उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में संपन्न इंडिया वाटर वीक में जल संसाधन और प्रबंधन में कारगर तकनीक
केंद्र सरकार द्वारा संचालित नेशनल हाइड्रोलाजी प्रोजेक्ट (एनएचपी) के तहत नदी बांध बैराज नहर के ऊपर कई सारी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन तकनीकों से नदी के जल संग्रहण और बहाव की सही जानकारी प्राप्त करना आसान हुआ है।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Tue, 08 Nov 2022 05:46 PM (IST)
ब्रह्मानंद मिश्र। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में संपन्न इंडिया वाटर वीक में जल संसाधन और प्रबंधन में उपयोग की जाने वाली ऐसी अनेक तकनीकें प्रदर्शित की गईं, जो बेहतर भविष्य की नींव तैयार कर सकती हैं। जानते हैं कुछ ऐसी ही प्रमुख तकनीकों के बारे में....
पानी की उपलब्धता और खपत के बीच बिगड़ते अनुपात को ठीक करने में तकनीक से काफी मदद मिल सकती है। जल प्रबंधन से लेकर दूषित जल के शोधन तक अनेक तरह की तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है। जलवायु परिवर्तन और बाढ़-सूखे की आपदा जिस तेजी से बढ़ रही है, वह भविष्य के लिए गंभीर चेतावनी है। यदि पेयजल उपलब्धता, स्वच्छता और जल प्रबंधन में उन्नत तकनीक का बेहतर ढंग से उपयोग किया जाए, तो इन समस्याओं का स्थायी तौर पर निराकरण हो सकता है।
एसबीआर टेक्नोलाजी से जलशोधन केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी वाप्कोस लिमिटेड द्वारा वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट के लिए एसबीआर टेक्नोलाजी (सिक्वेंशल बैच रिएक्टर) का इस्तेमाल किया जा रहा है। वाप्कोस लिमिटेड के मैकेनिकल इंजीनियर चिराग सूद बताते हैं कि इसके तकनीकी ढांचे को सीमित जगह में स्थापित किया जा सकता है। आमतौर पर दूषित जल या सीवेज ट्रीटमेंट के लिए बड़ी संरचना और बड़े निवेश की जरूरत होती है। एसबीआर टेक्नोलाजी से दूषित जल को साफ करना अधिक सुविधाजनक है। इस तरह साफ शोधित जल को नदी-नालों में छोड़ दिया जाता है, जिससे जल प्रदूषण नहीं होता। शोधित जल का उपयोग खेती में सिंचाई, मत्स्य पालन या पशुपालन के लिए भी किया जा सकता है। वाप्कोस द्वारा भूजल संसाधनों के विकास एवं प्रबंधन, नदी जल प्रबंधन, बाढ़ नियंत्रण, जलापूर्ति एवं स्वच्छता जैसे अनेक कार्यों में तकनीकों का प्रभावी उपयोग किया जा रहा है।
वाटर इन्फारमेशन मैनेजमेंट सिस्टम
केंद्र सरकार द्वारा संचालित नेशनल हाइड्रोलाजी प्रोजेक्ट (एनएचपी) के तहत नदी, बांध, बैराज, नहर के ऊपर कई सारी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इन तकनीकों से नदी के जल संग्रहण और बहाव की सही जानकारी प्राप्त करना आसान हुआ है। आमतौर पर नदियों, बांधों और नहरों से संबंधित आंकड़े मैनुअली एकत्र किए जाते हैं, जिससे बाढ़ नियंत्रण को लेकर कोई पूर्व योजना तैयार नहीं हो पाती। अब एनएचपी के तीसरे चरण में नदियों का रीयल टाइम डाटा एकत्र किया जा रहा है। इसके लिए कुछ विशेष जगहों पर उपकरण लगाये जा रहे हैं। जलशक्ति मंत्रालय द्वारा तैयार वाटर इन्फारमेशन मैनेजमेंट सिस्टम (विम्स) नदियों के आंकड़ों का एकत्रीकरण और विश्लेषण करता है। विम्स वेब आधारित डेटा कलेक्शन प्लेटफार्म है। टेलीमीट्रिक सेंसर के जरिए इसमें आटोमैटिक ढंग से डेटा एकत्र होता है। इसमें डेटा एंट्री, मैनेजमेंट, एनालिसिस और रिपोर्टिंग जैसे काम होते हैं। इस एप्लीकेशन में केंद्र और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों को एसएमएस और ईमेल के जरिए बाढ़ तथा आपदा न्यूनीकरण अलर्ट भेजने का भी प्रविधान है।
स्काडा साफ्टवेयर से नदियों की निगरानी
सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डाटा एक्विजिशन साफ्टवेयर (स्काडा) के जरिए पानी के बहाव की आटोमैटिक निगरानी की जाती है। यमुना नदी के बहाव क्षेत्र में 100 जगहों पर सेंसर लगाए गए हैं। अगर पहली जगह पर बाढ़ आ गयी है, तो इससे तुरंत यह जानकारी मिल जाएगी कि पानी का बहाव किस तेजी से और कितना है। यदि हरियाणा के यमुनानगर जिले के हथिनीकुंड बैराज पर अगले 10 घंटे में पानी आने वाला है, तो पहले से ही बैराज के गेट को धीरे-धीरे खोल दिया जाएगा। इससे बाढ़ को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। स्काडा साफ्टवेयर बैराज गेट को आटोमैटिकली नियंत्रित करता है। इससे दिल्ली के ओखला बैराज पर पर भी पहले से ही पता चल जाएगा कि ऊपर से कितना पानी छोड़ा जा रहा है। इस तरह नहरों में जाने वाले पानी की भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इस साफ्टवेयर से वाटर मैनेजमेंट और वाटर एकाउंटिंग दोनों साथ होती है।आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में सीमेंट सीलिंग टेक्नोलाजी
कुछ स्थानों पर भूजल में अशुद्धियां होती हैं। इसमें आर्सेनिक सबसे गंभीर है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने सीमेंट सीलिंग टेक्नोलाजी की मदद से विशेष तरह के कुएं तैयार करने का एक सिस्टम तैयार किया है, जिसके तहत जल स्रोत से आर्सेनिक मुक्त पानी को स्टोर किया जाता है। सबसे पहले मुख्य कुंड की खुदाई करने के बाद वहां से अन्य तकनीकी जानकारी एकत्र की जाती है। इसके बाद चट्टान या मिट्टी की परत, जहां पानी स्टोर होता है, उसका पता लगाया जाता है। फिर टैपिंग के लिए उसमें से किसी एक स्रोत को चुना जाता है। आमतौर पर उथले जल भंडारण वाले में जोन में आर्सेनिक पाया जाता है, इसलिए गहरे आर्सेनिक मुक्त स्रोत को टैप किया जाता है। खुदाई के दौरान आर्सेनिक प्रभावित परत से नीचे सीमेंट सीलिंग कर दी जाती है। सीमेंट सीलिंग के नीचे बजरी पैकिंग के लिए फीडर पाइप की व्यवस्था बनाकर कंप्रेशर जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार निकलने वाला पानी आर्सेनिक से मुक्त होता है।