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पुराने स्मार्टफोन में भी हो सकता है ‘नाविक’ का इस्तेमाल, जानिए इस पर कितना आएगा खर्च

ISRO NavIC एक वाहन में ट्रैकर (ISRO NavIC) लगाने का खर्च करीब 18000 रुपये आता है लेकिन अगर वाहनों की संख्या अधिक हो तो प्रति वाहन 12000 रुपये की लागत आएगी। बता दें यह खर्च पहले साल के लिए है। (फोटो-जागरण)

By Anand PandeyEdited By: Anand PandeyUpdated: Mon, 29 May 2023 12:59 PM (IST)
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ISRO NavIC can be used in old smartphones too know how much it will cost
नई दिल्ली, सुनील कुमार सिंह। इसरो ने दूसरी पीढ़ी के नेविगेशन सैटेलाइट एनवीएस-01 को सोमवार को सफलतापूर्वक लांच कर दिया। ‘नाविक’ नेविगेशन सिस्टम का पहला सैटेलाइट 10 साल पहले, 1 जुलाई 2013 को लांच होने और 1 अप्रैल 2019 से कॉमर्शियल वाहनों में इस पर आधारित वाहन ट्रैकिंग सिस्टम लगाना अनिवार्य करने के बावजूद अभी तक यह भारत में ही लोकप्रिय नहीं हो सका है।

इसका सबसे बड़ा कारण है कि नाविक (नेविगेशन इन इंडियन कॉन्स्टेलेशन - NavIC) का प्रयोग करने के लिए अलग हार्डवेयर चाहिए। बेंगलुरू स्थित स्टार्टअप एलिना जियो सिस्टम्स ने ऐसा एडाप्टर तैयार किया है जिसे लगाने पर पुराना फोन भी नाविक को सपोर्ट करने लगेगा। कंपनी ने अभी इसकी कीमत 6,000 रुपये रखी है। इस लिहाज से आम यूजर्स को यह थोड़ा महंगा लग सकता है।

अमेरिकी कंपनी क्वालकॉम ने 2020 में नाविक को सपोर्ट करने वाले चार स्नैपड्रैगन 4जी चिपसेट और एक 5जी चिपसेट लांच किए थे। नाविक को सपोर्ट करने वाले कुछ मोबाइल फोन भी लांच हुए हैं, लेकिन उन्हें खास सफलता नहीं मिली। साइबर मीडिया रिसर्च के अनुसार जनवरी 2021 से जून 2022 के दौरान देश में कुल करीब 25.6 स्मार्टफोन की बिक्री हुई थी, जिनमें से नाविक को सपोर्ट करने वाले फोन सिर्फ 2.2 करोड़ थे।

नाविक को सपोर्ट करने वाला चिप

आईआईटी खड़गपुर में इनक्यूबेटेड स्टार्टअप एलिना के संस्थापक और चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर (सीटीओ) लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) वी.एस. वेलन ने जागरण.कॉम को बताया कि उनकी कंपनी ने नाविक को सपोर्ट करने वाला चिप बनाया है। भारत में एक-दो मोबाइल फोन मैन्युफैक्चरर्स के साथ उनके चिप के लिए बातचीत हुई है, लेकिन अभी वह शुरुआती स्टेज में है।

ले. कर्नल वेलन ने बताया, हमने अपना सिस्टम सबसे पहले सेना को दिया। सेना में जीपीएस की जगह नाविक का प्रयोग बढ़ रहा है। इसके लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) जिन उपकरणों की सप्लाई कर रही है, उनमें हमारा चिप लगा हुआ है। गोवा शिपयार्ड में भी हमारे उपकरणों का इस्तेमाल हो रहा है।

सूत्रों के अनुसार, अभी तक मोबाइल फोन में नाविक का प्रयोग कम होने का एक प्रमुख कारण एल-1 फ्रीक्वेंसी बैंड में इसका उपलब्ध न होना था। पुराने हार्डवेयर को सपोर्ट करने के लिए इसरो ने सोमवार को लांच नए सैटेलाइट एनवीएस-01 में एल-1 बैंड भी जोड़ा है।

जीपीएस और ग्लोनास के सिग्नल भी रिसीव करेगा

ले. कर्नल वेलन ने बताया, हमारा उपकरण नाविक के अलावा दुनिया के दो अन्य प्रमुख नेविगेशन सिस्टम- अमेरिका के जीपीएस और रूस के ग्लोनास के सिग्नल भी रिसीव कर सकता है। उन्होंने बताया कि चिप प्रोसेसिंग करके जो डाटा तैयार करेगा उसे हैंडल करने के लिए एक हार्डवेयर चाहिए, वह भी हमारे पास है। यह हार्डवेयर अलग-अलग तरह का हो सकता है- वाहन ट्रैकर, फ्लीट ट्रैकर, पानी के जहाज और विमानों में लगाने वाला ट्रैकर। मॉनिटरिंग का सारा डाटा एक सर्वर पर जाता है, हमारे पास वह सर्वर भी है। उसे हम लगातार अपग्रेड भी कर रहे हैं।

ट्रैकर लगाने का खर्च 12 से 18 हजार रुपये

उन्होंने बताया कि एक वाहन में ट्रैकर लगाने का खर्च करीब 18,000 रुपये आता है, लेकिन अगर वाहनों की संख्या अधिक हो तो प्रति वाहन 12,000 रुपये की लागत आएगी। यह खर्च पहले साल के लिए है, दूसरे साल से यह राशि 6000 रुपये हो जाएगी। यानी ग्राहक को प्रतिमाह 500 रुपये का खर्च आएगा।

उन्होंने बताया कि उनकी कंपनी अभी ताइवान में चिप की मैन्युफैक्चरिंग कर रही है। भविष्य में इसे भारत में लाने की योजना है। इस चिप की अन्य खासियतों के बारे में उन्होंने बताया कि अन्य कंपनियों की चिप पावर का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करती है, एलिना के चिप में पावर कंजप्शन बहुत कम होता है। आने वाले समय में उनका ज्यादा शक्तिशाली चिप लाने का भी इरादा है।