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Radha Ashtami 2024: मोक्ष प्रदान करती हैं भगवान श्रीकृष्ण की दुलारी राधा रानी

यदि श्रीकृष्ण से प्रीति हो जाए तो वह प्रीति ही श्रीराधा (Radha Ashtami 2024) हैं। अगर श्रीकृष्ण का विरह सताए और अश्रुधारा बहने लगे तो वह अश्रु ही श्रीराधा हैं। जीव के भीतर जो भाव हैं वे ही राधा हैं। जो श्रीकृष्ण जैसे साक्षात रस को अपने भाव के पात्र में संजोकर रख सके वह श्रीराधा हैं। राधा शब्द धारा का उल्टा है।

By Jagran News Edited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 09 Sep 2024 01:16 PM (IST)
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Radha Ashtami 2024: राधा अष्टमी का धार्मिक महत्व

अभिषेक गोस्वामी (वैष्णवाचार्य आध्यात्मिक गुरु)। जिस जीव का साध्य राधा हैं और उनको पाने का साधन भी राधा एवं राधा नाम ही है। मंत्र भी ‘राधा’ है और मंत्र देने वाली गुरु भी राधा ही हैं। जिसका सब कुछ राधा हैं और जीवन प्राण भी राधा ही हैं, ऐसे जीवों को पाने के लिए कुछ भी शेष बचता ही नहीं। उन लोगों को सब कुछ प्राप्त ही है। गर्ग संहिता की कथा है कि श्रीकृष्ण गोलोक में राधा रानी से पूछते हैं कि प्रियाजी, चलोगी पृथ्वीलोक? प्रियाजी ने कहा कि मुझे उस लोक में नहीं जाना है, जहां गिरिराज, यमुना और गोलोक की रज है।

राधा साध्यम साधनम् यस्य राधा मंत्रो राधा मंत्र दात्री च: राधा।

सर्वम् राधा जीवनम यस्य राधा, राधा राधा वाचिकिम तस्य शेषम्।।

साक्षात आह्लादिनी श्रीराधारानी का प्राकट्य रावल ग्राम में हुआ। कौन हैं श्री राधा, कैसा स्वरूप है राधा रानी का, इन प्रश्नों के उत्तर या तो स्वयं राधा रानी दे सकती हैं या उनके अभिन्नरूप साक्षात श्रीकृष्ण। बृजवासी तो केवल एक बात जानते हैं कि श्रीकृष्ण से यदि प्रीति हो जाए तो समझना वह प्रीति ही राधा रानी हैं। अगर श्रीकृष्ण का विरह सताए और अश्रुधारा बहने लगे तो समझना वह अश्रु ही राधा रानी हैं। जीव के भीतर जो भाव हैं, वे ‘भाव’ ही राधा रानी हैं। जो श्रीकृष्ण जैसे साक्षात रस को अपने भाव के पात्र में संजोकर रख सके, वह श्री राधा रानी हैं।

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राधा शब्द धारा का उल्टा है। बृजवासी राधा की धारा के प्रवाह में बहते हैं, जिनका अभिवादन भी राधा हैं, राधा ही स्मरण हैं, राधा ही समर्पण हैं। हमारी जीवन रूपी धारा में अपनी इंद्रियों को मोड़कर श्रीकृष्ण के चरणों में अर्पण करने की शक्ति को राधा कहते हैं। पुराणों में श्रीराधा के 16 प्रसिद्ध नाम आते हैं। वे संपूर्ण रूप से सहज ही कृतकृत्य हैं, स्वयं सिद्ध हैं, इससे उन्हें ‘राधा’ कहा गया। ‘रा’ का अर्थ होता है देना और ‘धा’ का अर्थ हैं निर्वाण। अतः वह मोक्ष निर्वाण देने वाली हैं, इसलिए राधा हैं। वे रासेश्वर श्री श्यामसुंदर की अर्द्धांगिनी हैं।

रास की सारी लीला उन्हीं के मधुरतम ऐश्वर्य का प्रकाश हैं, इसलिए वह रासेश्वरी कहलाईं। नित्य रास में उनका निवास हैं, अतः उनको रासवासिनी कहा गया। वे समस्त रसिक देवियों की स्वामिनी हैं, श्री रसिकशिरोमणि श्रीकृष्ण उन्हें अपनी स्वामिनी मानते हैं, इसलिए रसिकेश्वरी कहलाईं। सर्वलोक महेश्वर, सर्वमय और सर्वातीत परमात्मा श्रीकृष्ण को प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं, इसलिए उनको कृष्णप्राणाधिका कहा जाता है। श्रीकृष्ण उन्हें सदा प्रिय हैं, इसलिए उन्हें ‘कृष्णप्रिया कहते हैं। वे तत्वतः श्रीकृष्ण से सर्वथा अभिन्न हैं, समग्र रूप से श्रीकृष्ण के समान हैं एवं लीला से ही वे श्रीकृष्ण का यथार्थ स्वरूप धारण करने में समर्थ हैं, इसलिए वह श्री कृष्णस्वरूपिणी कहलाती हैं।

एक समय वे श्रीकृष्ण के वाम अर्द्धांग से प्रकट हुई थीं, इसलिए उनको कृष्णवामांगसंभूता कहते हैं। भगवत्स्वरूपा परमानंद की राशि ही उन परम सती शिरोमणि के रूप में मूर्तिमति हैं, जो भगवान की परम आनंदस्वरूपा आह्लादिनी शक्ति हैं, इसलिए उनका नाम परमानंदरूपिणी प्रसिद्ध हैं। कृष धातु मोक्ष वाचक है, ‘न’ उत्कृष्ट द्योतक है और ‘आ’ देनेवाली का बोधक है, इस प्रकार से वे श्रेष्ठ मोक्ष प्रदान करती हैं, अतः उन्हें कृष्णा कहते हैं। ‘वृंद’ शब्द सखियों के समुदाय का वाचक है और ‘अ’ साथ का बोधक है। वे सखीवृंद की स्वामिनी हैं, इसलिए वृंदा कहलाती हैं।

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वृंदावन उनकी मधुरलीलास्थली है, विहारभूमि हैं, इससे उन्हें वृंदावनी कहा जाता है। वृंदावन में उनका विनोद (मनोरंजन) होता है, उनके कारण समस्त वृंदावन को आमोद प्राप्त होता है, इसलिए उन्हें वृंदावन विनोदिनी भी कहा जाता है। उनकी नखावली चंद्रमाओं की पंक्ति के समान सुशोभित है, उनका मुख पूर्ण चंद्र के सदृश है, इस कारण उनको चंद्रावती भी कहते हैं और दिव्य शरीर पर अनंत चंद्रमाओं की सी कांति सदा सर्वदा जगमगाती रहती है, इसलिए वे चंद्रकांता कहीं जाती हैं। उनके मुख कमल पर सैकड़ों चंद्रमाओं की ज्योत्सना चमकती रहती है, इससे उनको शतचंद्रभानना कहते हैं। इसीलिए ब्रजवासी यह मानते हैं कि ‘बिन राधा कृष्ण आधे’ हैं। कृष्ण प्रेममयी राधा, राधाप्रेम मयो हरि, जीवनेन धने नित्यम राधा कृष्णगतिर्मम।