क्रिया योग: ईश्वरीय गुण है प्रेम करना, इस तरह करें हिंसा और घृणा का विरोध
ध्यान हमें सब लोगों के साथ जोड़ देता है क्योंकि हम अपने अंदर ईश्वर की विद्यमानता का अनुभव करते हैं। तत्पश्चात जब हमारी चेतना विस्तृत हो जाती है तो हम पहले अवचेतन या सूक्ष्म स्तर पर और बाद में अधिक प्रत्यक्ष और चेतन स्तर पर दूसरे व्यक्तियों में ईश्वर की विद्यमानता के प्रति सचेतनता का अनुभव करने लगते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वर सबसे अधिक प्रेम करने योग्य हैं।
स्वामी चिदानन्द गिरि। ध्यान हमें सब लोगों के साथ जोड़ देता है, क्योंकि हम अपने अंदर ईश्वर की विद्यमानता का अनुभव करते हैं। तत्पश्चात जब हमारी चेतना विस्तृत हो जाती है, तो हम पहले अवचेतन या सूक्ष्म स्तर पर और बाद में अधिक प्रत्यक्ष और चेतन स्तर पर, दूसरे व्यक्तियों में ईश्वर की विद्यमानता के प्रति सचेतनता का अनुभव करने लगते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में ईश्वर सबसे अधिक प्रेम करने योग्य हैं।
ईश्वर सौंदर्य हैं, आनंद हैं और सुख हैं, सेवाशीलता हैं, और वे उन सब अद्भुत गुणों को अभिव्यक्त करते हैं, जिनके प्रति हमारे हृदय में सहज ही आदर और स्नेह उत्पन्न होता है।
प्रेम के स्रोत
इसलिए, जैसा कि दया माताजी ने बारंबार कहा है, प्रेम के स्रोत के पास जाना ही उस प्रेम को अपने हृदय में अनुभव करने की कुंजी है। यही उनके संपूर्ण जीवन का संदेश था। उन्होंने कहा, ‘मैं प्रेम की खोज कर रही थी। मैं ऐसे प्रेम का अनुभव करना चाहती थी, जिसमें मानवीय अपूर्णताओं के दोष नहीं हैं।’ उन्होंने कहा, ‘मैंने प्रारंभ में ही यह निश्चय कर लिया था कि मैं उस प्रेम की खोज करने के लिए ईश्वर के पास जाऊंगी।’ और कोई ईश्वर के पास कैसे जाता है? ध्यान के द्वारा!हिंसा और घृणा का विरोध ऐसे करें
प्रेम के द्वारा हम सांप्रदायिक हिंसा और घृणा का विरोध कर सकते है। सर्वप्रथम हमें सार्वभौमिकता, सद्भावना तथा अन्य धार्मिक परंपराओं के प्रति सम्मान का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए, जो हमारे गुरुदेव (परमहंस योगानन्दजी) की परंपराओं एवं शिक्षाओं में देखने को मिलता है। सांप्रदायिक हिंसा को रोक पाना एक क्रमिक विकास प्रक्रिया है, परंतु हममें से प्रत्येक व्यक्ति इसके प्रति अपना योगदान दे सकता है।
सर्वप्रथम, प्रेम, आदर और सद्भावना का आदर्श प्रस्तुत करके। और, जितने लोगों के साथ संभव हो, हमारे गुरुदेव के उन विभिन्न लेखों और पुस्तकों को साझा करके, जिनमें पृथक-पृथक धर्मों की आधारभूत समानता पर बल दिया गया है। उदाहरण के लिए, गुरुजी की पुस्तक : धर्म विज्ञान, मानव की निरंतर खोज या इस प्रकार की किसी अन्य पुस्तक के कुछ प्रकरण। ऐसा करने से हमारे समाज में इन विचारों का अधिक से अधिक संचार होगा।
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