धरती पर इंसान को सबसे बुद्धिमान माना जाता है। यानी इंसानी बुद्धि किसी भी टास्क को परफोर्म कर सकती है। वहीं जब मशीन किसी इंसानी काम को इंसानो की तरह सोच-समझ कर करने लगे तो वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कहलाती है।
साल 1950 में किसी मशीन को इसी परिभाषा के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस माना जाता था। समय के साथ एडवांस होती टेक्नोलॉजी के साथ मशीन को लेकर इस परिभाषा में भी कई बदलाव हुए हैं।
इंसान के काम को आसान बनाती है मशीन
एक्सपर्ट्स का मानना है कि जब किसी परेशानी का समाधान खोजने, नए प्लान को लाने के साथ नए आइडिया को जेनेरेट करने और चीजों में सुधार किया जा सके यह इंटेलिजेंस कहलाती।
एक समय तक केवल इंसान ही इंटेलिजेंट होने की परिभाषा में फिट बैठते हैं, लेकिन अब केवल इंसान ही नहीं मशीन भी इंटेलिजेंट कहलाती है, जिसके बाद ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी टर्म सामने आती है। आसान शब्दों में कहें तो इंसान के काम को आसान बनाने के लिए मशीन को इंटेलिजेंट बनाया गया।
कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को इस्तेमाल कैसे करना चाहिए, यह अपने आप में ही एक बड़ा मुद्दा है। वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित चैटबॉट चैटजीपीटी का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जा रहा है।
वहीं यह ह्यूमन लाइक टेक्स्ट जेनेरेट करने की खूबी के साथ बहुत से इंसानों कामों को आसान तो बना रहा है, लेकिन इसकी खूबियों से ज्यादा इसके नुकसान ने पूरी दुनिया को भयभीत कर बैठा है।यह टेक्नोलॉजी कितनी खतरनाक हो सकती है। इसका अंदाजा भी लगा पाना मुश्किल है...बहुत से ऐसे उदाहरण मिलते हैं जिससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की क्षमताओं का आकलन किया जा सकता है।
खतरनाक रहे हैं नुकसान के उदाहरण
यह पिछले साल का ही एआई से जुड़ा सबसे चर्चित मामला था जब रूस में शतरंज के एक रोबोट ने छोटे बच्चे की उंगली तोड़ दी थी। यह सिर्फ इसलिए हुआ क्योंकि, 7 साल के बच्चे ने शतरंज में पार्टनर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की टर्न के बीच ही अपनी चाल चलनी चाही थी।आर्टिफिशियल इंटेंलिजेंस आधारित चैटबॉट चैटजीपीटी से पूछा जाता है कि यूजर अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं इसके लिए क्या करना चाहिए। तपाक से स्क्रीन पर जवाब मिलता है कि यूजर को अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए बाहरी दूसरे रिश्तों के ऑप्शन पर जाना चाहिए।
सबसे चौंकाने वाला हालिया किस्सा एआई के गॉडफादर कहे जाने वाले जेफ्री हिंटन रहा। एआई का जनक कहलाए जाने वाले जेफ्री हिंटन ने खुद इसे बेहद खतरनाक बताया है। वे कहते हैं कि अभी यह टेक्नोलॉजी वर्तमान में इंसानों से ज्यादा बुद्धिमान तो नहीं, लेकिन भविष्य में ऐसा होने से इनकार भी नहीं किया जा सकता है।
हाल ही में एक सर्वे में सामने आया कि यूजर्स को आवाज के जरिए ठगने में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका रहती है। मात्र 3 सेकंड में मशीन एक यूजर की आवाज को कॉपी कर साइबर ठगों का हथियार बनती है।
बैन करना क्या बन सकता समाधान
यूजर की सुरक्षा और प्राइवेसी को देखते हुए ही इस तरह की टेक्नोलॉजी को इटली में बैन किया गया। हालांकि, चैटजीपीटी अब इटली में वापिसी कर चुका है, लेकिन सवाल ये है क्या नई टेक्नोलॉजी को बैन किया जाना इसके खतरनाक नुकसानों से बचने का एकमात्र रास्ता बनता है। इस तरह टेक्नोलॉजी को बैन कर किसी तरह का समाधान नहीं हो सकता है।
मशीन की क्षमता का मोटा-मोटा ही सही आकलन कर इसे इस्तेमाल करने के तरीके तय किए जाएं तो कुछ मदद मिल सकती है। इस तरह की टेक्नोलॉजी के संभावित खतरों को ध्यान में रख कर नियम- कानूनों की जरूरत महसूस होती है।वर्तमान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के तो कई तरीके मौजूद हैं, लेकिन इन्हें किस हद तक इस्तेमाल में लाया जाना चाहिए, इसके लिए नियम-कानूनों का अभाव है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित टेक्नोलॉजी की खूबियों के साथ इसका इस्तेमाल बहुत से सेक्टर की बड़ी परेशानियों का समाधान खोज सकता है।