Vaivasvata Manu Jayanti 2024: जानें, मनुस्मृति के रचनाकार वैवस्वत मनु से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
संसार की अत्यंत प्राचीन सभ्यताओं में भी प्रथम कानून बनाने वाले का नाम मनु से मिलता जुलता है। इंग्लैंड के प्रसिद्ध भाषा तत्वविद सर विलियम जोन्स कहते हैं-हम इस बात को स्वीकार किए बिना नहीं रह सकते कि ग्रीक (यूनानी) भाषा के माइनोस मिनेयुस आदि शब्द संस्कृत के मनु शब्द के ही विकृत रूप हैं। हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि का विकास भी वैवस्वत मनु के कारण ही हुआ।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 07 Jul 2024 01:51 PM (IST)
डा. चिन्मय पण्ड्या (देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति): वर्तमान समय में सबके सामने जो प्रत्यक्ष देवता हैं, वे सूर्य हैं। सूर्य की उपासना, साधना से उपासक के अंतःकरण में सूर्य जैसा तेजस का प्राकट्य होना स्वाभाविक है। हमारे कई प्राचीन ग्रंथों में सूर्य के उपासक और सूर्य के सबसे बड़े पुत्र वैवस्वत मनु (इन्हें श्रद्धादेव भी कहा जाता है) का उल्लेख है। हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य सप्तमी अर्थात आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि (इस बार 13 जुलाई) को वैवस्वत मनु के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
इस तिथि को सूर्य की विशेष किरणें उपासक के अंतःकरण में सुगमता से प्रवेश करती हैं, जिससे उपास्य और उपासक के बीच गहरा संबंध स्थापित होता है और उपासक को अनेकानेक लाभ प्राप्त होते हैं। उनकी सद्प्रेरणा व तेजस्विता के कारण ही वैवस्वत मनु ने धर्मशास्त्र मनुस्मृति की रचना की, जिसे प्राचीनतम स्मृतियों में गिना जाता है। मनुस्मृति में दुनिया के अनेकानेक विधाओं के ज्ञान का भंडार है।यह भी पढें: हनुमान जी से सीखें अपनी जीवन-यात्रा के लिए मंगलमय मंत्र
यही कारण है कि संसार की अत्यंत प्राचीन सभ्यताओं में भी प्रथम कानून बनाने वाले का नाम मनु से मिलता जुलता है। इंग्लैंड के प्रसिद्ध भाषा तत्वविद सर विलियम जोन्स कहते हैं-हम इस बात को स्वीकार किए बिना नहीं रह सकते कि ग्रीक (यूनानी) भाषा के माइनोस, मिनेयुस आदि शब्द संस्कृत के मनु शब्द के ही विकृत रूप हैं। हिंदू धर्म के अनुसार सृष्टि का विकास भी वैवस्वत मनु के कारण ही हुआ।
मानव जाति के प्रणेता और प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु के बाद सातवें मनु हैं। हरेक मन्वंतर में एक प्रथम पुरुष होता है, जिसे मनु कहते हैं। वर्तमान काल में वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है, जिसके प्रथम पुरुष वैवस्वत मनु है। वैवस्वत मनु ने ही सरयू तट पर स्थित अयोध्या नगरी को बसाया था। पौराणिक ग्रंथों में ऐसा उल्लेख मिलता है कि वैवस्वत मनु के नेतृत्व में देवलोक से प्रथम पीढ़ी के मानवों-देवों का मेरु प्रदेश में अवतरण हुआ। वे देव स्वर्ग से पवित्र वेद भी साथ लाए।
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इसी से श्रुति और स्मृति की परंपरा चली। वैवस्वत मनु के समय ही भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार हुआ। मनुस्मृति में वैवस्वत मनु लिखते हैं, जो सत्पुरुषों में स्वयं को कुछ और ही बताता है और वास्तव में वैसा नहीं होता, वह एक प्रकार का चोर है। अपनी आत्मा को नष्ट करने वाला है। सभी अर्थ वाणी में ही निहित रहते हैं। वाणी ही उनका मूल होती है। उसी की सहायता से वे प्रकट हो सकते हैं, इसलिए जो मनुष्य वाणी की चोरी करता है अर्थात असत्य बोलकर अपनी असलियत को छिपाना चाहता है, वह चोरी का अपराधी होता है।