अंतरिक्ष के क्षेत्र में चौथी महाशक्ति बना भारत, जानें क्या है A-SAT और LEO?
अमेरिका रूस और चीन के बाद भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है जिसने अंतरिक्ष में घूम रहे एंटी सैटेलाइट (A-SAT) को मार गिराया है
By Harshit HarshEdited By: Updated: Thu, 28 Mar 2019 08:21 AM (IST)
नई दिल्ली (टेक डेस्क)। अंतरिक्ष की तकनीक में आज भारत दुनिया की चौथी महाशक्ति बनकर उभरा है। राष्ट्र के नाम संदेश में पीएम नरेन्द्र मोदी ने बताया कि अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत दुनिया का चौथा देश बन गया है जिसने अंतरिक्ष में घूम रहे एंटी सैटेलाइट (A-SAT) को मार गिराया है। इस एंटी सैटेलाइट को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) के 300 किलोमीटर के अंदर मारा गया है। इस पूरी प्रक्रिया में ISRO (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन) को महत तीन मिनट लगे। इसरो ने इस एंटी सैटेलाइट को मारने के लिए मिशन शक्ति चलाया था जो पूरी तरह कामयाब रहा। आइए, जानते हैं A-SAT और LEO के बारे में।
'एंटी सैटेलाइट' यानी A-SAT क्या है?
एंटी-सैटेलाइट यानी A-SAT को स्पेस वेपन के तौर पर भी जाना जाता है जिसका इस्तेमाल सैटेलाइट को तबाह करने के लिए किया जाता है। दुनिया के कुछ देश इस तरह के एंटी सैटेलाइट को अंतरिक्ष में छोड़ते हैं जिसका इस्तेमाल सैटेलाइट को तबाह करने के लिए किया जाता है। हालांकि, अभी तक किसी भी तरह के A-SAT सिस्टम का इस्तेमाल यूद्ध के दौरान नहीं किया गया है। भारत से पहले A-SAT को मार गिराने की क्षमता केवल अमेरिका, चीन और रूस के पास थी। आज भारत ने मिशन शक्ति के तहत A-SAT को लो अर्थ ऑर्बिट में गिराकर यह उपलब्धि हासिल की है।
टेक के नए वीडियोज देखने के लिए Jagran HiTech चैनल को सब्सक्राइब करें।इस एंटी सैटेलाइट सिस्टम के जनक के तौर पर अमेरिका और रूस को जाना जाता है। अमेरिका ने सन 1950 में जबकि रूस ने 1956 में एंटी सैटेलाइट सिस्टम विकसित किया है। साल 2007 में चीन ने अपने ही एक सैटेलाइट को लो अर्थ ऑर्बिट में मारकर इस तकनीक के क्षेत्र में कदम रखने वाला तीसरा देश बन गया। भारत 2010 में इस तरह के एंटी सैटेलाइट मिसाइल को लो ऑर्बिट में मारने की तकनीक पर काम कर रहा था।
टेक के नए वीडियोज देखने के लिए Jagran HiTech चैनल को सब्सक्राइब करें।LEO यानी 'लो अर्थ ऑर्बिट' क्या है?
LEO एक अर्थ सेंटर्ड ऑर्बिट होता है जिसका एल्टीट्यूड 2,000 किलोमीटर या उससे कम होता है। यह मुख्य तौर पर पृथ्वी कै ऑर्बिट का एक तिहाई होता है। इस ऑर्बिट में एक सैटेलाइट दिन में 11.25 चक्कर काट सकता है। वैज्ञानिकों द्वारा बनाए गए ज्यादातर सैटेलाइट्स इसी ऑर्बिट में घूमते हैं। LEO में किसी भी सैटेलाइट को भेजने के लिए बहुत ही कम उर्जा का इस्तेमाल होता है जिसकी वजह से इन सैटेलाइट्स से हाई बैंडविथ और लो कम्युनिकेशन लेटेंसी मिलती रहती है। LEO में ही ज्यादातर स्पेस स्टेशन भी स्थापित किए जाते हैं जिसकी मदद से अंतरिक्ष की गतिविधियों पर निगरानी रखी जाती है। LEO का इस्तेमाल कई कम्युनिकेशन ऐप्लीकेशनके लिए किया जाता है जिसमें से एक इरीडियम फोन सिस्टम है।यह भी पढ़ें:
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