Nag Panchami 2024: क्यों भगवान शिव और विष्णु के सहयोगी नाग देवता को कहा जाता है क्षेत्रपाल ?
पौराणिक कथा के अनुसार जब देव और दानवों द्वारा समुद्र मंथन किया जा रहा था तब वासुकि नाग (Nag Panchami 2024) जगत के पालनहार भगवान विष्णु के कार्य में निमित्त बने थे। यह एक प्रकार से संदेश है कि यदि इस तरह के जीव भी सही मार्ग पर आ जाएंतो वे समाज और राष्ट्र के उत्थान में अपना बड़ा योगदान कर सकते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 05 Aug 2024 04:32 PM (IST)
डा. चिन्मय पण्ड्या (देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति): हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास का दूसरा सबसे बड़ा पर्व है नागपंचमी। भगवान शिव के प्रिय मास श्रावण में उनके गणों का पूजन भी कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इस बार नागपंचमी (नौ अगस्त) पर्व सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और रवि योग के साथ आया है। मान्यता है कि नागपंचमी के दिन नागदेवता की पूजा करने से भक्त के जीवन के संकट दूर होते हैं और घर में सुख-समृद्धि भी आती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में सर्पों को भगवान शिव और विष्णु के सहयोगी के रूप में दर्शाया गया है और उन्हें शक्ति व ज्ञान के प्रतीक के रूप में माना जाता है। हिंदू धर्म में नागों को देवता भी कहा गया है। नागपंचमी के दिन आठ नागों-अनंत, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीक, कर्कट और शंख की पूजा-अर्चना की परंपरा है।यह भी पढें: हनुमान जी से सीखें अपनी जीवन-यात्रा के लिए मंगलमय मंत्र
पौराणिक कथाओं में सर्प के सिर पर मणि होने का उल्लेख मिलता है। पाताल लोक मणियों की आभा से हर समय प्रकाशित रहता है। सभी तरह की मणियों पर सर्पराज का अधिकार है। हमारा भारत कृषि प्रधान देश है, सर्प खेतों का रक्षण करते हैं, इसलिए उसका एक नाम क्षेत्रपाल भी है। जीव-जंतु, चूहे आदि जो किसान की फसलों को हानि पहुंचाने वाले तत्व हैं। ऐसे तत्त्वों को नष्ट करके सर्प किसानों के खेतों को हराभरा रखने में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं।
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सर्प के गुण देखने की हमारे पास दृष्टि होनी चाहिए। बिना कारण नाग किसी को डसता नहीं है। नाग अपनी संचित शक्ति यानी विष को किसी को यूं ही काटकर व्यर्थ खो देना नहीं चाहता। जैसे कोई मनुष्य अपनी वर्षों से उपार्जित शक्ति, तप की पूंजी अथवा धनधान्य को व्यर्थ ही खर्च नहीं करता। पौराणिक कथा के अनुसार, जब देव और दानवों द्वारा समुद्र मंथन किया जा रहा था, तब वासुकि नाग प्रभु कार्य में निमित्त बने थे। यह एक प्रकार से संदेश है कि यदि इस तरह के जीव भी सही मार्ग पर आ जाएं,तो वे समाज और राष्ट्र के उत्थान में अपना बड़ा योगदान कर सकते हैं।