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तो क्या सिर्फ मौज मस्ती करेंगे इंसान, जब AI से होने लगेगा सारा काम

जब टाइपराइटर आए तो दफ्तरों में से हाथों से लिखे जाने वाली बहुत सी नौकरियां खत्म हो गई। इसके बाद दौर आया कंप्यूटर्स का तो कहा जाने लगा कि ये बहुत सारी नौकरियां खत्म कर देगा। अब एआई को लेकर भी ऐसा ही दावा किया जा रहा है। लेकिन टेक्नोलॉजी के आने नौकरियां पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। बल्कि उनका स्वरूप बदल गया है।

By Subhash Gariya Edited By: Subhash Gariya Updated: Fri, 26 Jul 2024 08:19 PM (IST)
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आईटी दिग्गजों का मानना है एआई से नौकरियों का स्वरूप बदल जाएगा।

टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। डेनियल लिबरमैन (Daniel Lieberman) हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में जीवाश्म विज्ञानी (Paleoanthropologist) हैं। उन्होंने एक किताब लिखी है, 'एक्सरसाइज्ड: व्हाई समथिंग वी नॉट इवॉल्व्ड टू डू इज हेल्दी एंड रिवार्डिंग'। लिबरमैन ने इंसानों की फिजिकल एक्टिविटी के विकास की बड़ी बारीक स्टडी की है। उनका मानना है कि इंसान कसरत करके अपनी ऊर्जा खपाने के लिए पैदा नहीं हुए हैं, बल्कि उनका जन्म गप लड़ाने, आराम करने और नई चीजों की खोज करने के लिए हुआ है। जैसा कि हमारे पूर्वजों के समय यानी आदिमानव के समय होता था।

अगर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) इसी रफ्तार से आगे बढ़ती रही, तो शायद वही होगा, जो लिबरमैन बताते हैं। इंसान सिर्फ आराम करेंगे, गप लड़ाएंगे और मौज करेंगे, क्योंकि उनका सारा काम AI करने लगेगी। अमेरिका के अरबपति कारोबारी और टेस्ला के मालिक एलन मस्क (Elon Musk) का भी कहना है कि आखिर में AI सभी नौकरियों को खत्म कर देगा। फिर लोग शौक के लिए नौकरी करेंगे, जैसे कि आज शौकिया फिल्म देखते या फिर गेम खेलते हैं।

क्या सच में इंसानों की जॉब खा जाएगा एआई?

पहले लिखने का काम हाथ से होता था। इसके लिए हर दफ्तर में बहुत सी नौकरियां थीं। लेकिन जब टाइपराइटर आया, तो हाथ से लिखने वालों की बड़े पैमाने पर छंटनी हो गई। इसी तरह कंप्यूटर के आने के बाद भी कहा गया कि यह सारी नौकरियों को खत्म कर देगा। औद्योगिक क्रांति के मशीनरी को अपनाते वक्त भी यही डर था। एटीएम के समय भी कहा गया कि इससे बैंक कर्मचारियों की जरूरत खत्म हो जाएगी।

लेकिन, इन सबका इतिहास यही बताता है कि नई तकनीकों से नौकरियों का सिर्फ स्वरूप बदला, नौकरियां खत्म नहीं हुईं, बल्कि कई मायनों में उनमें इजाफा ही हुआ। इंसानों के लिए सहूलियत बढ़ी, सो अलग।

दिग्गज आईटी फर्म इन्फोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति का भी यही मानना है। वह कहते हैं कि एआई से नौकरियां खत्म होने की बात फिजूल है, इसी तरह का हौव्वा कंप्यूटर को लेकर भी फैलाया गया था। हालांकि, वह मानते हैं कि ऑटोमेटेड ड्राइविंग जैसी कई तकनीकों की वजह से नौकरियां जा सकती हैं। लेकिन, उनका यह भी कहना है कि एआई से इंसानों को फायदा ही होगा और उनकी कार्यकुशलता बढ़ेगी।

तो क्या एआई से हमें डरने की जरूरत नहीं?

नारायण मूर्ति की बात बिल्कुल दुरुस्त है। लेकिन, टाइपराइटर या कंप्यूटर के साथ अच्छी बात यह थी कि वे खुद ब खुद नहीं चल सकते थे। उन्हें चलाने की इंसानी हाथों की दरकार हमेशा रही। लेकिन, एआई के साथ ऐसा नहीं है। अभी भले ही इसके अंदर सोचने-समझने की कुव्वत ना हो, पर जिस हिसाब से यह एडवांस हो रहा है, वह दिन भी दूर नहीं लगता।

अभी एआई रोबोट खुद से फैसले नहीं ले सकते, झूठ बोलने जैसा इंसानी हुनर नहीं है। लेकिन सोच कर देखिए, अगर उन्हें यह नेमत मिल जाती है, तो? हॉलीवुड की बहुचर्चित साइंस फिक्शन फिल्म 'Matrix' मिसाल है कि सोचने-विचारने वाली मशीनें इंसानी सभ्यता के लिए कितनी घातक साबित हो सकती हैं।

एआई से कितनी नौकरियां जा सकती हैं?

चाहे एआई के समर्थक हो या विरोधी, कोई इस बात से इनकार नहीं कर रहा कि एआई से नौकरियां जाएंगी। सवाल बस संख्या को लेकर है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का कहना है कि एआई नौकरियों को 'सुनामी' की तरह लीलने वाला है। उसका दावा है कि एआई से विकसित देशों में 60 प्रतिशत लोग रोजगार गंवाएंगे। वहीं, पूरी यह दुनिया के लिए यह आंकड़ा 40 फीसदी हो सकता है।

हालांकि, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) की रिपोर्ट टाइपराइटर और कंप्यूटर वाले ट्रेंड को ही फॉलो करती है। उसका कहना है कि बेशक एआई से कोडिंग और ट्यूशन जैसे सेक्टर में लाखों लोगों का रोजगार जाएगा, लेकिन यह करीब 10 करोड़ नई नौकरियां पैदा भी करेगा। लेकिन, इसके लिए लोगों को नई तकनीक के हिसाब से खुद को ढालना होगा, ताकि वे नई चुनौतियों का सामना कर सकें।

नौकरी नहीं होगी तो कैसे चलेगा खर्च?

एआई से रोजगार पैदा होने या जाने को लेकर बहुत से किंतु-परंतु है। लेकिन, एआई के एडवांस होने की रफ्तार को देखते हुए मस्क की नौकरियां खत्म होने की आशंका को सिरे से खारिज भी नहीं किया जा सकता। ऐसे में सवाल उठता है कि जब नौकरियां नहीं होंगी, तो इंसानों का खर्च कैसे चलेगा, उनके खाने-पीने का इंतजाम कैसे होगा?

शायद इसका बंदोबस्त वही सरकार करेगी, जिसे आप वोट देकर चुनते हैं। यहां आता है यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) का कॉन्सेप्ट। यह ऐसी अवधारणा है, जिसमें सरकार अपने वयस्क नागरिकों के खाते में नियमित तौर एक निश्चित रकम भेजती है। इसके बदले उन्हें कोई काम करने की जरूरत नहीं होती।

अमेरिका, अर्जेंटीना से लेकर सऊदी अरब तक करीब 60 देशों में यूनिवर्सल बेसिक इनकम किसी ना किसी रूप में चलन में रही है। कोरोना के समय भी बहुत से देशों ने इसके जरिए अपने नागरिकों की मदद की, क्योंकि उस वक्त बहुत से लोगों ने महामारी के चलते अपनी नौकरी गंवा दी थी।

अगर नौकरी नहीं होगी तो क्या करेंगे इंसान?

आपने यह कहावत अक्सर सुनी होगी कि दुनिया गोल है। इसका मतलब समय की चक्रीय प्रकृति है यानी हर चीज घूम-फिरकर वहीं आ जाती है, जहां से शुरू होती है। अगर इंसानों का सारा काम AI से होने लगेगा, तो हमारे सामने आदिमानव वाला दौर आ सकता है। इंसान सिर्फ अपना वक्त काटने की कोशिश करेंगे, क्योंकि उनके पास 'काम' ही नहीं रहेगा।

लेकिन, सवाल फिर घूम फिरकर वहीं आता है कि इंसानों कब आराम करके अपना वक्त काटेंगे। बोर होना भी तो उनका स्वभाव है। शायद इंसानों आराम करके भी बोर हो जाएगा। वह मशीनों को हटाएगा, उन पर निर्भरता कम करेगा और काम करना शुरू करेगा। बशर्ते तब तक मशीनें उससे ज्यादा 'शक्तिशाली' होकर उसपर अपना नियंत्रण ना कर चुकी हों।

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