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Vat Savitri Vrat 2024: मनुष्य का स्वर्ग पृथ्वी पर है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है

पर्यावरण संरक्षण हमारे आध्यात्मिक सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का हिस्सा है। अथर्ववेद में कहा गया है कि मनुष्य का स्वर्ग पृथ्वी पर है यह जगत सबका प्रिय स्थान है इसे प्रकृति के उपहारों का आशीर्वाद प्राप्त है। पृथ्वी हमारा स्वर्ग है और इस स्वर्ग की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण वृक्षों को काट देने से वहां रहने वाले पशु-पक्षी अन्यत्र चले गए।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 02 Jun 2024 01:35 PM (IST)
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Vat Savitri Vrat 2024: मनुष्य का स्वर्ग पृथ्वी पर है और इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है
स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज (जूनापीठाधीश्वर)। भारतीय संस्कृति में जीवन मूल्यों का संवर्धन, पारमार्थिक प्रवृत्तियों का प्रसार एवं जीव मात्र के कल्याण के स्वर सहज समाहित हैं। हम सनातन धर्मावलंबी चिरकाल से ही आत्मोत्कर्ष के साथ-साथ प्रकृति और पर्यावरण की अभिरक्षा हेतु संकल्पित और समर्पित हैं। इसीलिए हमारे पर्वों में वृक्षों की पूजा का प्रावधान किया गया है। वट अमावस्या या वट सावित्री के व्रत व पर्व पर तो वटवृक्षों को देवतुल्य मानकर उनकी पूजा की जाती है। वृक्षों की देवत्व का अर्थ इनकी महत्ता और उपयोगिता को समझना है और इन्हें बचाना है। वृक्षों से ही हमारा पर्यावरण शुद्ध होता है और जीवन संभव हो पाता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए कम से कम प्राकृतिक संसाधन का दोहन करना होगा। अधिक से अधिक पौधारोपण ही प्रकृति व पर्यावरण को बेहतर करेगा। इसलिए इस पर्व पर हर व्यक्ति को प्रतिवर्ष अधिक से अधिक पौधे लगाने का संकल्प लेना चाहिए।

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पर्यावरण संरक्षण हमारे आध्यात्मिक, सांस्कृतिक मूल्यों और परंपराओं का हिस्सा है। अथर्ववेद में कहा गया है कि -मनुष्य का स्वर्ग पृथ्वी पर है, यह जीव जगत सबका प्रिय स्थान है, इसे प्रकृति के उपहारों का आशीर्वाद प्राप्त है। पृथ्वी हमारा स्वर्ग है और इस स्वर्ग की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। देश में तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण वृक्षों को काट देने से वहां रहने वाले पशु-पक्षी अन्यत्र चले गए।

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इससे हमारी पारिस्थितिकी प्रभावित होती है। पुराने समय में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए बड़-पीपल जैसे घने छायादार पेड़ों को काटने से रोकने के लिए उनकी देवताओं के रूप में पूजा की जाती रही है। आज भी गांवों में लोग बरगद या पीपल का पेड़ नहीं काटते हैं। हमारे चारों ओर जो विराट प्राकृतिक परिवेश व्याप्त है, उसे ही हम 'पर्यावरण' कहते हैं। पर्यावरण पेड़-पौधों, वायु हमारे आस-पास की सभी चीजों से मिलकर बनता है। पर्यावरण के अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सनातन हिंदू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है :

'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।

दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।।'

सृष्टि में पदार्थों में संतुलन बनाए रखने के लिए यजुर्वेद में एक श्लोक वर्णित है -

"ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षं शान्ति: पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।

वनस्पतये: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्व शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि।।"