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Makar Sankranti 2024: उत्तरायण समय देवताओं के लिए दिन तथा असुरों के लिए रात्रि का काल है

मान्यता है कि यह समय देवताओं के लिए दिन तथा असुरों के लिए रात्रि का काल है। यहीं से पृथ्वी वासियों के लिए भी प्रकाश बढ़ने लगता है। उत्तरायण में दिन बढ़ने लगता है। इस पर्व का दूसरा एवं महत्वपूर्ण कारण यह है कि आज से लगभग 35 सौ वर्ष पूर्व वेदांग ज्योतिष के रचनाकार महात्मा लगध ने इस काल को युगादि अर्थात युगारंभ का प्रथम दिन कहा था।

By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 08 Jan 2024 01:27 PM (IST)
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Makar Sankranti 2024: उत्तरायण समय देवताओं के लिए दिन तथा असुरों के लिए रात्रि का काल है

प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री, ज्योतिष विभाग अध्यक्ष, काशी हिंदू विश्वविद्यालय। Makar Sankranti 2024: भारतीय संस्कृति में वेदों से लेकर लौकिक साहित्य तक सर्वत्र भगवान सूर्य की महिमा सर्वाधिक रूप में वर्णित है। सूर्य प्रत्यक्ष देवता हैं। सूर्य संपूर्ण संसार के नेत्र 'हृदय तथा जीवों की उत्पत्ति' पालन, पोषण, संहारक देव हैं। संपूर्ण जगत की आत्मा हैं। तभी तो वेद उद्घोषित करते हैं - सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च। संपूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप हैं।

जब भगवान सूर्य धनु राशि का भ्रमण पूरा करके मकर राशि में प्रवेश करते हैं, उस काल को मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर राशि में सूर्य एक महीने रहते हैं। संपूर्ण महीने व्रत, तप, यज्ञ, अनुष्ठान, जप, हवन, कथा श्रवण आदि का अनंत पुण्य होता है, तथापि मकर राशि में सूर्य के प्रवेश काल से 32 घटी अर्थात 12 घंटा, 48 मिनट सर्वाधिक पुण्यदायी काल कहा गया है।

राशियों के क्रम में मकर राशि दसवीं राशि है, दसवां स्थान आकाश एवं कर्म का है। मकर का अर्थ है जो मंगल या कल्याण प्रदान करें। मकर संक्रांति प्राकृतिक पर्व है तथापि भारतवर्ष में इसे धार्मिक पर्व के रूप में सदैव से मनाया जाता रहा है। पुराणों एवं धर्मशास्त्रों ने इसे अत्यधिक पुण्यदायी संक्रांति माना है। इसका कारण है कि यहीं से सूर्य अपने गमन पथ के दक्षिणी मार्ग का परित्याग करके उत्तर मार्ग पर चलना आरंभ करते हैं, अतएव इस पर्व को उत्तरायण भी कहा जाता है।

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मान्यता है कि यह समय देवताओं के लिए दिन तथा असुरों के लिए रात्रि का काल है। यहीं से पृथ्वी वासियों के लिए भी प्रकाश बढ़ने लगता है। उत्तरायण में दिन बढ़ने लगता है। प्रकाश की वृद्धि सर्वथा शुभ होती है। इस पर्व का दूसरा एवं महत्वपूर्ण कारण यह है कि आज से लगभग 35 सौ वर्ष पूर्व वेदांग ज्योतिष के रचनाकार महात्मा लगध ने इस काल को युगादि अर्थात युगारंभ का प्रथम दिन कहा था। युगारंभ के साथ-साथ शिशिर ऋतु भी इसी दिन से आरंभ होती है और उत्तरायण काल के आरंभ को ही मकर संक्रांति, अयनी संक्रांति तथा खिचड़ी पर्व भी कहा जाता है।

 श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरायण तथा दक्षिणायन का वर्णन करते हुए कहा है – जिस मार्ग में प्रकाश स्वरूप अग्नि, दिनाधिपति देवता तथा शुक्लपक्षाधिपति देवता विद्यमान है, वहीं छह मास का उत्तरायण है, जहां तमस का आधिक्य है, वहीं छह महीने का दक्षिणायन का काल है। व्यास जी कहते हैं, यह (उत्तरायण) काल योगियों द्वारा चाहा जाने वाला है। आध्यात्मिक दृष्टि से जब मनुष्य सद्विचार, विद्या, विवेक, वैराग्य, ज्ञान आदि के चिंतन में प्रवृत्त होता है, वही उत्तरायण की स्थिति है। जब वह भोग-सुख, काम, क्रोध में वृत्ति लगाता है, वही दक्षिणायन है।

उत्तरायण के सूर्य में शरीर त्याग की इच्छा बड़े-बड़े संत महंत, ऋषि, योगी, तपस्वी तथा संन्यासी भी करते हैं।

श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णन आता है कि शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह ने इच्छा मृत्यु वरदान होने के कारण कष्ट सहते हुए भी अपना शरीर नहीं छोड़ा, अपितु उत्तरायण की प्रतीक्षा करते रहे। महाभारत की कथा के अनुसार एक बार दुर्वासा ऋषि कौरव पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में गए। वहां उनकी पत्नी कृपी ने ऋषि की पूजा-अर्चना की। दुर्वासा के प्रसन्न होने पर उन्होंने संतान प्राप्ति का उपाय पूछा। दुर्वासा ने कहा कि यदि तुम मकर संक्रांति के दिन स्नान करके सूर्य की पूजा करोगी तो तुम्हें संतान प्राप्त होगी। कृपी ने वैसा ही किया और उन्हें अश्वत्थामा नामक पुत्र यथा समय प्राप्त हुआ।

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एक दूसरी कथा के अनुसार एक बार सुनाग मुनि ने महर्षि जावालि से मकर संक्रांति के महत्व को जानना चाहा। महर्षि जावालि ने मकर संक्रांति का महत्व बताते हुए कहा कि जो इस अवसर पर भगवान शंकर का अभिषेक घी से करके तिल, पुष्प, बेलपत्र आदि चढ़ाएगा उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी। सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश करने के समय से ही वैवाहिक संस्कार, जलाशय, देव प्रतिष्ठा, अग्न्याधान तथा गृह प्रवेश आदि समस्त शुभ कार्य होने लगते हैं।