Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

वर्ल्‍ड हैप्पीनेस डे: गाएं खुशी के गीत

न तो दवा की जरूरत है, न योग, न ही किसी विशेषज्ञ के सलाह की। मन तो यूं ही आनंद से प्रकाशित होता है। यही तो है खुशी का सूरज, जो स्वत: उगता है और कर देता है भीतर-बाहर हर तरफ उजियारा। वल्र्ड हैप्पीनेस डे (20 मार्च) पर विशेष...

By Preeti jhaEdited By: Updated: Fri, 20 Mar 2015 10:17 AM (IST)
Hero Image

न तो दवा की जरूरत है, न योग, न ही किसी विशेषज्ञ के सलाह की। मन तो यूं ही आनंद से प्रकाशित होता है। यही तो है खुशी का सूरज, जो स्वत: उगता है और कर देता है भीतर-बाहर हर तरफ उजियारा। वल्र्ड हैप्पीनेस डे (20 मार्च) पर विशेष...

रघु आप हमेशा खुश कैसे रह पाते हैं? जबकि परिस्थितियां इतनी विकट हैं। जॉब छूट जाने, मां के असमय गुजर जाने के बाद भी आपकी ऊर्जा में जरा भी कमी नहीं आई है। राज क्या है इसका? - वाणी ने अपने सहकर्मी रघु मेहता से सवाल किया। 'यह मेरा स्वभाव बन गया है। मैं किसी भी दुर्घटना से जल्द उबर जाता हूं। ज्यादा समय तक दुखी नहीं रह सकता।Ó रघु ने कहा। खुश रहना हमारे वश में है। पर शांत रहने की जितनी कोशिश करें, अशांति घेर लेती है, उसी तरह खुशी पाने का प्रयास भी व्यर्थ है। लेखक, चिंतक मार्क मेन्सन कहते हैं, 'वास्तव में हम आनंद की तलाश में हैं। आनंद का यह भाव स्थायी हो सकता है, यदि हम आत्म-प्रबंधन की कला सीख जाएं...।Ó

...हो जाएं सेल्फ स्टार्ट

'आज मैं बहुत खुश हूंÓ, यह ऐसी स्वीकारोक्ति है, जो हमें हैरान कर देती है। बदले में हम तुरंत सवाल कर देते हैं, 'क्यों ऐसा क्या मिल गया, जो आप इतने खुश हैं?Ó दरअसल, हमें खुशी को किसी चीज या व्यक्ति से जोड़ने की आदत है। पर कहते हैं, जिससे जितना अधिक लगाव होता है, वह उतनी ही पीड़ा देता है। ओशो कहते हैं, 'खुशी या प्रसन्नता सूरज की तरह है, जो उगता हमारे भीतर है और अंदर-बाहर सब जगह उजियारा कर देता है। पर इसके लिए हमें खुशी को किसी दायरे में बांधने से बचना होगा।Ó वास्तव में जैसे किसी खास तकनीक की मदद से कार ऑटोमैटिक स्टार्ट होकर सड़क पर फर्राटे भरने लगती है, वैसे ही हमें भी अपने अंदर यह प्रबंधन विकसित करना होगा। धक्का देकर कार को ज्यादा समय तक नहीं चला सकते। इसी तरह, बाहरी कारणों पर अपनी खुशी को टिकाए रखना मुश्किल है। इसलिए रोज कुछ समय खुद के साथ बिताएं। अपनी उदासी, बोझिलता को दूर करने का संकल्प लें। जैसे ही आप अपने अंतस का गहरा तल छू लेंगे, वैसे ही आनंद का झरना फूट पड़ेगा।

चलते जाना है, खुशी के लिए

हम कुछ अपेक्षाएं तय करते हैं, पर अपनी अपेक्षा पर खरा नहीं उतरने का अर्थ यह नहीं कि हम खुश नहीं हो सकते। एक कहानी इस बात को बखूबी बयां करती है। सुदीप सरकार ने जॉब छोड़कर अपना बिजनेस शुरू किया। उन्होंने अपनी सारी जमा-पूंजी बिजनेस खड़ा करने में झोंक दी। अंतत: वे नाकाम रहे। हालांकि आज सुदीप दूसरे बिजनेस में खुश हैं। उन्हें खुशी इस बात की है कि वे पहले बिजनेस के अनुभवों के धनी हैं, जो जिंदगी भर उन्हें खुश रखने में मददगार रहेंगे। जब भी पीछे मुड़कर देखते हैं, तो उन्हें जॉब, पैसा खोने से ज्यादा खुद पर गर्व महसूस होता है। अब वे हर चुनौती का डटकर मुकाबला कर सकते हैं, यह विश्वास उन्हें जीवन से जोड़ता है और हमेशा खुश रखता है। यहां मोटिवेशनल गुरु दीपक चोपड़ा की बात सटीक बैठती है- 'खुशी तब मिलती है, जब हम बिना रुके चलते जाते हैं, पर जब इसमें बाधा आती है तो हम दुखी हो जाते हैं।Ó

भारहीन मन

गौरतलब है कि बाधा पैदा करने में हमारी परिस्थितियां कम हमारा मन और हमारे विचार ज्यादा बड़े कारक होते हैं। सहजता का आनंद जितना तीव्र चाहिए, उतना ही हल्का और भारहीन मन चाहिए। ऊंचे पहाड़ पर चढ़ने के लिए बोझा लेकर नहीं चढ़ा जा सकता। जाहिर है सबसे बड़ा बोझ दुख और उदासी का होता है, जो हम ढोते रहते हैं। पर इस बोझ को हम सहजता अपनाकर हल्का कर सकते हैं। जो सहज हैं, उनके अंदर स्वीकार्य भाव प्रबल होता है। इसलिए वे हमेशा खुश रहते हंै। इस बाबत सूफी कवि रूमी की कहानी प्रचलित है। शाही अस्तबल के मालिक को जब रास्ते पर पड़ा एक भूखा खच्चर दिखा, तो उसने तरस खाकर उसे अपने अरबी घोड़ों के साथ रख लिया। खच्चर बड़ी हसरत से उन घोड़ों को अच्छा खाते-पीते देखता और सोचता, 'मालिक ने मुझे इस हाल में रखा है कि मैं हर रात मौत मांगता हूं और ये घोड़े कितने मजे से हैं।Ó पर जब उसने देखा कि लड़ाई के मैदान में वे घोड़े घायल हो गए और उनमें से कुछ मारे भी गए तो वह फौरन सोचने लगा- 'घावों के साथ मिला बढि़या भोजन किस काम का? मालिक ने मुझे राह से उठाकर रख लिया, यह बड़ी चीज है।