जीवन दर्शन: मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और शस्त्र के बीच कोई सेतु नहीं है
रावण प्रसन्न है कि राम के हाथों उसकी मृत्यु हुई। रावण प्रसन्न है कि अब मुक्ति में बाधा ही क्या है! राम से शत्रुता नहीं है विरोध है संघर्ष है। लेकिन राम की ऊंचाई का रावण को बोध है। राम की भिन्नता का भी पता है। कृष्ण कहते हैं मैं शस्त्रधारियों में राम हूं। मैं शस्त्र भी ले सकता हूं लेकिन उससे मैं नहीं बदलता।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Sun, 24 Dec 2023 11:30 AM (IST)
ओशो। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में राम हूं, मछलियों में मगरमच्छ हूं और नदियों में भागीरथी गंगा जाह्नवी हूं। कृष्ण कहते हैं, शस्त्रधारियों में मैं राम हूं। कृष्ण का राम होना, यह बहुत प्यारा प्रतीक है। राम के हाथ में शस्त्र बहुत असंगत है। राम जैसे व्यक्ति के हाथ में शस्त्र होने नहीं चाहिए। राम के व्यक्तित्व, उनकी आंखों का थोड़ा ध्यान करें। न तो राम के मन में हिंसा है, ना राम के मन में प्रतिस्पर्धा है, ना राम के मन में ईर्ष्या है। न राम किसी को दुख पहुंचाना चाहते हैं, ना किसी को पीड़ा देना चाहते हैं, फिर भी उनके हाथ में शस्त्र हैं। जब भी मैं राम का चित्र देखता हूं, उनके कंधे में लटका हुआ धनुष देखता हूं और उनके कंधे पर बंधा हुआ तूणीर देखता हूं तो राम के व्यक्तित्व से उनका कोई भी संबंध नहीं मालूम पड़ता।
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राम का व्यक्तित्व एक काव्य की प्रतिमा मालूम होती है। राम की आंखें प्रेम की आंखें मालूम होती हैं। राम पैर भी रखते हैं, तो ऐसा रखते हैं कि किसी को चोट न लग जाए। राम का सारा व्यक्तित्व फूल जैसा है। कंधे पर बंधे हुए तीर और हाथ में लिए हुए धनुष-बाण समझ में नहीं आते! इनकी कोई संगति नहीं है। राम कुछ अनूठे हैं। कृष्ण को यही प्रतीक मिलता है कि शस्त्रधारियों में मैं राम हूं! शस्त्रधारियों की कोई कमी नहीं है। राम को क्यों चुना होगा?
राम का व्यक्तित्व एक काव्य की प्रतिमा मालूम होती है। राम की आंखें प्रेम की आंखें मालूम होती हैं। राम पैर भी रखते हैं, तो ऐसा रखते हैं कि किसी को चोट न लग जाए। राम का सारा व्यक्तित्व फूल जैसा है। कंधे पर बंधे हुए तीर और हाथ में लिए हुए धनुष-बाण समझ में नहीं आते! इनकी कोई संगति नहीं है। राम कुछ अनूठे हैं। कृष्ण को यही प्रतीक मिलता है कि शस्त्रधारियों में मैं राम हूं! शस्त्रधारियों की कोई कमी नहीं है। राम को क्यों चुना होगा?
उन्होंने बहुत विचार से चुना है, बहुत हिसाब से चुना है। शस्त्र खतरनाक है रावण के हाथ में, क्योंकि रावण के भीतर सिवाय हिंसा के और कुछ भी नहीं है। हिंसा के हाथ में शस्त्र का होना, जैसे कोई आग में पेट्रोल डालता हो। इस दुनिया की पीड़ा ही यही है कि गलत लोगों के हाथ में ताकत है। बेकन ने कहा है, शक्ति लोगों को व्यभिचारी बना देती है। बेकन की यह बात ठीक है। लेकिन बेकन ने इसका जो कारण दिया है, वह ठीक नहीं है।
बेकन सोचता है कि जिनके हाथ में भी शक्ति आ जाती है, शक्ति के कारण वे भ्रष्ट हो जाते हैं। यह बात गलत है। वे भ्रष्ट हो जाते हैं, यह तथ्य है, लेकिन शक्ति के कारण भ्रष्ट हो जाते हैं, यह गलत है। क्योंकि हमने राम के हाथ में भी शक्ति देखी है, पर भ्रष्ट आचार नहीं देखा, शक्ति का कोई व्यभिचार नहीं देखा। राम और शस्त्र के बीच कोई सेतु नहीं है। एक खाई है, अलंघ्य खाई है। यही राम की विशेषता भी है। रावण के हाथ में शस्त्र खतरनाक हैं, क्योंकि जब भीतर हिंसा हो और शस्त्र हाथ में हों, तो हिंसा गुणित होती चली जाएगी।
हिंसा हो भीतर, वैमनस्य हो भीतर, प्रतिस्पर्धा हो भीतर, शत्रुता हो भीतर, तो अस्त्र-शस्त्र घातक हैं। राम का व्यक्तित्व बुद्ध या महावीर जैसा है, लेकिन उनके पास शक्ति रावण जैसी है। शायद दुनिया अच्छी न हो सकेगी, जब तक अच्छे आदमी और बुरे आदमी की ताकत के बीच ऐसा कोई संबंध स्थापित ना हो। अच्छे आदमी सदा शांतिवादी होंगे, तो हट जाएंगे। बुरे आदमी हमेशा हमलावर होंगे, लड़ने को तैयार रहेंगे। अच्छे आदमी प्रार्थना-पूजा करते रहेंगे, बुरे आदमी ताकत को बढ़ाए चले जाएंगे।
अच्छे आदमी एक कोने में पड़े रहेंगे, बुरे आदमी सारी दुनिया को रौंद डालेंगे। थोड़ा हम सोचें, राम जैसा व्यक्तित्व सारी पृथ्वी पर खोजना मुश्किल है। एक अनूठा आयाम है राम का। बुद्ध, महावीर जैसे लोग और रावण, हिटलर, नेपोलियन या सिकंदर खोजे जा सकते हैं, लेकिन राम बहुत अनूठे और बेजोड़ हैं। इसीलिए कृष्ण कहते हैं, शस्त्रधारियों में मैं राम हूं। राम जैसा करुणामय व्यक्ति ही शस्त्रों का उपयोग कर सकता है।
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कोई दूसरा व्यक्ति उपयोग करेगा, तो चाहे जीते, चाहे हारे, रावण ही जीतेगा। अगर कोई दूसरा व्यक्ति रावण से लड़ने जाए और शस्त्रों का उपयोग करे, तो कोई जीते या कोई हारे, लेकिन रावण ही जीतेगा। क्योंकि इस युद्ध में वह दूसरा आदमी धीरे-धीरे रावण जैसा ही हो जाएगा। रावण की असली पराजय यही है कि रावण राम को अपने जैसा नहीं बना पाया। राम राम ही बने रहे। उनके व्यक्तित्व में जरा-सी एक कली भी नहीं सूखी। उनके हाथ के शस्त्र, उनके भीतर की मनुष्यता में जरा-सा भी फर्क न ला पाए। वही रावण की हार है, वहीं रावण पराजित हो गया है। रावण हारा, क्योंकि जिसके हाथों हारा, वह आदमी रावण के तल का न था। इसलिए रावण प्रसन्न है कि राम के हाथ से उसकी मृत्यु घटित हुई। यह अनूठी बात है।
रावण प्रसन्न है कि राम के हाथों उसकी मृत्यु हुई। रावण प्रसन्न है कि अब मुक्ति में बाधा ही क्या है! राम से शत्रुता नहीं है, विरोध है, संघर्ष है। लेकिन राम की ऊंचाई का रावण को बोध है। राम की भिन्नता का भी पता है। कृष्ण कहते हैं, मैं शस्त्रधारियों में राम हूं। मैं शस्त्र भी ले सकता हूं, लेकिन उससे मैं नहीं बदलता। शस्त्र मुझे नहीं बदल सकता है, यह उनका प्रयोजन है। मैं कुछ भी करूं, मेरा करना मेरे आत्मा को नहीं बदल सकता है, यह उनका अभिप्राय है।