Explainer: क्या है डाटा प्रोटेक्शन बिल, जानिए क्यों है जरूरी?
आज के प्रद्योगिकी युग में जैसे जैसे डाटा और टेक्नोलॉजी का प्रभाव हमारे जीवन पर बढ़ रहा है उसके साथ ही हमारी व्यक्तिगत ज़िन्दगी का दायरा सिमित होते जा रहा है। टेक्नोलॉजी जीवन व्यापन का एहम साधन बन गया है।
By Saurabh VermaEdited By: Updated: Tue, 04 Jan 2022 07:24 AM (IST)
नई दिल्ली, सौरभ वर्मा। बढ़ते शिक्षा के स्तर के साथ जहां एक ओर समाज में जीवन एवं समानता के मौलिक अधिकारों के प्रति जागरूकगता बढ़ी है, वहीं दूसरी तरफ़ हम निजता यानी प्राइवेसी के अधिकार की अहमियत को अभी भी कम आंकते है। लेकिन हमारा ऐसा करना गलत है क्योंकि असलियत में निजता ना सिर्फ एक सार्थक और सम्मान जनक जीवन जीने के लिए ज़रूरी है बल्कि इसके बिना कई और मौलिक अधिकार जैसे की बोलने की आज़ादी का भी सही रूप से निर्वाहन मुश्किल हो जाता है।
हमारे सुप्रीम कोर्ट ने कैसे की है निजता के अधिकार की व्याख्यादा डायलाग' के संस्थापक निदेशक काज़िम रिज़वी ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 21 में जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार है। 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने जस्टिस के.एस. पुट्टास्वामी की याचिका सुनते हुए निजता के अधिकार को भी अनुच्छेद 21 में शामिल कर इसे और भी विस्तृत कर दिया। इस निर्णय ने निजता को मौलिक अधिकारों का दर्ज़ा दे दिया, जिसका मतलब यह है की अब कोई भी व्यक्ति अपनी निजता के हनन की स्थिति में रिट याचिका दायर कर न्याय की मांग कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह मानकर कि निजता के तहत न सिर्फ सूचनाएं आती हैं बल्कि अपने खुद के शरीर से संबंधित निर्णय लेने की आजादी भी आती है, लोगों को एक मजबूत औजार थमा दिया, जिसका इस्तेमाल लोग निजता हनन के खिलाफ कर सकते हैं।
रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में निजता का महत्तवदा डायलाग में सीनियर रिसर्च एसोसिएट श्रुति श्रेया के मुताबिक आज के प्रद्योगिकी युग में जैसे जैसे डाटा और टेक्नोलॉजी का प्रभाव हमारे जीवन पर बढ़ रहा है, उसके साथ ही हमारी व्यक्तिगत ज़िन्दगी का दायरा सीमित होता जा रहा है। टेक्नोलॉजी जीवन व्यापन का अहम साधन बन गया है, लेकिन इसके इस्तेमाल से हमारी निजी जीवन की जानकारियों का सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चिंता का विषय है। जैसे की हमारा फ़ोन नंबर जो हम अनेक वेबसाइट पर अकाउंट बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। दूसरा उदाहरण है सोशल मीडिया पर पोस्ट की गयी हमारी तस्वीरें या हमारे स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी जो की हम टेलीमेडिसिन की सुविधाओं को इस्तेमाल करने के लिए बड़ी आसानी से दे देते है।
अगर इन जानकारियों की पहुंच केवल सरकार और टेक्नोलॉजी कंपनियों के पास होती। लेकिन साइबर अपराधियों की बढ़ती महत्वकांक्षाएं और आये दिन उनके द्वारा डाटा चोरी की ख़बरों ने हमारी मुश्किल कई गुना अधिक बढ़ा दी है। इस समस्या के निवारण के लिए इन अपराधियों के खिलाफ कारवाई तो ज़रूरी है ही, साथ ही अनिवार्य है एक सशक्त कानून व्यवस्था, जो सरकार और कंपनियों को एक मज़बूत ढांचा प्रदान करें जिसके अंतर्गत वे हमारे पर्सनल डाटा की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।
डेटा संगरक्षण विधेयक, 2021 और उसके महत्वपूर्ण अंशनिजता को मौलिक अधिकार घोषित करने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पुट्टास्वामी केस में सरकार को देश में उच्चतम रूप का डाटा संगरक्षण सुनिश्चित करने के लिए एक कानून बनाने का भी निर्देश दिया था। कोर्ट के निर्देशानुसार भारत सरकार पिछले 4 सालों से एक उत्तीर्ण रूप का डाटा संगरक्षण कानून पारित करने की दिशा में काम कर रही है। इस उद्देश्य के अनुसरण में 2019 में एक संयुक्त संसदीय समिति गठित की गयी थी जिसने एक सशक्त डाटा संगरक्षण कानून बनाने के लिए अपने सुझावों को पिछले महीने संसद के सामने रखा। इन सुझावों के साथ समिति ने एक प्रस्तावित विधेयक भी पेश किया है।
संयुक्त समिति के प्रस्तावित विधेयक के ज़्यादातर बिंदु प्रगतिशील और अंतरराष्ट्रीय तर्ज़ पर मान्यता प्राप्त प्रथाओं के मुताबिक है। किन्तु विधेयक के कुछ भागों पर अधिक चिंतन और विशेषज्ञों की सलाह की ज़रूरत है। उदाहरण के तौर पर हम नॉन पर्सनल डाटा को इस विधेयक में शामिल करने के प्रस्ताव को ले सकते हैं। नॉन पर्सनल डाटा को निः संदेह विनियमित करने की ज़रूरत है, लेकिन पर्सनल और नॉन पर्सनल डाटा का रूप अलग अलग होता है। अतः एक साथ एक कानून के अंतर्गत दोनों को लाने से कंपनियों की उलझन बढ़ सकती है और कानून का अनुपालन कठिन हो सकता है। विधेयक में कानून को उचित रूप से लागू करने के लिए, डाटा संगरक्षण अथॉरिटी नाम की एक संस्था का गठन करने की पेशकश भी की गयी है। लेकिन यह प्रावधान तभी प्रभावी हो सकता है जब यह संस्था अपने आप में स्वतंत्र और शक्तिशाली हो। किन्तु अपने वर्तमान स्वरूप में इस संस्था में न तो कोई महिला सदस्य है और न ही न्यायिक सदस्य। इसके अलावा, खंड 87(2) के अंतर्गत संस्था सरकार के हर फैसले से बाध्य होगी ।
आगे का रास्ताडाटा संगरक्षण कानून एक मंज़िल नहीं एक सफर है, जिसे तय करने में बहुत सी अड़चनों का सामना करना आवश्यक है। इस सफर के अगले पड़ाव में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को डाटा संगरक्षण विधेयक, 2021 को उसके मूल रूप या उसमें ज़रूरत अनुसार बदलाव करके उसे संसद में बहस के लिए पेश करने का प्रावधान है। हमें उम्मीद है की इस रास्ते में डेटा संरक्षण संस्था को अधिक आजादी, सरकार पर अधिक प्रतिबन्ध, और नॉन पर्सनल डाटा को इस कानून में सम्मिलित करने की साध्यता पर अधिक विचार करने के मौके का उचित इस्तेमाल किया जायेग।