श्री सीतारामदास ओंकारनाथ जी ने प्रभु नाम का प्रचार संपूर्ण राष्ट्र में किया, जीवन चमत्कारों से भरा रहा
युगावतार अनंत श्री ठाकुर सीतारामदास ओंकारनाथ जी 20वी सदी के महान संत थे। उन्होंने अनेक बार ईश्वर की विभिन्न रूपों में प्रत्यक्षानुभूति की थी। वे निर्विकल्प समाधि में चले जाते थे। वे योग विज्ञान की समस्त विधाओं ज्ञान योग भक्तियोग राजयोग लययोग क्रियायोग कीर्तनयोग व कर्मयोग के साधक थे। श्री सीतारामदास जी का शुभ आविर्भाव 17 फरवरी 1892 को हुआ था।
By Kaushik SharmaEdited By: Kaushik SharmaUpdated: Sun, 25 Feb 2024 10:33 AM (IST)
नई दिल्ली, उदयलक्ष्मी सिंह परमार। अध्यात्मवेत्ता व न्यायाधीश,कबीरधाम (छत्तीसगढ़): युगावतार अनंत श्री ठाकुर सीतारामदास ओंकारनाथ जी 20वी सदी के महान संत थे। उन्होंने अनेक बार ईश्वर की विभिन्न रूपों में प्रत्यक्षानुभूति की थी। वे निर्विकल्प समाधि में चले जाते थे। वे योग विज्ञान की समस्त विधाओं ज्ञान योग, भक्तियोग, राजयोग, लययोग, क्रियायोग, कीर्तनयोग व कर्मयोग के साधक थे।
श्री सीतारामदास जी का शुभ आविर्भाव 17 फरवरी, 1892 को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष, पंचमी वि. संवत् 1948 (इस बार 29 फरवरी) को गंगातीर ग्राम केओटा, जिला हुगली (बंगाल) में हुआ था। डुमुरदह उनका पितृ स्थान था। प्राणहरि चट्टोपाध्याय तथा माल्यावती देवी की संतान को सीतारामदास नाम उनके प्रथम गुरु प्रबोधचंद्र चट्टोपाध्याय ने दिया था। 1913 में दिगसुई धाम के महायोगी श्रीश्री दाशरथिदेव योगेश्वर जी से गुरुदीक्षा प्राप्त कर वर्ष 1922 से गुरु की आज्ञा से प्रभु के नाम का प्रचार संपूर्ण राष्ट्र में किया। उनका संपूर्ण जीवन साधनापूर्ण एवं चमत्कारों से भरा रहा।
श्री सीताराम बाबा ने की कई मठ एवं आश्रमों की स्थापना
नर्मदा के किनारे स्थित ओंकार मठ ओंकारेश्वर (मध्यप्रदेश) में की गई उनकी 22 माह की मौन साधना अद्भुत है। "हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" का नाम संकीर्तन आपके साथ अखंड रूप में होता रहता था। संपूर्ण विश्व को आध्यात्मिक संदेश देने हेतु श्रीबाबा ने 161 पुस्तकों की रचना की, जिनमें प्रमुख हैं गुरु महिमामृत, नामामृत लहरी, भगवाननाम महिमा, ओंकार सहस्रगिति, मिलनगाथा, विरक्तपूजा, चोखेर जाले मायर पूजा, तुलसी चंदन, सेवा, युगवाणी, जयमां, जगतगुरु रामानंद, ओंकारनाथ रचनावली। श्रीबाबा ने हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा जगन्नाथपुरी से द्वारिकापुरी तक लगभग 86 स्थलों पर मठ एवं आश्रमों की स्थापना की, जिनमें उत्तरप्रदेश में अयोध्या, वाराणसी, वृंदावन, मथुरा, बिठूर में, मध्यप्रदेश के ओंकारेश्वर में, उत्तराखंड में ऋषिकेश एवं उत्तरकाशी में, राजस्थान में पुष्कर, उड़ीसा (अब ओडिशा) में पुरी, गुजरात में द्वारिका, तमिलनाडु में कन्याकुमारी, पश्चिम बंगाल में कलकत्ता (अब कोलकाता), हुगली जैसे प्रमुख स्थल है।
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संतों के प्रति बाबा का प्रेम अनिर्वचनीय थाश्री सीताराम बाबा कहते है कि "वे शिष्य, जिन्होंने अपने जीवन के समूचे भार को श्रीगुरुचरणों में समर्पित कर दिया है, उन्हें चिंता की आवश्यकता नहीं है। "मैं" और "मेरे" का बोध एक बहुत बड़ा बोझ है, श्रीगुरु ही इसका दायित्व ले सकते हैं।" सनातन धर्म के पुनरुत्थान एवं आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने हेतु सतत नाम प्रचार ही उनके जीवन का ध्येय था। मां आनंदमयी, श्री मोहनांनद सरस्वती, श्री महेश योगी, श्री चिंदानंद स्वामी, श्रीमद् प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, श्री हरि बाबा, स्वामी अखंडानंद सरस्वती, श्री दया मां, श्री रामकिंकर महाराज एवं श्री डोंगरे महाराज से उनका समय समय पर सत्संग हुआ, वहीं संत दलाई लामा, श्री सुशील मुनि, पीर इनायत विनायत खान को भी उनके सान्निध्य का सौभाग्य प्राप्त हुआ। संतों के प्रति बाबा का प्रेम अनिर्वचनीय था।
इन तीन उपायों से भगवान से साक्षात्कार संभव हैकिसी संत द्वारा उनसे मिलने की इच्छा मात्र व्यक्त किए जाने पर बाबा उनके पास पहुंच जाते थे। हिमालय के सिद्ध साधक हेड़ाखान (जिन्हें लोग त्रयंबक बाबा या सदाशिव बाबा कहते थे) या उत्तरकाशी के कैलाश आश्रम के वैष्णव मूर्ति संत स्वामी गंगानंद जी, उनके दर्शन हेतु व्याकुल होने की सूचना प्राप्त होते ही बाबा स्वयं उनसे मिलने उनके पास चले गए। 5 दिसंबर 1982 (मार्गशीर्ष, कृष्ण पक्ष, पंचमी सं. 2039) को यह महान संत बाह्य जगत की अपनी स्थूल लीला को समाप्त कर श्री रामाश्रम डुमुरदह में महासमाधि लीन हो गए। उनका संदेश है-"केवल तीन उपायों से भगवान से साक्षात्कार संभव है- शुद्धाहार, पवित्र आचरण एवं यथाकाल उपासना"।
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