PM (IST)
स्वामी चिदानंद गिरि । आइए, हम सत्संग के मूल सिद्धांत पर विचार करते हैं। परिवेश इच्छाशक्ति से अधिक शक्तिशाली होता है। जैसी हमारी संगति होती है, हम वैसे ही बन जाते हैं। हमारा परिवेश वैसा ही बन जाता है। यदि हम व्यापार अथवा खेल में अथवा किसी अन्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो भी हम उन लोगों जैसे बन जाते हैं, जिनके साथ हमारा मिलना-जुलना रहता है। सामूहिक चेतना हमारे व्यक्तिगत प्रयासों को प्रभावित करती है। मैंने प्रारंभ से ही इस बात पर बल दिया कि सप्ताह में एक या दो बार समूह ध्यान के लिए एकत्र होना चाहिए। यह सत्संग का एक उपाय है।
यह भी पढ़ें: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और शस्त्र के बीच कोई सेतु नहीं है
जब कोविड महामारी फैली और सबको अपने घरों में रहना पड़ा था, तब बंदी के कारण सभी ध्यान केंद्र और आश्रम भी बंद थे। लॉकडाउन के कुछ महीने पूर्व ही योगदा में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ऑनलाइन ध्यान केंद्र का आरंभ किया गया था, जिसमें भक्तगण एक साथ घर बैठे समूह ध्यान कार्यक्रमों और सत्संगों में भाग ले सकते थे। तीन साल के इस एकाकीपन के अनंतर संपूर्ण विश्व के लोगों के लिए यह एक वास्तविक जीवन रक्षक सिद्ध हुआ है। अब इसकी अद्भुत क्षमता का सदुपयोग सत्संग के लिए किया जा सकता है। यदि आप अपने घर से बाहर नहीं निकलते हैं तब भी इस शक्ति के प्रयोग से उचित पर्यावरण का निर्माण किया जा सकता है।
यह भी पढ़ें: कर्म करने की शक्ति प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन भगवान की प्रार्थना करें
एक बार जब आप किसी प्रबुद्ध संत के साथ एक गहन आध्यात्मिक संबंध स्थापित कर लेते हैं, तो आप कभी भी अकेले ध्यान नहीं करते हैं, क्योंकि भक्त के प्रयास सदा गुरु की सहायता से सुदृढ़ होते हैं, जो भक्त का परिचय ईश्वर के साथ कराते हैं। एक प्रकार से सत्संग का यह स्वरूप सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह बाह्य परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होता है और सदा पूर्ण रूप से उपलब्ध रहता है। मैं चाहे किसी ध्यान केंद्र के निकट हूं, कंप्यूटर के सामने हूं या किसी अन्य परिस्थिति में हूं, मेरे लिए स्थायी रूप से यह स्थान पवित्र शरणस्थली है, आत्मा का मंदिर है और भक्त एवं गुरु के मध्य होने वाला सत्संग है, जो कभी भी एक क्षण के लिए भी अनुपलब्ध नहीं होता है। वह सदा उपलब्ध रहता है।