खेती किसानी को नई ऊंचाई देते ड्रोन, जानिए कैसे होते हैं मददगार
खेत में खड़ी फसल के किसी हिस्से में हो रही बीमारी का पता लगाना हो कीटनाशक नैनो यूरिया का छिड़काव करना हो या मिट्टी की गुणवत्ता और खेत या बाग की उपज का सटीक अनुमान लगाना हो ये सभी काम ड्रोन के जरिये आसानी से हो रहे हैं। ड्रोन तकनीक का खेती में बढ़ता अनुप्रयोग नमो ड्रोन दीदी जैसी योजनाएं कृषि लागतों में कमी और उपज में बढ़ोतरी करता है।
ब्रह्मानंद मिश्र, नई दिल्ली। भोपाल के आइसीएआर, सीआइएई के विज्ञानी रमेश कुमार साहनी ने बताया कि भारत में अभी ड्रोन का ज्यादातर प्रयोग स्प्रेइंग के लिए हो रहा है। कहीं-कहीं मल्ट्री स्पेक्ट्रल इमेजिंग करके फसलों की बीमारियों को जानने का प्रयास किया जा रहा है। इससे किसी फसल में संभावित बीमारी के साथ-साथ खेत के प्रभावित हिस्से को चिह्नित करना आसान हो रहा है।
दूसरा, ड्रोन के जरिये सर्वेक्षण कर उपज का सटीक अनुमान लगाना संभव हो रहा है, जैसे संतरे या आम में कितनी पैदावार हो सकती है, इसका सही-सही अनुमान लगा सकते हैं। बगीचे में कितने पेड़ हैं या फसल की बुआई के बाद कितने पौधे सही उगे हैं, यह भी जान सकते हैं। मान लें खेत में 10 सेमी. के गैप पर पौधे रोपते हैं तो प्लांट का कितना जर्मिनेशन हुआ, यह ड्रोन सर्वे से जान सकते हैं और दोबारा खाली स्थान पर पौधे रोप सकते हैं। इस तरह की सुविधाओं के आने से खेती के छोटे रकबे में भी अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।
लागत और मजदूरी में कमी
स्प्रे की बात करें तो इससे कम समय में अधिक खेत को कवर किया जा सकता है। अब नैनो यूरिया का स्प्रे शुरू हो गया है, इससे लेबर और लागत में कमी आती है। जिन कार्यों के लिए छह-सात घंटे लगते हैं उसे ड्रोन से 30-35 मिनट में पूरा कर सकते हैं। ड्रोन के इस्तेमाल से लेबर में 70-80 प्रतिशत तक कमी आ जाएगी। सीआइएई की तरफ से किसानों को जागरूक किया जा रहा है। हाल में 250 हेक्टेयर खेतों में जाकर ड्रोन का डेमो दिया गया है। पूरे देश में इससे अनेक संबंधित प्रोजेक्ट चल रहे हैं। ड्रोन सिस्टम की कार्यप्रणाली के बारे में किसानों को जागरूक किया जा रहा है।ड्रोन संचालन के नियमों का निर्धारण
आइसीएआर की तरफ ड्रोन संचालन के लिए प्रोटोकाल तैयार किया जा रहा है, जैसे ड्रोन कितनी ऊंचाई पर और अलग-अलग फसलों के लिए किस गति पर उड़ाना चाहिए। बहुत अधिक स्पीड होने पर ड्राप पौधों तक सही से नहीं पहुंचता या कम स्पीड पर इसकी अधिक मात्रा हो सकती है। इसी तरह ड्रोन की ऊंचाई का भी ध्यान रखना होता है। नीचे उड़ाने पर फूल और पत्ते के टूटने का डर रहता है। ऐसे अनेक अध्ययन चल रहे हैं। अलग-अलग फसलों के लिए विभिन्न संस्थानों में प्रोटोकाल विकसित किए जा रहे हैं।
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यूरिया का छिड़काव
स्प्रे के बाद अब यूरिया ब्राडकास्ट (ग्रेनुलर छिड़काव) किया जा रहा है। अभी एक व्यक्ति को एक बोरी यूरिया का छिड़काव करने में काफी समय और मेहनत लगती है। वहीं ड्रोन से एक बोरी यूरिया का कम समय में छिड़काव संभव है। ड्रोन से 10 मिनट में एक एकड़ एरिया को कवर किया जा सकता है। कहीं-कहीं बीज की ब्राडकास्टिंग कर बुआई की जा रही है। आगे नई तकनीक विकसित हो रही है, जिससे फसलों की पंक्तिबद्ध बुआई भी संभव हो सकेगी। भारत में यह काम अभी शुरुआती चरण में है।कृषि में क्रांतिकारी बदलाव है ड्रोन का प्रयोग
ड्रोन डेस्टिनेशन के सीईओ चिराग शर्मा ने बताया कि ड्रोन तकनीक का कृषि समेत अनेकानेक क्षेत्रों में प्रयोग बढ़ रहा है। 4G के बाद अब 5G कनेक्टिविटी से इसकी क्षमता में सुधार होगा। तकनीक के विकास और बेहतर प्रशिक्षण से ड्रोन के गिरने की दर में भी कमी आएगी। अमेरिका समेत कुछ देशों में ड्रोन जोन बनाए गए हैं, ताकि किसी तरह के व्यवधान से बचा जा सके। इसमें आटोमेशन के माध्यम से ड्रोन के प्रयोग को सुरक्षित और बेहतर बनाया जा रहा है।