Jeevan Darshan: आध्यात्मिक अभ्यास से प्रारब्ध कर्म को किया जा सकता है ठीक
प्रारब्ध कर्मों को बदला नहीं जा सकता लेकिन अतीत के कर्मों के परिणाम संचित कर्मों को उनके अभिव्यक्त होने से पहले ही आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा बदला सकता है। जो कर्म प्रकट हो रहा है और जिसका प्रभाव दिखना शुरू हो गया है वह प्रारब्ध कर्म है। आप प्रारब्ध कर्म को बदल नहीं सकते क्योंकि यह वर्तमान में घटित होने लगा है।
By Pravin KumarEdited By: Pravin KumarUpdated: Mon, 05 Aug 2024 04:16 PM (IST)
श्री श्री रवि शंकर (आर्ट आफ लिविंग के प्रणेता आध्यात्मिक गुरु)। कर्म हमारे पिछले जन्मों की वे क्रियाएं हैं, जो हमारे वर्तमान अनुभवों को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, अगर आपने किसी के साथ पिछले जीवन में कोई संघर्ष किया है,तो वही व्यक्ति इस जीवन में कर्मों का पुराना हिसाब चुकाने के लिए कोई भी व्यक्ति, बेटा, बहू या सास बनकर आ सकता है। चाहे वह बकाया सकारात्मक हो या नकारात्मक, आपको उन सबका सामना करना पड़ता है। यह एक तरह से उस पुराने ऋण को चुकाने जैसा है, जो पिछले अनुभवों से बकाया है। हमारे आपसी संबंध बनते हैं, हम परिवारों में रहते हैं, विवाह करते हैं, कभी-कभी विलगाव का सामना करते हैं। इस संसार में जो बाहर होता है, वह एक पहले से बनाई हुई फिल्म की तरह है। असली खेल तो उसके पीछे हो रहा है, जिसे हम कर्म कहते हैं।
कुछ कर्मों को बदला जा सकता है, लेकिन कुछ कर्म बदले नहीं जा सकते। जब आप हलवा बनाते हैं, तो यदि उसमें घी या चीनी कम हो, तो आप और अधिक डाल सकते हैं और यदि कोई सामग्री अधिक हो जाए, तो उसको संतुलित किया जा सकता है, लेकिन एक बार हलवा पक जाने के बाद उसको वापस ठीक नहीं किया जा सकता। दूध से खट्टा या मीठा दही बनता है, खट्टे दही को मीठा बनाया जा सकता है, लेकिन दही को वापस दूध में नहीं बदल सकते।
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जो कर्म प्रकट हो रहा है और जिसका प्रभाव दिखना शुरू हो गया है, वह प्रारब्ध कर्म है। आप प्रारब्ध कर्म को बदल नहीं सकते, क्योंकि यह वर्तमान में घटित होने लगा है। संचित कर्म अतीत के कर्मों का परिणाम होता है। यह मन के भीतर अव्यक्त प्रवृत्तियों के रूप में बना रहता है। संचित कर्मों को आध्यात्मिक अभ्यास द्वारा उनके अभिव्यक्त होने से पहले ही ठीक किया जा सकता है। हमारे द्वारा किए गए कृत्यों के भविष्य में होने वाले परिणाम आगामी कर्म कहे जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि आपने कोई अपराध किया है, तो हो सकता है कि आप आज पकड़े न जाएं, लेकिन आप इसी आशंका के साथ जीते हैं कि किसी दिन आप पकड़े जा सकते हैं। जब मन पर पड़ी हुई छाप मिट जाती है, तब आप कर्मों से मुक्त हो जाते हैं। सत्संग,योग और ध्यान नकारात्मक कर्मों के बीज को अंकुरित होने से पहले ही जला देते हैं।
एक कहावत है, ‘गहना कर्मणो गतिः’ अर्थात कर्मों की गति न्यारी है। इसे आप जितना अधिक समझते हैं, उतना ही आश्चर्यचकित होते हैं। एक समझदार व्यक्ति कर्मों को अगले जीवन में टालने के बजाय इसी जीवन में ही इनका समाधान करना चुनेगा, क्योंकि उसे टालने से जटिलताएं और बढ़ सकती हैं। यदि आपको हमेशा प्रशंसा ही मिली और कभी आलोचना का सामना नहीं करना पड़ा, तो आप कमजोर रह जाते हैं, क्योंकि बिना किसी चुनौती के केवल विस्तार, आपकी चेतना को शक्तिहीन बना देता है।
जब कोई आपकी प्रशंसा करता है, तो आपको लगता है कि आपकी चेतना का विस्तार हो रहा है, लेकिन जब कोई आपको अपमानित करता है, तो आप संकुचित हो जाते हैं। जिन्होंने आपके जीवन में चुनौतियां पैदा की हैं,वास्तव में आपको उन लोगों को धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि वे आपकी चेतना को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। उदाहरण के लिए, आप चाहते हैं कि आपके माता-पिता, पति या दोस्त एक विशेष प्रकार से व्यवहार करें, लेकिन वास्तविकता में वे लोग अपने स्वभाव और पिछले अनुभवों के अनुसार ही व्यवहार करते हैं।
उनके व्यवहार से परेशान होने के बजाय यह समझें कि आप दूसरों को नियंत्रित नहीं कर सकते, लेकिन आप अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर सकते हैं। भले ही दूसरों का व्यवहार खराब हो, आप अपनी आंतरिक शांति को प्रभावित किए बिना इसे साक्षी भाव से देख सकते हैं। यदि आवश्यकता हो तो नकारात्मक लोगों से दूरी बनाएं, लेकिन खुद को यह याद दिलाएं कि आपकी चेतना बहुत मजबूत है और वह बाहरी चुनौतियों से अप्रभावित रहती है। आपको अपनी आंतरिक शांति और आत्मा की दृढ़ता बनाए रखने पर ध्यान देना चाहिए।
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कर्म ही लोगों को जोड़ता है और कर्म ही उन्हें अलग करता है। यह कुछ लोगों को शक्तिशाली बनाता है और कुछ लोगों को दुर्बल। कर्म ही कुछ लोगों को धनवान बनाता है और कुछ को गरीब। इस संसार के जितने भी संघर्ष हैं, वे सभी कर्मों के बंधन हैं। कर्म सभी तर्कों के परे है। यह समझ आपको ऊपर उठाती है और आपको घटनाओं या लोगों में उलझने नहीं देती। यह आपको अपनी आत्मा की ओर यात्रा करने में मदद करती है। केवल मानव जीवन में ही कर्मों के बंधन से मुक्त होने की क्षमता है और केवल कुछ हजार लोग ही इससे मुक्त होना चाहते हैं। कुछ करने से कर्म के बंधनों से मुक्त नहीं हुआ जा सकता, केवल कृपा द्वारा ही कर्म के बंधनों से मुक्ति मिल सकती है।