Sawan 2024: क्यों भगवान शिव को प्रिय है सावन का महीना और क्या है इसका धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व?
श्रावण मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है अतएव शिव जी की प्रसन्नता हेतु प्रसिद्ध तीर्थों से जल भरकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थित भगवान शिवस्वरूप ज्योतिर्लिंग को जलार्पण किया जाता है। इसी को कांवड़ यात्रा भी कहा जाता है। इसी महीने में शिव जी की पूजा एवं अभिषेक भी किया जाता है। सोमवार को अधिकतर शिवभक्त व्रत रखते हैं।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 22 Jul 2024 01:17 PM (IST)
प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री (ज्योतिष विभाग अध्यक्ष, काशी हिंदू विश्वविद्यालय)। श्रावण मास परम साधना का पर्व है। समस्त पृथ्वीवासियों को तृप्ति देने वाला श्रावण जैसा कोई दूसरा मास नहीं है। भारतीय मनीषियों ने सनातनीय द्वादश मासों के क्रम में पांचवें मास को श्रावण मास कहा है। यह श्रवण नक्षत्र से बना है। महर्षि पाणिनि कहते हैं कि पूर्णिमा में होने वाले नक्षत्रों के आधार पर ही चांद्रादि मास होते हैं-सास्मिन् पौर्णमासी, अतएव जिस महीने में श्रवण नक्षत्र में पूर्णिमा होती है, उसे ही श्रावण मास कहते हैं। ज्योतिषशास्त्र श्रवण नक्षत्र का स्वामी भगवान विष्णु को मानता है। कुछ विद्वानों के मत से सृष्टि का प्रारंभ जल से हुआ है और सावन मास जल की प्रधानता लिए हुए है। आकाश से बरसता हुआ जल अमृतसदृश ही होता है।
वेद कहते हैं ‘अप एव ससर्जादौ’। जल का एक पर्याय ‘नारा’ शब्द भी है और यह नारा जल जिसका घर है, वह विष्णु नारायण ही हैं अर्थात विधाता ने सर्वप्रथम जल का निर्माण किया। इस महीने भगवान विष्णु जगतपालन का अपना दायित्व भगवान शिव को समर्पित कर जल का आश्रय लेकर क्षीरसागर में शयन करने चले जाते हैं। ध्यातव्य है कि सूर्य का एक नाम विष्णु भी है।
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मासेषु द्वादशादित्याः तपन्ति हि यथाक्रमम्। जिन चार मासों में विष्णु शयन की बात कही गई है, उसमें सूर्य की किरणों का प्रभाव वर्षा की प्रबलता के कारण पृथ्वीवासियों को स्वल्प ही प्राप्त होता है। दो ही तत्व सृष्टि के मूल में कार्य करते हैं अग्नि एवं सोम। “अग्निसोमात्मकं जगत्”। इस समय दक्षिणायन काल होने से अग्नि की मंदता समस्त जीव-जंतु पेड़-पौधे, वनस्पतियां सोमतत्व से जीवन को प्राप्त करते हैं। इस मास में अत्यधिक जल वृष्टि होने से पृथ्वी में कणों के गर्भांकुर फूट पड़ते हैं। ताप शांत हो जाता है। सभी जीवों का हृदय परमानंद से भर जाता है।
श्रावण मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है, अतएव शिव जी की प्रसन्नता हेतु प्रसिद्ध तीर्थों से जल भरकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थित भगवान शिवस्वरूप ज्योतिर्लिंग को जलार्पण किया जाता है। इसी को कांवड़ यात्रा भी कहा जाता है। इसी महीने में शिव जी की पूजा एवं अभिषेक भी किया जाता है। सोमवार को अधिकतर शिवभक्त व्रत रखते हैं। श्रावण मास में सोमतत्व की अधिकता के कारण ही सोमवार को विशेष महत्व दिया जाता है। अतः इस दिन भक्तगण शिवाराधन अथवा रुद्राभिषेक प्रचुरता से करते हैं।
श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को कुमारी कन्याओं व सौभाग्यवती महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत का विधान धर्मशास्त्रों में बताया गया है। श्रावण मास की कृष्णपक्ष द्वितीया को अशून्य शयनव्रत करने का विधान शास्त्रों में है। कहा गया है कि इस व्रत से वैधव्य व विधुर दोष दूर होते हैं। पति-पत्नी का साथ बना रहता है। यह अशून्य शयन व्रत लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु को विशिष्ट शय्या पर पधारकर अनेक उपचारों द्वारा पूजन किया जाता है। इससे यह भी सिद्ध है कि यह मास हरिहरात्मक मास है, जिसमें एक साथ भगवान शिव एवं विष्णु की पूजा का विधान है।
श्रावण कृष्ण तृतीया को दोलारोहण (झूला झूलने) की परंपरा है। इसी दिन कजली तीज मनाते हैं। श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी पर्व मनाने की परंपरा है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। श्रावण मास की पूर्णिमा को ही श्रावणी कहते हैं। श्रावणी के दिन यज्ञोपवीत तथा रक्षाबंधन का विधान होता है तथा उपाकर्म संपादित करके संस्कृत दिवस भी मनाया जाता है। चराचर जगत में जो गति है, विकास एवं परिवर्तन है।
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यही मानव जीवन का लक्ष्य भी है। श्रुति कहती है-सृष्टि के पूर्व न सत् (कारण) था न असत् (कार्य) था, केवल एक निर्विकार परमात्मा शिव ही विद्यमान थे। अतः जो वस्तु सृष्टि के पूर्व भी और पश्चात भी रहती है, वही जगत का कारण विष्णु या शिव है। भगवान नित्य और अजन्मा हैं। इनका आदि और अंत न होने से ये अनादि और अनंत हैं। ये सभी पवित्र करने वाले पदार्थों को भी पवित्र करने वाले हैं। अतएव भगवान शिव एवं विष्णु को प्रिय श्रावण मास से बढ़कर दूसरा कोई मास नहीं है यस्मात् परं नापरमस्ति किञ्चिद्।