मां सरस्वती की पूजा से दूर होगा जीवन का अंधकार
संत पंचमी तिथि में भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होने के कारण संसार में सर्वत्र इसे विद्या जयंती कहा जाता है। सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनकी कृपा का वरदान प्राप्त होने की पुण्य तिथि हर्षोल्लास के साथ मनाएं यह उचित ही है। दिव्य शक्तियों के मानवीय आवृत्ति में चित्रित करके ही उनके प्रति भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है।
By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik SharmaUpdated: Mon, 12 Feb 2024 06:08 PM (IST)
नई दिल्ली। डा. प्रणव पण्ड्या (कुलाधिपति, देवसंस्कृति विश्वविद्यालय)। वसंत पंचमी तिथि में भगवती सरस्वती का प्रादुर्भाव होने के कारण संसार में सर्वत्र इसे विद्या जयंती कहा जाता है। सरस्वती विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनकी कृपा का वरदान प्राप्त होने की पुण्य तिथि हर्षोल्लास के साथ मनाएं, यह उचित ही है। दिव्य शक्तियों के मानवीय आवृत्ति में चित्रित करके ही उनके प्रति भावनाओं की अभिव्यक्ति संभव है। इसी चेतना विज्ञान को ध्यान में रखते हुए भारतीय तत्ववेत्ताओं ने प्रत्येक दिव्य शक्ति को मानुषी आकृति और भाव गरिमा से संजोया है। इनकी पूजा, अर्चना-वंदना, धारणा हमारी चेतना को देवगरिमा के समान ऊंचा उठा देती है। साधना विज्ञान का सारा ढांचा इसी आधार पर खड़ा है।
यह भी पढ़ें: ज्ञान शारीरिक और बौद्धिक अहंकार से करता है मुक्तभगवती सरस्वती का वाहन मयूर है
मां सरस्वती के हाथ में स्थित पुस्तक ‘ज्ञान’ का प्रतीक है। यह व्यक्ति की आध्यात्मिक एवं भौतिक प्रगति के लिए स्वाध्याय की अनिवार्यता की प्रेरणा देता है। ज्ञान की गरिमा को समझते हुए उसके लिए मन में उत्कट अभीप्सा जाग पड़े, तो समझना चाहिए कि सरस्वती पूजन की प्रक्रिया ने अंतःकरण तक प्रवेश पा लिया। भगवती सरस्वती का वाहन मयूर है और उन्होंने हाथ में वीणा ले रखी है।
प्रदात्यै प्रेरणा वाद्य विना हस्ताम्बुजं हि यत्।
हृतन्त्री खलु चास्माकं सर्वदा झंकृता भवेत्॥कर कमलों में वीणा धारण करने वाली मां भगवती वाद्य से प्रेरणा प्रदान करती हैं कि हमारी हृदय रूपी वीणा सैदव झंकृत रहनी चाहिए। हाथ में वीणा का अर्थ संगीत गायन जैसी भावोत्तेजक प्रक्रिया को अपनी प्रसुप्त सरसता सजग करने के लिए प्रयुक्त करना चाहिए। हम कला प्रेमी, कला पारखी, कला के पुजारी और संरक्षक भी बने। मयूर अर्थात् मधुरभाषी। हमें मां सरस्वती का अनुग्रह पाने के लिए उनका वाहन मयूर बनना ही चाहिए। मधुर, नम्र, विनीत, सज्जनता, शिष्टता और आत्मीयता युक्त संभाषण करना चाहिए। प्रकृति ने मोर को कलात्मक सुसज्जित बनाया है। हमें भी अपनी अभिरुचि को परिष्कृत बनानी चाहिए। तभी भगवती सरस्वती देवी हमें पार्षद, वाहन, प्रिय पात्र मानेंगी।
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती हुई थीं प्रकट
मां सरस्वती की प्रतीक प्रतिमा अथवा चित्र के आगे पूजा-अर्चना का सीधा तात्पर्य यह है कि शिक्षा की महत्ता को स्वीकार और शिरोधार्य किया जाए। प्राचीन काल में जब हमारे देशवासी सच्चे हृदय से सरस्वती की उपासना और पूजा करते थे, तब हमारे देश को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त थी। विश्व भर के लोग सत्य-ज्ञान की खोज में यहां आते थे और भारतीय गुरुओं के चरणों में बैठकर विद्या सीखते थे। ज्ञान की देवी मां भगवती के इस जन्मदिन पर यह अत्यंत आवश्यक है कि हम पर्व से जुड़ी हुई प्रेरणाओं से जन-जन को जोड़े, दूसरों तक शिक्षा का प्रकाश पहुंचाएं। दृष्ट्वातिवृद्धिं सर्वत्र भगवत्याधिकाधिकाम्। सज्जायते प्रसन्ना सा वाग्देवी तु सरस्वती॥अर्थात् विद्या की अधिकाधिक सब जगह अभिवृद्धि देखकर भगवती देवी प्रसन्न होती हैं। सरस्वती पूजन का त्योहार हमारे लिए फूलों की माला लेकर खड़ा है। यह उन्हीं के गले में पहनाई जाएगी, जो लोग उस दिन से अज्ञान से ज्ञान, अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने-बढ़ाने का दृढ़ संकल्प करते हैं। संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए भगीरथ जैसी तप-साधना करने की प्रतिज्ञा करते हैं। यह भी पढ़ें: चिंतन धरोहर: यहां जानिए वे तीन संस्थाएं जिनसे जीवन होता है सुखमय
मां सरस्वती की प्रतीक प्रतिमा अथवा चित्र के आगे पूजा-अर्चना का सीधा तात्पर्य यह है कि शिक्षा की महत्ता को स्वीकार और शिरोधार्य किया जाए। प्राचीन काल में जब हमारे देशवासी सच्चे हृदय से सरस्वती की उपासना और पूजा करते थे, तब हमारे देश को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त थी। विश्व भर के लोग सत्य-ज्ञान की खोज में यहां आते थे और भारतीय गुरुओं के चरणों में बैठकर विद्या सीखते थे। ज्ञान की देवी मां भगवती के इस जन्मदिन पर यह अत्यंत आवश्यक है कि हम पर्व से जुड़ी हुई प्रेरणाओं से जन-जन को जोड़े, दूसरों तक शिक्षा का प्रकाश पहुंचाएं। दृष्ट्वातिवृद्धिं सर्वत्र भगवत्याधिकाधिकाम्। सज्जायते प्रसन्ना सा वाग्देवी तु सरस्वती॥अर्थात् विद्या की अधिकाधिक सब जगह अभिवृद्धि देखकर भगवती देवी प्रसन्न होती हैं। सरस्वती पूजन का त्योहार हमारे लिए फूलों की माला लेकर खड़ा है। यह उन्हीं के गले में पहनाई जाएगी, जो लोग उस दिन से अज्ञान से ज्ञान, अविवेक से विवेक की ओर बढ़ने-बढ़ाने का दृढ़ संकल्प करते हैं। संसार में ज्ञान गंगा को बहाने के लिए भगीरथ जैसी तप-साधना करने की प्रतिज्ञा करते हैं। यह भी पढ़ें: चिंतन धरोहर: यहां जानिए वे तीन संस्थाएं जिनसे जीवन होता है सुखमय