Semiconductor Technology: तकनीकी विनिर्माण के पथ पर अग्रसर भारत, सेमीकंडक्टर से इलेक्ट्रानिक क्षेत्र में क्रांति
अमेरिका की सिलिकान वैली को इसी संदर्भ से जोड़ा जाता है। भारत में भी बेंगलुरु को देश की सिलिकान वैली कहा जाता रहा है परंतु सिलिकान का वास्तविक संदर्भ सेमीकंडक्टर चिप से संबंधित है जो दुनिया भर में चलने वाले इलेक्ट्रानिक कारोबार की धुरी है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 19 Sep 2022 11:18 AM (IST)
डा. संजय वर्मा। आज लगभग हर किस्म के इलेक्ट्रानिक साजो-सामान के प्राण सिलिकान नामक तत्व से बनने वाले सेमीकंडक्टर्स में बसते हैं। स्मार्टफोन के निर्माण में चीन के बाद भारत का दुनिया में दूसरा स्थान है, परंतु इसमें एक फर्क है। चीन-ताइवान जैसे मुल्क सिलिकान से बनाए जाने वाले सेमीकंडक्टर के निर्माण में शीर्ष पर हैं। वे इसका निर्माण ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को निर्यात भी करते हैं।
भारत में इलेक्ट्रानिक वस्तुओं के निर्माण में तेजी तो आ रही है, परंतु हमारे देश में सेमीकंडक्टर्स लगभग पूरी तरह से आयात ही होता है। ज्यादातर मामलों में ये चीन-ताइवान से मंगाए जाते हैं। यानी भले ही हम चीनी मोबाइल कंपनियों को देश से बाहर कर दें, तो भी सेमीकंडक्टर के मामले में उनकी बादशाहत को चुनौती देने की स्थिति में नहीं हैं। पर अब यह तस्वीर बदलने वाली है। सालाना लगभग 1.90 लाख करोड़ रुपये के सेमीकंडक्टर दूसरे देशों (खासकर चीन-ताइवान) से मंगाने वाले हमारे देश के एक बड़े व्यापारिक समूह वेदांत ने गुजरात में संयुक्त उपक्रम के रूप में सेमीकंडक्टर बनाने की विशाल फैक्ट्री लगाने के लिए फाक्सकान के साथ सहमति पत्र पर मुहर लगाई है।
अहमदाबाद के पास बनने वाली इस फैक्ट्री की कुल लागत में सरकार 25 प्रतिशत की छूट देगी। यह फैक्ट्री मुख्य तौर पर माइक्रोचिप यानी सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में दूसरे देशों पर निर्भरता घटाने और इसके निर्यात की संभावना बनाने के अलावा जिस अन्य संदर्भ में एक बड़ी उपलब्धि देखी जा रही है। देश में कई हजार रोजगार एक झटके में पैदा करने में ऐसी फैक्ट्री की कितनी बड़ी भूमिका हो सकती है, यह इससे समझा जा सकता है कि पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र में इसे लेकर काफी ज्यादा राजनीतिक उथल-पुथल है कि यह फैक्ट्री गुजरात में क्यों लगाई जा रही है, उनके राज्य में क्यों नहीं। हालांकि इलेक्ट्रानिक उत्पादों के एक विशालकाय देश के रूप में उभर रहे भारत के लिए यह तथ्य कम उपयोगी नहीं है कि देश में पेट्रोल और सोने (स्वर्ण धातु) के बाद सबसे ज्यादा आयात इलेक्ट्रानिक साजो-सामान का होता है।
एक आंकड़ा है कि हमारे देश में फरवरी 2021 से अप्रैल 2022 के बीच 550 अरब डालर के आयात बिल में अकेले इलेक्ट्रानिक आइटम्स की हिस्सेदारी 62.7 अरब डालर की थी। ऐसे में स्मार्टफोन, कंप्यूटर, लैपटाप, नोटबुक्स, टेलीविजन से लेकर स्मार्ट फीचर्स से लैस कारों और वाशिंग मशीन तक में लगने वाले सेमीकंडक्टर अगर भारत में ही बनने लगें तो चीजें सस्ती हो सकती है। यही वजह है कि वेदांता समूह ने दावा किया है कि भारत में ही सिलिकान चिप्स (सेमीकंडक्टर्स) का निर्माण होने से एक लाख रुपये में बिकने वाला लैपटाप 40 हजार में बिकने लगेगा। आज जैसी होड़ विदेश से कम कीमत में आइफोन मंगाने की होती है, संभव है कि आगे चलकर इसकी नौबत ही नहीं आए। यहां कुछ प्रश्न पैदा होते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि खुद को आइटी का सुपर पावर मानने वाले हमारे देश में सेमीकंडक्टर के निर्माण की कोई कोशिश आखिर क्यों नहीं हुई।