Tulsidas Jayanti 2024: जीवन में खुश रहने के लिए मन की स्वाधीनता परम आवश्यक है
स्वाधीन मन संशय और नकारात्मक विचारों से मुक्त होता है। जिस मन में सत्य प्रेम करुणा है उसमें स्वाधीनता के गुण स्वतः आ जाते हैं। वह मन किसी के अधीन नहीं रहता। मन में नकारात्मक भाव हैं तो सकारात्मक भाव भी हैं। जो मन नकारात्मक है वही मन सकारात्मक भी है। हमें नकारात्मकता की बात नहीं करनी है। हमें अस्वीकार नहीं अपितु स्वीकारोक्ति का मंत्र ग्रहण करना है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 11 Aug 2024 11:38 AM (IST)
मोरारी बापू (प्रसिद्ध कथावाचक)। गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस के बालकांड में लिखा है- पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं अर्थात पराधीन व्यक्ति कभी भी सुख का अनुभव नहीं कर सकता है। पराधीनता एक तरह का अभिशाप होता है। सिर्फ मानव ही नहीं, पशु-पक्षी भी पराधीनता में सुखी नहीं रह पाते। जब पराधीन पशु-पक्षी भी प्रसन्न नहीं रह सकते तो पराधीन मन कैसे प्रसन्न रह सकता है? व्यक्ति की प्रसन्नता के लिए सबसे आवश्यक है मन की स्वाधीनता।
स्वाधीन मन संशय से मुक्त होता है। नकारात्मक विचारों से मुक्त होता है। जिस मन में सत्य, प्रेम, करुणा है, उसमें स्वतः स्वाधीनता के गुण आ जाते हैं। वह मन फिर किसी के अधीन नहीं रहता। यदि समस्या है तो इसका समाधान भी है। मन में नकारात्मक भाव हैं, तो सकारात्मक भाव भी हैं। जो मन नकारात्मक है, वही मन सकारात्मक भी है। हमें नकारात्मकता की बात नहीं करनी है। हमें अस्वीकार नहीं, अपितु स्वीकारोक्ति का मंत्र ग्रहण करना है।
जब मन स्वीकार करना सीख जाता है तो जीवन उत्सव बन जाता है। हमारा मन सकारात्मक चिंतन वाली राह का राही बने, सत्य से मुंह न फेरे, इसके सम्मुख जाए। हनुमानजी सकारात्मकता के पर्याय हैं। हनुमान का पहला अक्षर है- ‘ह’। ‘ह’ का अर्थ है सकारात्मकता। हनुमानजी अक्षुण्ण रूप से सकारात्मक हैं। उन्हें समझना है तो ‘ह’ को समझिए। भगवान राम ने जो कहा, उस पर ‘हां’। हमारा मन सकारात्मकता की ओर बढ़े, ऐसे विचारों को अपनाएं तो हनुमानजी पास आने लगेंगे। गुरु नानक देव का एक पद है-ठाकुर,तुम शरणाई आया। उतर गयो मेरे मन को संसा। जब ते दर्शन पाया।
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गुरु नानक देव कहते हैं कि हे ठाकुर, मैं तेरी शरण में आया और जैसे मैं आपकी शरण में आया, मेरे मन में जो संदेह, अंधेरा या दुविधा थी, वे आपके दर्शन से तुरंत खत्म हो गए। मैं आपकी शरण में आया और मेरे मन के सभी ऊहापोह दूर हो गए। गुरु नानक देव आगे कहते हैं- ‘मुझे कुछ कहना नहीं पड़ा, मेरी व्यथा जान ली, अपना नाम मुझे जपाना शुरू करवा दिया। परिणाम यह आया कि मेरे दुःख भाग गए। वर्षा ऋतु के समय में तालाब में कीचड़ में बहुत मेंढक उछल-कूद करते हैं। उसी तालाब में जब कोई भैंस आकर नहाने के लिए उतरे, तो सब मेंढक अपने आप कूद-कूदकर भाग जाते हैं।
दुख हमारे मन के छोटे-बड़े मेंढक हैं, जो आवाज और उछल-कूद करते रहते हैं। हम प्रयास करके भी मेंढक को बाहर नहीं निकाल सकते। परमतत्व की शरण से मन के संशय खुद ही मिट जाते हैं। आओ, हम इस परमतत्व की शरण में जाएं, उसके दर्शन करके मन के संशयों से मुक्त हो जाएं। आजकल लोग इतने निराश और दुखी क्यों हैं? ये जीवन में प्रसन्न रहने के पल हैं। यहां एक बात याद रखिए। जो व्यक्ति सब काम करके रात्रि में मन में संतोषभाव के साथ सोए और सुबह जागते समय जिसका मन उमंग-उल्लास से सराबोर हो, वही आध्यात्मिक है। यह मन को नकारात्मक विचारों, भावों और ऐसे ही अनुभवों के भंवर से निकालते हुए सकारात्मकता में परिवर्तित करने की विद्या है। इसके लिए रोजाना अपने मन के निरीक्षण की आदत बनाइए। हमें खुद देखना चाहिए कि क्या हम संतोष के साथ सोते हैं? मन के नकारात्मक विचार बहुत उलझन पैदा करते हैं।
एक वाक्य मंत्र की भांति याद रख लीजिए कि सोइए मन में संतोष के साथ, जागिए मन में उल्लास के संग। समझ लीजिए, सुखी, प्रसन्न, आनंदित रहना या न रहना भी अपने ही हाथ में है। ‘मानस’ के सातों सोपान हमें विश्वास से विश्राम की यात्रा कराते हैं और हमारे मन के संदेह, मोह और भ्रम मिटाते हैं। जन्म और मृत्यु हमारे हाथ में नहीं, लेकिन मन हमारे हाथ में है। इस जीवन को हम नकारात्मक सोच से बर्बाद करने के बजाय सकारात्मक सोच से समृद्ध करें। हम धैर्य रखें, व्यापक भाव से सत्संग करें और सत्संगरूपी औषधि से मन में प्रसन्नतारूपी परमात्मा का प्रकटीकरण करें। मन को हमेशा अच्छे संकल्प से भरपूर रखें। मन ही जीवन में आनंद की प्रतीति कराता है। इसलिए मन को सदैव निर्मल बनाए रखें, तभी जीवन में आनंद की अनुभूति होगी।
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श्रीकृष्ण ने भी जीवन रस में मन को स्वीकार किया है। मन को उछल कूद करने दो, जब वह थक जाएगा तो खुद ही शांत हो जाएगा। मन से तकरार न करो, क्योंकि मन ही देवता, मन ही ईश्वर है। जिस प्रकार हम दर्पण को देखकर चेहरे का आकलन करते हैं, ठीक उसी तरह मन को निहारें, मन रूपी दर्पण को स्वच्छ करें, कल्याण होगा। कुछ लोग मन मारने की बात कहते हैं, जबकि मैं कहता हूं कि मन को मत मारो। कृष्ण ने भी कहा है कि मन तू मेरा सखा है। मार-काट से क्या मिलेगा। युद्ध ने कोई परिणाम दिया है जगत को? मन से सतसंग करो। अहल्या ने मन से सतसंग किया था।
विभीषण ने मंत्र से सतसंग किया। शबरी ने महात्मा (महर्षि मतंग) का सतसंग किया, जिससे उसे अद्भुत गति मिली। राम का संग मिला। मन मलिन हो तो मंत्र से सत्संग करें। मंत्र में रुचि नहीं है तो एकांत स्थान में या मंदिर में सत्संग करें। नदी बहता हुआ मंदिर है। कोई वृक्ष जो रोज नई-नई कोपल निकालता हो, मंदिर है। मंदिर में शोरगुल है तो किसी मूरत से, जो आपको प्रिय हो, उससे सत्संग करें। स्वामी रामकृष्ण ने मां से सत्संग किया था। स्वामी शरणानंद ने मूक सत्संग किया था। मोरारी बापू मानस से सत्संग करता है। आप मन से सत्संग करें।