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CSIR की कमाई में भारी वृद्धि, तेजी से आत्मनिर्भर बनने की ओर हो रही अग्रसर

विगत वर्ष की तुलना में सीएसआईआर ने इस वर्ष (2017-18) निजी क्षेत्र की कंपनियों को अपनी तकनीक देकर करीब 70% ज्यादा कमाई की है

By Shilpa SrivastavaEdited By: Updated: Tue, 31 Jul 2018 07:31 AM (IST)
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CSIR की कमाई में भारी वृद्धि, तेजी से आत्मनिर्भर बनने की ओर हो रही अग्रसर

नई दिल्ली (अमोद कुमार)। आमतौर पर फंड के दबाव से जूझते रहने और सरकारी अनुदानों पर आश्रित होने का तगमा झेल रही केंद्र सरकार के कई संस्थाओं से अलग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की महत्वपूर्ण संस्था सीएसआईआर (CSIR) ने विगत 3 सालों में कैसे अपनी कमाई को दोगुना कर लिया है और कैसे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रही है ये एक पहेली से कम नहीं। यहां ये जानना जरूरी है कि सीएसआईआर ने बाहरी कैश-फ्लो बढ़ाकर ये चमत्कार किया है। सीएसआईआर निजी(प्राइवेट) कंपनियों के हाथों अपनी लाइसेंसिंग पेटेंटेड टेक्नोलॉजी साझा या बेचकर ही आत्मनिर्भर बना है।

कैसे किया कायाकल्प?

विगत वर्ष की तुलना में सीएसआईआर ने इस वर्ष (2017-18) निजी क्षेत्र की कंपनियों को अपनी तकनीक देकर करीब 70% ज्यादा कमाई की है। सीएसआईआर के डायरेक्टर जनरल गिरीश साहनी इसे संस्था के आत्मनिर्भर बनने की दिशा में सबसे अहम करार देते हैं। चालू वित्त वर्ष में कुल कमाई लगभग 963 करोड़ रुपये रहा, जिसमें 515 करोड़ रुपये की आय निजी क्षेत्र की कंपनियों को टेक्नोलॉजी का लाइसेंसिंग हस्तांतरण करके हुई है, जबकि 448 करोड़ की आय सरकारी कंपनियों से हुई है। सीएसआईआर के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सरकारी कंपनियों की तुलना में निजी कंपनियों से आय ज्यादा हुई है। इससे पहले सीएसआईआर ने वर्ष 2016-17 में 727 करोड़ रुपये कमाए थे मगर उसमें प्राइवेट कंपनियों से की गयी कमाई 302 करोड़ था, जबकि सरकारी संस्थाओं से हुई कमाई 424.45 करोड़ रुपए था। इससे पहले 2015-16 और 2014-15 में निजी कंपनियों से हुई कमाई 100-200 करोड़ रुपए से ज्यादा कभी नहीं रही। सीएसआईआर के डीजी गिरीश साहनी कहते हैं कि प्राइवेट कंपनियों से 500 करोड़ रुपये की कमाई ज्यादा नहीं है, बल्कि ये इस बात का संकेत है कि सीएसआईआर अपने पेटेंट के जरिए निजी कंपनियों से अब ज्यादा से ज्यादा धन कमा रहा है और आगे और भी धन कमा सकता है।

व्यावसायिक सोच और परिणाम प्राप्ति पर जोर:           

वर्ष 2015 में सीएसआईआर की देहरादून में आयोजित बैठक इसके कायाकल्प में निर्णायक साबित हुआ। जहां ये तय किया गया कि आगामी 2-3 सालों में संस्था के सभी 38 लैब को आत्मनिर्भर बनाया जायेगा। ये भी तय किया गया कि संस्था के वैज्ञानिकों द्वारा गरीब वर्ग को ध्यान में रखकर प्रतिवर्ष कम से कम 12 गेम चेंजिंग टेक्नोलॉजी का निर्माण किया जायेगा।

सीएसआईआर के सूत्र बताते हैं कि संस्था को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 26 सितम्बर 2016 को सीएसआईआर फाउंडेशन दिवस कार्यक्रम में संस्थान के वैज्ञानिकों से “पेटेंट लाइसेंसिंग की जगह टेक्नोलॉजी निर्माण पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया। इससे संस्थान के वैज्ञानिकों को और भी जनोपयोगी शोध, निर्माण और उसका उपयोग बढ़ाने की दिशा में बल मिला। मोदी के एक सुझाव से वैज्ञानिकों में सालों से अपने शोध को पेटेंट कराकर लाइसेंस रखने की प्रवृति से अलग अब अमल में लाने योग्य तकनीक बनाने और उसके उपयोगी बनाने की प्रथा का तेजी से विकास हुआ।

विगत 4 सालों में सीएसआईआर ने 600 विभिन्न टेक्नोलॉजी का लाइसेंस किया है। इस दिशा में महज 1 मिनट में दूध में मिलावट का पता लगा लेने वाला मशीन “क्षीर टेस्टर” और “क्षीर स्कैनर” का निर्माण किया है जिसके जरिए मिलावट में प्रयुक्त यूरिया, साल्ट, डिटर्जेंट,साबुन,सोडा, बोरिक एसिड और हाइड्रोजन पेरोक्साइड आदि का पता लग जाता है।

सीएसआईआर ने “दृष्टि ट्रांसमिसोमीटर” का निर्माण पूर्णतः

देशी तकनीक के जरिए सिविल एविएशन सेक्टर को विजिबिलिटी मापने का एक पूर्ण घरेलू यंत्र मिल गया है जिससे विमानों की आवाजाही आसान हुई है। अबतक देशभर के 21 एयरपोर्ट पर इसका सफल उपयोग हो रहा है। इसी तरह डायबिटिज की बढ़ती समस्या से लड़ने के लिए जड़ी-बूटियों पर आधारित पूर्णतया घरेलू तकनीक से एंटी-डायबिटिक दवा “बीजीआर-34” बनाया है जिसे एक देशी प्राइवेट कंपनी को सस्ता दवा निर्माण के लिए दिया है,उस कंपनी ने महज 2 साल में 100 करोड़ से ज्यादा का व्यवसाय किया है। अब इस तरह के सैकड़ों जनोपयोगी पेटेंट को तकनीक का रूप देकर धनोपार्जन किया जाना संभव हो रहा है।

सीएसआईआर ने व्यावसायिक प्रवृति को ध्यान में रखते हुए अपने सभी 38 लैब्स को साफ-साफ निर्देश दिए है कि अपना खर्च स्वयं वहन करने की दिशा में काम करें और सरकारी अनुदान की बजाए स्वपोषित व्यवस्था का निर्माण किया जाना चाहिए। सीएसआईआर ने अब अपना अप्रोच पूरी तरह परिवर्तित करते हुए सिर्फ कागजी रिसर्च की बजाए अब उपयोग में लाए जाने और लाइसेंस प्राप्त करने योग्य रिसर्च पर ध्यान बढ़ा दिया है।

अपनी बदले सोच की वजह से ही सीएसआईआर की वर्ष 2017 की विश्व रैंकिंग में भारी उछाल आया है। शिमागो इंस्टिट्यूट रैंकिंग वर्ल्ड रिपोर्ट में पिछले 2 सालों में 30 पोजिशन उछाल लेकर 1207 देशी सरकारी संस्थाओं में से 9वें स्थान पर रहा, जबकि विश्वभर के 5250 संस्थानों में से सीएसआईआर 75वें स्थान पर रहा।

सीएसआईआर की बाहरी कैश फ्लो ने नई ऊंचाई को छुआ है। वर्ष 2017-18 के दौरान 235 टेक्नोलॉजी और उत्पाद को निजी कंपनियों को लाइसेंस दिया है। विगत वित्त वर्ष में बाहरी कैश-फ्लो को नीचे दिए गए चार्ट से बखूबी समझा जा सकता है।

ये सीएसआईआर की सोच में बदलाव का ही नतीजा है कि विगत 2 सालों में इसने अपनी इंडस्ट्रियल आय को लगभग तीन गुना कर एक नए इतिहास को रचने में सफल हुआ है लेकिन संस्था में ही कुछ वैज्ञानिकों द्वारा दबी जुबान से सीएसआईआर के पूर्ण व्यावसायिक सोच का विरोध भी होने लगा है। वैसे वैज्ञानिकों का मानना है कि ज्यादा प्रोडक्ट ओरिएंटेड अप्रोच संस्था के अनुसंधान को दीर्घ काल में प्रभावित कर सकता है।

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