जीवन दर्शन: देह शिवालय, आत्मा महादेव और बुद्धि ही पार्वती हैं
कोई आदमी तड़के तीन बजे उठकर पूजा-पाठ करता है और वह गर्व से कहता है कि वह ऐसा करता है तो यह एक तरह का विशेष दर्जा लेने का प्रयास है। मगर कोई तीन बजे नहीं उठा तो ऐसा नहीं कि वह बिल्कुल गया बीता है। शंकराचार्य ने कहा है कि तेरी देह शिवालय है। आत्मा महादेव है। बुद्धि ही पार्वती है। घर ही मंदिर है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 10 Dec 2023 12:19 PM (IST)
मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। यदि हम थोड़ा प्रयास करें तो इस भाग-दौड़ भरे जीवन को ही साधना बना सकते हैं। श्रीरामचरित मानस के लंका कांड में चौपाई है-
कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा।अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥
सदा रोगबस संतत क्रोधी।बिष्नु बिमुख श्रुति संत बिरोधी॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी।जीवत सव सम चौदह प्रानी॥मानस के अनुसार, जिसमें ये 14 चीजें हैं, वह मरे हुए के समान है। श्रेष्ठ जीवन के लिए हमें आत्मचिंतन करना होगा कि इनमें से कोई चीज हम में तो नहीं है? अगर है तो उसे अपने आप से दूर करने की कोशिश ईमानदारी से करनी होगी। पहली, कौल यानी वाम। जब अकारण मूढता वश हम वाममार्गी हो जाते हैं, समझो उतने समय हम रावण हैं। मरे के समान हैं। दूसरा है काम। अत्यंत कामुकता मृत्यु का संदेश है। तीसरा कृपण। धन का नहीं, विचारों का भी कृपण। दृष्टि की भी कृपणता। कृपण विकार है। सोचो अगर अस्तित्व भी कृपण हो जाए तो? कृपणता मृत्यु है। चौथा है विमूढ़ता यानी विशेष रूप से मूढ़। मूढ़ तो कई होते हैं, मगर विशेष मूढ़।
समझदार लोग जहां जाने में भी हिचकिचाते हैं, विमूढ़ वहां दौड़ लगाने के लिए लालायित रहते हैं। विमूढ़ को पता ही नहीं होता कि वह किस रास्ते पर कहां जा रहा है। पांचवां है अति दरिद्रता। दरिद्र तो बहुत होते हैं, मगर अति दरिद्र। कृष्णमूर्ति ने कहा है कि शस्त्र जिसके पास हैं, समझ लेना आदमी कमजोर है। शस्त्र कमजोरी का परिचायक है। पहले आदमी हाथों से लड़ता था, जब कमजोर पड़ने लगा तो तीर-कमान आए, ताकि दूर से मार सके। फिर रिवाल्वर...बम मिसाइल... ये सारी यात्रा कमजोरी की यात्रा है। सीधा उदाहरण है व्यक्ति के हाथ में लाठी तब आती है, जब शरीर कमजोर हो जाता है। सुरक्षा की चाहत कमज़ोरी का प्रतीक है। यह अति दरिद्रता है।
छठा है अत्यंत अपयश... अपकीर्ति मृत्यु का संदेश देती है। सातवां, अति वृद्धावस्था को भी मृत्यु का प्रतीक बताया गया है। आठवां, निरंतर रोगी... जो सदा रोग से ग्रस्त है, मृत्यु की निशानी है। शारीरिक रोग ही नहीं, बल्कि मन के रोग वाला भी मरे के समान है। नौवां सतत क्रोधी... जो सदैव क्रोध से भरा रहे, हर बात पर क्रोध करे, वह मरे हुए के बराबर है।यह भी पढ़ें: जीवन आश्चर्य और सुनिश्चितता दोनों का मिश्रण है
दसवां है विष्णु विमुख...विष्णु यानी व्यापकता। जो व्यापकता का विरोधी है। संकीर्णता में ही रहने वाला मरे के समान है। कुछ भी करें, मगर अपने अंदर संकीर्णता को न आने दें। ताजी हवा के लिए सभी खिड़की दरवाजे खुले रखें। ग्यारहवां, ग्रंथ विरोधी... जिन ग्रंथों ने समाज को राह दिखाई, उनके विरोधी मृतक समान हैं। बाहरवां, संत का विरोधी मृतक है। जिनमें संत के लक्षण हों, उनके विरोधी मरे के समान हैं। तेरहवां तन पोषक... केवल शरीर के पोषण में ही, पुष्टि में ही जो लगा रहे, वह देहवादी मरा हुआ है। अंतिम चौदहवां, निंदक... दूसरों की निंदा में ही लगे रहने वाला मरे के समान है।
माना जीवन में तनाव है, बीमारियां हैं, लेकिन याद रखें कि झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे आता है। एकदम बराबर। सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं। जिंदगी का झूला पीछे जा रहा हो तो डरो मत, वह आगे भी आएगा। कोई भी काल हो, कैसी भी परिस्थिति क्यों न हों, जो व्यक्ति इन 14 चीजों से बचा रहता है, उसका जीवन ही साधना बन जाता है। मानस में हनुमान को क्या किसी ने पूजा करते हुए देखा है। वह तो बस राम का नाम लेते रहे और जो काम मिला, उसे ईमानदारी से करते रहे। जो व्यक्ति जीवन में अपने हिस्से में आए काम को प्रामाणिकता के साथ करता रहे और प्रभु नाम का स्मरण करता रहे, उसका जीवन साधनामय है। साधना को जीवन से अलग मत करो। सहज होकर जियो।
यह भी पढ़ें: अनुभव करने की शक्ति से ही धर्म बनता हैकोई आदमी तड़के तीन बजे उठकर पूजा-पाठ करता है और वह गर्व से कहता है कि वह ऐसा करता है तो यह एक तरह का विशेष दर्जा लेने का प्रयास है। कोई सहज उठकर ऐसा कर रहा हो तो ठीक है, मगर कोई तीन बजे नहीं उठा तो ऐसा नहीं कि वह बिल्कुल गया बीता है। शंकराचार्य ने कहा है कि तेरी देह शिवालय है। आत्मा महादेव है। बुद्धि ही पार्वती है। घर ही मंदिर है।
अपने काम को प्रामाणिकता से कर भोजन करने के बाद जो आराम से सो जाए, वह नींद ही समाधि है। तुम्हारा चलना-फिरना परम तत्व की परिक्रमा है। मंदिर की परिक्रमा करो, अच्छी बात है, मगर जीवन ही ऐसा बना लो कि कदम जहां भी जा रहे हैं, प्रभु की परिक्रमा है। दूसरों को प्रिय लगने वाला हास-परिहास करते हुए जो बोल रहे हो, वे तुम्हारे सूत्र हैं। जीवन की सहज गति में जो भी हो रहा है, हे परमात्मा यह तेरी आराधना है। जीवन ही आराधनामय है।