Chandrayaan 2: ISRO के साथ इस नेटवर्क तकनीक के जरिए संपर्क में था विक्रम लैंडर
ISRO Chandrayaan 2 के विक्रम लैंडर और ऑर्बिटर के साथ संपर्क कायम रखने के लिए IDSN (Indian Deep Space Network) का इस्तेमाल करता है...
By Harshit HarshEdited By: Updated: Sat, 07 Sep 2019 03:15 PM (IST)
नई दिल्ली, टेक डेस्क। ISRO से रात के करीब 1 बजकर 52 मिनट पर चंद्रयान 2 में इस्तेमाल किए गए विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया। ISRO चंद्रयान 2 के विक्रम लैंडर और ऑर्बिटर के साथ संपर्क कायम रखने के लिए IDSN (Indian Deep Space Network) का इस्तेमाल करता है। अभी ISRO इसी नेटवर्क तकनीक की मदद से चांद की बाहरी कक्षा में घूम रहे ऑर्बिटर के साथ संपर्क में है। इस नेटवर्क तकनीक के साथ ISRO ऑर्बिटर और विक्रम लैंडर से डाटा का आदान प्रदान करता है। चांद की सतह पर मूव करने वाला रोबोटिक व्हीकल, जिसे प्रज्ञान रोवर कहते हैं, वह इस तकनीक का इस्तेमाल नहीं करता है। प्रज्ञान रोवर लो फ्रिक्वेंसी वाले नेटवर्क के साथ केवल विक्रम लैंडर के साथ ही संपर्क कर सकता है। यही वजह है कि ISRO के वैज्ञानिकों का विक्रम लैंडर से संपर्क टूटने के बाद प्रज्ञान रोवर की वास्तविक स्तिथि का पता नहीं चल सका है।
क्या है IDSN?IDSN एक कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी है, जिसका इस्तेमाल ISRO अंतरिक्ष में भेजे गए सैटेलाइट से संपर्क साधने का काम करता है। इस नेटवर्क को स्थापित करने के लिए एख बहुत ही बड़े नेटवर्क एंटिना का इस्तेमाल किया गया है जो हाई फ्रिक्वेंसी रेडियो सिग्नल भेजने में सक्षम है। ISRO के इस IDSN नेटवर्क का हब कर्नाटक की राजधानी बैंगलूरू के ब्यालालू में स्थापित है। इसे 17 अक्टूबर 2008 को स्थापित किया गया था। इस एंटिना को हैदराबाद स्तिथ इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने डिजाइन किया है। इस एंटिना को स्थापित करने में कुल 65 करोड़ रुपये का खर्च आया है। ISRO के इस IDSN नेटवर्क की तरह का ही नेटवर्क अमेरिका, चीन, रूस, यूरोप और जापान अपने स्पेस प्रोग्राम के लिए करते हैं।
इसरो अंतरिक्ष में सिग्नल भेजने के लिए ISRO Telemetry, Tracking and Command Network (ISTRAC) का इस्तेमाल करता है। इसमें तीन एंटिना लगे होते हैं, जिसमें एक 18m (59ft) का, एक 32m (105ft) का और एक 11m का एंटिना शामिल है। IDSN बेसबैंड सिस्टम के जरिए सिग्नल ट्रांसमिट करता है। इसके सबसे बड़े 32 मीटर वाले एंटिन का व्हील एंड ट्रैक डिजाइन के आधार पर बनाया गया है। ये S बैंड और X बैंड दोनों को अपलिंक करने में सक्षम है। इस 32 मीटर के एंटिना को Chandrayaan 1 के ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा 18 मीटर का एंटिना एक डीप स्पेस एंटिना के तौर पर जाना जाता है। वहीं, तीसरा एंटिना 11 मीटर का है, जिसका इस्तेमाल टर्मिनल एंटिना के तौर पर काम करता है। इन एंटिना का इस्तेमाल Chandrayaan 1, Chandrayaan 2 और Mangalyaan से संपर्क साधने के लिए किया गया है।