Cyber Crime को कंट्रोल कर सकेगा Nortan Antitrack, जानिये क्या हैं इसके फायदे
Nortan Antitrack को भारत में भी लांच कर दिया है। यह कोई एंटी वायरस नहीं है बल्कि एक एंटी ट्रैकर है जो यूजर्स को साइबर क्राइम से बचाने का काम करेगा। जानिये इस सॉफ्टवेयर और साइबर क्राइम के बारे में विस्तार से।
By Kritarth SardanaEdited By: Updated: Sat, 15 Oct 2022 06:10 PM (IST)
नई दिल्ली, कृतार्थ सरदाना। Nortan ने ऑनलाइन प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए भारत में अपना नया उत्पाद Nortan Antitrack पेश किया है। यह एन्टी वायरस न होकर एक एन्टी ट्रैकर है जो थर्ड-पार्टी कंपनियां और वेबसाइट, यूजर्स की ऑनलाइन सर्च को ट्रैक करती हैं और उनका व्यक्तिगत डेटा जुटाती है।
यूजर्स नॉर्टन एंटीट्रैक का इस्तेमाल करके अपना कंट्रोल रख सकते हैं कि उन्हें क्या डिजिटल फुटप्रिंट छोड़ना है और क्या नहीं। यहां फुटप्रिंट से मतलब है उन साइट्स का जहां आप ब्राउज़िंग के वक्त जाते हैं। इंस्टाल करने के बाद यह सॉफ्टवेयर मैक और विंडोज़ दोनों OS के लिए एक ऐप और ब्राउज़र एक्सटेंशन के रूप में काम करेगा। इससे यूजर्स अपने ब्राउज़िंग डेटा को नियंत्रण रख सकेंगे।
हर दिन यूजर्स की हो रही है ट्रैकिंग
आज यूजर्स को हर दिन ऑनलाइन ट्रैक किया जा रहा है। ब्राउज़िंग के वक्त जैसे ही यूजर्स किसी भी वेबसाइट पर जाते हैं तो उनकी ट्रैकिंग शुरू हो जाती है। इस दौरान यूजर्स अपना व्यक्तिगत डेटा का डिजिटल ट्रेल वहां छोड़ जाते हैं जिसे कुकीज़, फिंगरप्रिंटिंग और प्रोफाइलिंग टैक्नोलॉजी की मदद से जुटाया जाता है।
हालांकि इस डेटा का इस्तेमाल यूजर्स के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए मार्केटिंग के उद्देश्य से भी किया जा सकता है। लेकिन इस डेटा के लीक होने पर इसका किसी भी रूप में दुरूपयोग भी किया जा सकता है। जिसके कारण यूजर की ऑनलाइन दिलचस्पी से जुड़ा एक पूरा प्रोफाइल बनाया जा सकता है।
क्या कहते हैं Nortan के डायरेक्टर
इसके लांच के मौके पर नॉर्टन के भारत एवं सार्क देश के डायरेक्टर ऋतेश चोपड़ा ने हमें बताया कि 'लोग अब पहले के मुकाबले काफी ज्यादा समय अपना ऑनलाइन बिता रहे हैं। ऑनलाइन फ्रॉड से यूजर्स डरते भी हैं जिसके कारण लोग अपनी privacy पर काफी ध्यान दे रहे हैं। नॉर्टन एंटीट्रैक के साथ कंपनी यूजर्स को इसका नियंत्रण देना चाह रही है जिससे वो अपनी निजता को अपने तक ही सीमित रख सकें। आपके कंप्यूटर पर एंटी वायरस है या नहीं इससे उसको कोई फर्क नहीं पड़ता ये उससे अलग काम करता है।'
साइबर क्राइम को समझाते हुए ऋतेश चोपड़ा ने कहा वेबसाइट पर मौजूद ट्रैकर्स यूजर की एक प्रोफाइल कैप्चर कर लेते हैं। जिससे आपकी ब्राउज़र की जानकारी उन तक पहुँचने लगती है। आप कौन सी वेबसाइट किसी डिवाइस से कब खोल रहे हैं सब उनके पास सब जा रहा होता है। उदहारण से किसी ने नया सोफा लेना था तो उसने ऑनलाइन साइट से सोफा खरीद लिया लेकिन खरीदने के बाद अगले 2 महीनें तक उन्हें सोफा के ही विज्ञापन दिखते रहे।
हालांकि ये तो न्यूज सेंस हुई लेकिन अगर ये जानकारी कहीं और लीक हो गई तो उससे ऐसा हो सकता है कि अगले 2-3 साल बाद आपके पास SMS आए जिसमें आपसे कहा जाए कि पुराना सोफा बेचने के लिए यहां क्लिक करें। क्योंकि अब किसी को पता है कि आपका सोफा पुराना हो चुका है।यही साइबर क्राइम है जो पीछे से यूजर का एक प्रोफाइल बना लेता है कि आप कौन सी वेबसाइट पर हर रोज जा रहे हैं, क्या क्या काम कर रहे हो, किस डिवाइस से जा रहे हैं उसके हिसाब से ये आपको सर्फ कर सकता है। उसे पता है कि आपके पास 1 लाख का मोबाइल है तो आपको वो इसके हिसाब से कंटेंट दिखा सकता है। ये privacy का इशू है। ये हर यूजर्स को उसके हिसाब से track करता है।