अब देश में ही विकसित होगी हाइपरलूप ट्रेन, प्लेन जैसी मिलेगी रफ्तार!
हाइपरलूप ट्रेन काफी समय से चर्चा में है। अब इस सुपर स्पीड ट्रेन को स्वदेशी तरीके से देश में ही विकसित किया जाएगा। इसके लिए रेल मंत्रालय ने आइआइटी मद्रास के साथ हाथ मिलाया है। आइए जानें इस दिशा में किस तरह से कदम बढ़ाए जा रहे हैं...
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 25 May 2022 03:13 PM (IST)
अमित निधि। India First Indigenous Hyperloop आज जब सबसे तेज परिवहन की बात होती है, तो आमतौर पर लोग हवाई जहाज या फिर बुलेट ट्रेन की बात करते हैं, लेकिन शायद आप इसमें हाइपरलूप ट्रेन को भूल रहे हैं। आमतौर पर हाइपरलूप ट्रेन की रफ्तार 1,000-1,300 किलोमीटर प्रति घंटा मानी जाती है यानी सिर्फ दो घंटे में कश्मीर से कन्याकुमारी तक का सफर संभव है। अब भारतीय रेलवे ने देश में रेल के सफर को सुपर फास्ट, आसान और आधुनिक बनाने की दिशा में अहम कदम उठाया है। केंद्रीय रेलवे और इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आइआइटी मद्रास के साथ मिलकर हाइपरलूप ट्रांसपोर्ट तकनीक पर रिसर्च की मंजूरी दे दी है। इसके तहत स्वदेशी तरीके से देश के अंदर ही हाइपरलूप तकनीक आधारित ट्रांसपोर्ट सिस्टम विकसित करने पर काम होगा। इससे कार्बन उत्सर्जन और ऊर्जा खपत को कम करने के लक्ष्य में भी मदद मिलेगी।
आइआइटी मद्रास की मदद है महत्वपूर्ण: हाइपरलूप एक ऐसी तकनीक पर काम करता है, जिसमें कम दबाव वाली ट्यूबों में मैग्नेटिक उत्तोलन का उपयोग करके हवाई जहाज जैसी रफ्तार हासिल की जाती है। भारतीय रेलवे अब आइआइटी मद्रास को हाइपरलूप टेक्नोलाजीज के लिए एक्सीलेंस सेंटर स्थापित करने में भी मदद करेगा। दरअसल, मंत्रालय की दिलचस्पी स्वदेशी हाइपरलूप में तब बढ़ गई, जब उसे पता चला कि 'आविष्कार हाइपरलूप' नामक आइआइटी-मद्रास के 70 छात्रों की एक टीम 2017 से ही हाइपरलूप-आधारित परिवहन प्रणाली पर कार्य कर रही है। रेलवे मंत्रालय ने कहा है कि देश को कार्बन न्यूट्रल बनाने में यह तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, क्योंकि इसके लिए कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। स्वदेशी हाइपरलूप कार्यक्षमता के मामले में अमेरिका में वर्जिन हाइपरलूप सुविधा के बराबर होगी, लेकिन इसकी लागत बेहद कम होगी।
8.4 करोड़ रुपये की लागत: इस साल मार्च में आइआइटी मद्रास ने कांटैक्टलेस पाड प्रोटोटाइप के विकास के लिए रेल मंत्रालय से संपर्क किया था। अब आइआइटी परिसर में हाइपरलूप वैक्यूम ट्यूब तैयार किया जा रहा है। इसका भारतीय रेलवे द्वारा हाइपरलूप पर आगे के शोध के लिए टेस्ट बेड के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इस प्रोजेक्ट की आनुमानित लागत 8.34 करोड़ रुपये है। आपको बता दें कि इस स्वदेशी तकनीक पर कार्य करने वाली आविष्कार हाइपरलूप की टीम ने स्पेसएक्स हाइपरलूप पाड प्रतियोगिता-2019 में टाप-10 वैश्विक रैंकिंग हासिल की थी। यह ऐसा करने वाली एकमात्र एशियाई टीम थी। आविष्कार हाइपरलूप परियोजना को यूरोपीय हाइपरलूप वीक-2021 में मोस्ट स्केलेबल डिजाइन का अवार्ड भी मिला था।
क्या है टीम आविष्कार हाइपरलूप: आविष्कार हाइपरलूप आइआइटी छात्रों की एक टीम है, जिसमें 70 सदस्य हैं। ये छात्र इंजीनियरिंग के 11 अलग-अलग विषयों से जुड़े हैं। आइआइटी-मद्रास ने दावा किया है कि टीम आविष्कार द्वारा प्रस्तावित हाइपरलूप माडल 1,200 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की टाप स्पीड प्राप्त कर सकती है। संस्थान ने कहा कि टीम भारत में हाइपरलूप ट्यूब अनुसंधान का नेतृत्व कर रही है और पहले से ही ट्यूब डिजाइन पेटेंट करा चुकी है। यह टीम 500 मीटर लंबी हाइपरलूप परीक्षण सुविधा का भी निर्माण कर रही है, जिसे 2022 के अंत तक चेन्नई के बाहरी इलाके में संस्थान के डिस्कवरी परिसर में पूरा होने की उम्मीद है। वैक्यूम ट्यूब विकसित होने पर यह अमेरिका में वर्जिन हाइपरलूप वन की परीक्षण सुविधा के बराबर होगा।
हाइपरलूप ट्रेन की तकनीक?: हाइपरलूप तकनीक पर इस समय दुनिया के कई देशों में कार्य हो रहा है। हालांकि इस तकनीक का कांसेप्ट लाने वाले एलन मस्क थे। इसे हाइपरलूप इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें ट्रैवलिंग एक लूप के जरिए होता है और हवाई जहाज की स्पीड से चीजों को एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाया जा सकता है। कैप्सूल की तरह दिखने वाली हाइपरलूप ट्रेन मैग्नेटिक प्रभाव के जरिए चलती है। इसमें यात्रा के लिए खास तरीके से तैयार किए गए कैप्सूल या पाड्स का उपयोग होता है। ये पाड्स इन पाइपों में इलेक्ट्रिक चुंबकीय प्रभाव की वजह से ट्रैक से थोड़ा ऊपर उठकर चलते हैं, जिससे ज्यादा गति मिलती है और घर्षण भी कम होता है। पाड्स के अंदर वैक्यूम जैसा वातावरण होता है और हवा की गैरमौजूदगी में पाड्स को 1,000 से लेकर 1,300 किमी/घंटा की स्पीड से चलाया जा सकता है।