ट्राई ने
टेलीकॉम कंपनियों को ऐसे नंबर की सर्विस को रोकने के निर्देश दिए हैं, जो व्हाइट लिस्टेड नहीं हैं और यूआरएल वाले मैसेज, ओटीटी लिंक्स, एंड्रॉइड ऐप लोकेशन पैकेज (APKs) के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। ऐसे नंबर जो टेलीकॉम कंपनियों के साथ रजिस्टर्ड नहीं हैं, पर नकेल कसी जा रही है। नया नियम अगले महीने की शुरुआत से ही लागू हो रहे हैं।
बता दें, यह पहली बार नहीं है जब ट्राई की ओर से इस तरह के निर्देश दिए गए हों। पिछले साल भी ट्राई की ओर से निर्देश दिए गए थे। बावजूद अभी तक नियम पूरी तरह से लागू नहीं हुए हैं। इस बार 1 सितंबर से नए लागू सख्ती से लागू होना तय मान जा रहा है।
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नए नियम से क्या बदलेगा
वर्तमान समय की बात करें तो अभी टेलीकॉम कंपनियों को अपने हेडर और टेम्प्लेट रजिस्टर्ड करवाती हैं। कंपनियां किसी स्पेसिफिक मैसेज का कंटेंट रजिस्टर्ड नहीं करवाती हैं। जिसका मतलब हुआ है कि ट्रांसमिटेड मैसेज के कंटेंट को लेकर किसी तरह की जांच नहीं होती है। वहीं, अगले महीने से टेलीकॉम कंपनियों को एक ऐसा मैकेनिज्म तैयार करने की जरूरत होगी, जिसके साथ कमर्शियल मैसेज के कंटेंट को भी रीड किया जा सकेगा। वे नंबर जो रिकॉर्ड से मैच नहीं होंगे, उन्हें ब्लॉक कर दिया जाएगा।
31 अगस्त की डेडलाइन किसके लिए हुई है तय
ट्राई के नियमों के तहत, बैंक, वित्तीय संस्थानों और ऑलनाइन प्लेटफॉर्म्स को अपने टेम्प्लेट और कंटेंट को 31 अगस्त की डेडलाइन तक ऑपरेटर्स को रजिस्टर्ड करना होगा। तय तारीख तक ऐसा नहीं किया जाता है तो साफ है कि मैसेज में इस तरह का कंटेंट होना नंबर को ही ब्लॉक करवा देगा।इंडस्ट्री डेटा की मानें तो भारत में रोजाना 1.5-1.7 बिलियन कमर्शियल मैसेज ग्राहकों को भेजे जाते हैं। यानी कि करीब 55 बिलियन मैसेज हर महीने ग्राहकों को भेजे जाते हैं।
दूसरी ओर टेलीकॉम कंपनियां चाह रही हैं कि ट्राई की ओर से कुछ और समय दिया जाए ताकि वे तरीके से अपने प्लेटफॉर्म को अपग्रेड कर सकें। रेगुलेटर को लगता है कि कंपनियों को पहले से ही काफी समय दिया जा चुका है।
व्हाइटलिस्टिंग का क्या मतलब है
व्हाइटलिस्टिंग का मतलब होगा कि कंपनियां जो कि ग्राहकों को मैसेज भेजती हैं, उन्हें टेलीकॉम कंपनियों को
मैसेज कंटेंट में भेजे जाने वाले यूआरएल और कॉल बैक नंबर को लेकर सारी जानकारियां देनी होंगी।टेलीकॉम कंपनियां इन जानकारियों को फिर अपने डीएलटी प्लेटफॉर्म (डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म) पर फीड करेंगी। अगर यह जानकारियां मैच हो जाती हैं तो मैसेज पास हो जाएगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसे ब्लॉक कर दिया जाएगा।
बैंकों के लिए खड़ी हो सकती है मुसीबत
ट्राई का कहना है कि ट्रांजैक्शनल मैसेज जिनमें कि कॉल बैक वाले नंबर ग्राहकों को दिए जाते हैं, उनका भी कंटेंट चेक किया जाएगा। ऐसे में बैंकों के लिए डेडलाइन से पहले नंबर को वाइटलिस्ट करवाना और भी जरूरी हो जाएगा। बैंक अक्सर अपने ग्राहकों को डेबिट-क्रेडिट से जुड़े कंटेंट में कॉल बैक नंबर को भी शेयर करते हैं।
क्या हो सकता है आगे
एक्सपर्ट्स की मानें तो इस तरह के मैसेज नए नियमों के बाद से दूसरे प्लेटफॉर्म जैसे वॉट्सऐप, ओटीटी प्लेटफॉर्म और गूगल की रिच कम्युनिकेशन सर्विस की ओर शिफ्ट हो जाएंगे। क्योंकि, अभी तक इन प्लेटफॉर्म के लिए किसी तरह का नियम नहीं आए हैं।