क्या कुबेर थे रावण के भाई इसलिए रावण को दी थी सोने की लंका
धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण के दो सगे भाई कुंभकर्ण और विभीषण के अलावा उनके एक सौतेले भाई भी थे जो की कुबेर थे। रामायण के अनुसार महर्षि पुलस्त्य ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। उनका विवाह राजा तृणबिंदु की पुत्री से हुआ था। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र का नाम विश्रवा
By Preeti jhaEdited By: Updated: Tue, 12 Jan 2016 09:45 AM (IST)
धर्म ग्रंथों के अनुसार रावण के दो सगे भाई कुंभकर्ण और विभीषण के अलावा उनके एक सौतेले भाई भी थे जो की कुबेर थे। रामायण के अनुसार महर्षि पुलस्त्य ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। उनका विवाह राजा तृणबिंदु की पुत्री से हुआ था। महर्षि पुलस्त्य के पुत्र का नाम विश्रवा था। वह भी अपने पिता के समान सत्यवादी व जितेंद्रीय था। विश्रवा के इन गुणों को देखते हुए महामुनि भरद्वाज ने अपनी कन्या इड़विड़ा का विवाह उनके साथ कर दिया।
महर्षि विश्रवा के पुत्र का नाम वैश्रवण रखा गया। वैश्रवण का ही एक नाम कुबेर है। महर्षि विश्रवा की एक अन्य पत्नी का नाम कैकसी था। वह राक्षसकुल की थी। कैकसी के गर्भ से ही रावण, कुंभकर्ण व विभीषण का जन्म हुआ था। इस प्रकार रावण कुबेर का सौतेला भाई हुआ।कुबेर की थी सोने की लंका
रामायण के अनुसार कुबेर को उनके पिता मुनि विश्रवा ने रहने के लिए लंका प्रदान की। ब्रह्माजी कुबेरदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें उत्तर दिशा का स्वामी व धनाध्यक्ष बनाया था। साथ ही मन की गति से चलने वाला पुष्पक विमान भी दिया था। अपने पिता के कहने पर कुबेरदेव ने सोने की लंका अपने भाई रावण को दे दी और कैलाश पर्वत पर अलकापुरी बसाई।रावण जब विश्व विजय पर निकला तो उसने अलकापुरी पर भी आक्रमण किया। रावण और कुबेरदेव के बीच भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन ब्रह्माजी के वरदान के कारण कुबेरदेव रावण से पराजित हो गए। रावण ने बलपूर्वक कुबेर से ब्रह्माजी द्वारा दिया हुआ पुष्पक विमान भी छिन लिया।
पिछले जन्म में थे चोर कुबेर के संबंध में एक जनश्रुति प्रचलित है। कहा जाता है कि पूर्व जन्म में कुबेर चोर थे- चोर भी ऐसे कि देव मंदिरों में भी चोरी करने से बाज नहीं आते थे। एक बार चोरी करने के लिए वे एक शिव मंदिर में घुसे। तब मंदिरों में बहुत माल-खजाना रहता था। उसे ढूंढने के लिए कुबेर ने दीपक जलाया, लेकिन हवा के झोंके से दीपक बुझ गया। कुबेर ने फिर दीपक जलाया, फिर बुझ गया। जब यह क्रम कई बार चला तो भोले-भाले और औढरदानी शंकर ने इसे अपनी दीप आराधना समझ लिया और प्रसन्न होकर अगले जन्म में कुबेर को धनपति होने का आशीष दिया।कुबेरदेव है धन के स्वामी : कुबेर राजाओं के अधिपति तथा धन के स्वामी हैं। वे देवताओं के धनाध्यक्ष के रूप मे जाने जाते हैं। इसीलिए इन्हें राजाधिराज भी कहा जाता है। गंधमादन पर्वत पर स्थित संपत्ति का चौथा भाग इनके नियंत्रण में है। उसमें से सोलहवां भाग ही मानवों को दिया गया है। कुबेर नौ-निधियों के अधिपति जो हैं। ये निधियां हैं- पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील, और वर्चस। ऐसा कहते हैं कि इनमें से एक निधि भी अनंत वैभव देने वाली है। कुबेर देवाधिदेव शिव के मित्र हैं। इसलिए जो इनकी उपासना करता है, उसकी आपत्तियों के समय रक्षा भी होती है। प्राय: सभी यज्ञ-यागादि, पूजा-उत्सवों तथा दस दिक्पालों के रूप में भी कुबेर की पूजा होती है। ये उत्तराधिपति हैं यानी उत्तर दिशा के अधिपति हैं।ऐसा है कुबेरदेव का स्वरूप :ग्रंथों के अनुसार कुबेरदेव का उदर यानी पेट बड़ा है। इनके शरीर का रंग पीला है। ये किरीट, मुकुट आदि आभूषण धारण करते हैं। एक हाथ में गदा तो दूसरा हाथ धन देने वाली मुद्रा में रहता है। इनका वाहन पुष्पक विमान है। इन्हें मनुष्यों के द्वारा पालकी पर विराजित दिखाया जाता है।कुबेर के है कई अन्य नाम :कुबेरदेव को वैसे तो वैश्रवण के नाम से जाना जाता है। इन्हें एड़विड़ और एकाक्षपिंगल भी कहा जाता है। माता का नाम इड़विड़ा होने के कारण इनका एड़विड़ नाम पड़ा। कहते हैं माता पार्वती की ओर देखने के कारण कुबेर की दाहिनी आंख पीली पड़ गई इसीलिए इनका एक नाम एकाक्षपिंगाल भी पड़ा।
मायावी सभा :कुबेर की सभा भी बड़ी मायावी है। महाभारत सभापर्व के दसवें अध्याय के अनुसार सभा का विस्तार सौ योजन लंबा और 70 योजन चौड़ा है। इसमें अनेक स्वर्ण के कक्ष बने हुए हैं। उसमें ऐसे स्तम्भ भी हैं जो मणियों से जड़े हुए तथा स्वर्ण के बने हैं। इस सभा के बीच में बहुत सुंदर सिंहासन पर वे ऋद्धि तथा अन्य सौ स्त्रियों के साथ विराजमान होते हैं। इस सभा में स्वयं महालक्ष्मी तथा अनेक ब्रह्मïर्षि, देवर्षि, राजर्षि भी उपस्थित रहते हैं।
मायावी सभा :कुबेर की सभा भी बड़ी मायावी है। महाभारत सभापर्व के दसवें अध्याय के अनुसार सभा का विस्तार सौ योजन लंबा और 70 योजन चौड़ा है। इसमें अनेक स्वर्ण के कक्ष बने हुए हैं। उसमें ऐसे स्तम्भ भी हैं जो मणियों से जड़े हुए तथा स्वर्ण के बने हैं। इस सभा के बीच में बहुत सुंदर सिंहासन पर वे ऋद्धि तथा अन्य सौ स्त्रियों के साथ विराजमान होते हैं। इस सभा में स्वयं महालक्ष्मी तथा अनेक ब्रह्मïर्षि, देवर्षि, राजर्षि भी उपस्थित रहते हैं।