Move to Jagran APP

आध्यात्मिक क्रांति के संदेशवाहक थे स्वामी दयानंद सरस्वती

एक बार महर्षि दयानंद सरस्वती गंगा किनारे समाधि में लीन थे। एक स्त्री पुत्र-वियोग में विलाप कर रही थी। दयानंद की समाधि खुल गई। उन्होंने देखा कि वह स्त्री बिना कफन के पुत्र की मृत देह गंगा में बहा रही है। इस दृश्य ने उन्हें इतना द्रवित कर दिया कि समाधि के अपने एकाकी सुख को छोड़कर वे लोक हित और लोक सुख में लग गए।

By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik SharmaUpdated: Mon, 05 Feb 2024 11:14 AM (IST)
Hero Image
स्वामी दयानंद सरस्वती आध्यात्मिक क्रांति के संदेशवाहक थे।
नई दिल्ली,धर्मपाल आर्य प्रधान (दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा)। Swami Dayanand Saraswati Jayanti 2024: एक बार महर्षि दयानंद सरस्वती गंगा किनारे समाधि में लीन थे। एक स्त्री पुत्र-वियोग में विलाप कर रही थी। दयानंद की समाधि खुल गई। उन्होंने देखा कि वह स्त्री बिना कफन के पुत्र की मृत देह गंगा में बहा रही है। इस दृश्य ने उन्हें इतना द्रवित कर दिया कि समाधि के अपने एकाकी सुख को छोड़कर वे लोक हित और लोक सुख में लग गए। पहले जहां योगी आत्मा से बाहर के जगत को अपने पथ में बाधा मानते थे, वहीं दयानंद जी संसार के दुख मिटाने निकले तथा जगत का हित किया। इसके लिए उन्होंने न केवल अनेक कष्ट सहे, बल्कि प्राणों का बलिदान भी किया।

स्वामी दयानंद को वेदों को अधिक ज्ञान था

स्वामी दयानंद योगी तो थे ही, साथ ही वेदों के प्रकांड विद्वान भी थे। वे संपूर्ण आध्यात्मिक क्रांति के संदेशवाहक थे। उनके सुधारवादी कार्यक्रमों में पूरे देश का कायाकल्प करने की शक्ति थी। स्त्रीशिक्षा, अछूतोद्धार, परतंत्रता निवारण, विधवा रक्षण, अनाथपालन, सबके लिए शिक्षा की अनिवार्यता, जन्मगत जाति के स्थान पर गुण-कर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था, समस्त मानवों के लिए वेदाध्ययन, अज्ञान, पाखंड, छल-प्रपंच आदि के विरुद्ध आंदोलन, सबको एक जाति मानना, समानता आधारित गुरुकुल प्रणाली का प्रचलन, सदाचार तथा ब्रह्मचर्य पर बल, पठनीय तथा अपठनीय ग्रंथों का विवेचन, आर्यावर्त का गौरव वर्धन, हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने, देश में कला कौशल तथा विज्ञान पर बल, कृषक को राजाओं का राजा कहकर हरितक्रांति का संदेश, गौ का महत्व सिद्ध कर पशुमात्र की रक्षा पर बल, नशामुक्ति का उपदेश, परमेश्वर की उपासना एवं पंच-महायज्ञों का विधान, स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की प्रेरणा, मिथ्या मत-मतांतरों का खंडन, स्वर्णिम वैदिक काल के पुनरागमन की कल्पना आदि उनके कार्यक्रम के अंग थे।

यह भी पढ़ें: चिंतन धरोहर: समचित्त बन जाना है मुक्ति

वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है- स्वामी दयानंद

स्वामी जी के समय में आर्यावर्त पराधीनता में जकड़ा हुआ था। भारत की पराधीनता, निर्धनता, विधवा व अनाथों की दुर्दशा, नारी अशिक्षा, अछूतों की दीनदशा, धर्म के नाम पर छल-कपट, व्यभिचार, अज्ञानता आदि दयानंद जी को सालती थीं। सब दुखियों के दुख को वे अपना ही दुख मानते थे। उन्होंने योग तथा पूर्ण आर्ष विद्या के आधार पर वेद के वास्तविक आशय को स्पष्ट कर उसके महत्व को बढ़ाया। उन्होंने अपने भाष्य में यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि वेद सब सत्य विद्याओं की पुस्तक है। उनके वेद भाष्य में सत्यविज्ञान, समाजविज्ञान, भौतिकविज्ञान तथा आत्मविज्ञान के उच्च तत्वों को खोजा जा सकता है।

उनके वेद भाष्य में प्राप्त निर्देश आज के वैज्ञानिक युग को भी नई दिशा देने में समर्थ हैं। प्राणिमात्र के उत्थान के लिए स्वामी दयानंद आजीवन योद्धा की भांति जूझते रहे तथा अंत में उसी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। किसी को निराश न लौटाने वाले दयानंद मृत्यु को भी क्यों निराश करते? अपने विषदाता को भी उन्होंने अभयदान दे उसके जीवन की रक्षा की। अंत समय वे बैठे, ईश्वर का स्मरण किया और कहा - ईश्वर! तेरी इच्छा पूर्ण हो, तूने बड़ी लीला की... और प्राण को महाप्राण में विलीन कर दिया। न वेदभाष्य के अधूरे रहने का दुःख और ना आर्यसमाज रूपी पौधे का।

अनेक कष्ट सहकर भी वह धर्म के मार्ग पर अडिग रहे। धर्म पालन के लिए उन्होंने बहुत कुछ सहा। तलवार के वार, ईंट-पत्थर, निंदा, अपमान, मिथ्यारोप, प्राणहरण के प्रयास - ये सब उन्हें धर्म मार्ग से विचलित न कर सके। 'इदम् धर्माय-इदम् न मम' कहकर आत्मबलिदान देने वाले संसार में कितने मिलेंगे? सचमुच 'न्यायात पथः प्रविचलन्ति पदम् न धीराः' अर्थात अनेक संकट आने पर भी धैर्यशील जन न्याय के पथ से एक पग भी विचलित नहीं होते।

दयानंद धीरता के मूर्तिमान उदाहरण हैं। समग्र क्रांति का अग्रदूत होते हुए भी इस महापुरुष ने कोई नया मत नहीं चलाया, अपितु प्राचीन वैदिक मान्यताओं पर आधारित तथा उसी का प्रचार-प्रसार करने के लिए एक समाज की स्थापना की। स्वामी जी के 200वें जन्म दिवस पर संपूर्ण विश्व उस महान योगी से प्रेरणा का संकल्प लेता है।

यह भी पढ़ें: जीवन दर्शन: आंतरिक शक्ति बढ़ाता है मौन