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कटघरे में चैटजीपीटी आधारित एआई टेक्नोलॉजी, दूसरी टेक कंपनियों की तरह मिलेगी कानूनी सुरक्षा?

ओपनएआई जैसी जेनेरेटिव एआई चैटबॉट विकसित करने वाली कंपनियां माइक्रोसॉफ्ट अल्फाबेट के गूगल से बार्ड को मानहानि या गोपनीयता के उल्लंघन जैसे कानूनी दावों से बचाया जाना चाहिए या नहीं यह आने वाले समय में एक नहीं बहस का मुद्दा बन सकता है। (फोटो- जागरण)

By Shivani KotnalaEdited By: Shivani KotnalaUpdated: Tue, 25 Apr 2023 09:15 AM (IST)
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YouTube Case at US Supreme Court Could Have Implications for AI Technology, pic courtesy Jagran File
नई दिल्ली, टेक डेस्क। बीते साल अमेरिका की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी ओपनएआई ने अपने चैटबॉट मॉडल को पेश किया। कंपनी का चैटबॉट मॉडल चैटजीपीटी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है। यह ह्यूमन-लाइक टेक्स्ट जेनेरेट करने की खूबियों के साथ आता है।

दुनिया भर के देशों के लिए यह नई तकनीक ध्यान आकर्षित करने वाली रही। हालांकि, जहां एक ओर यूजर्स इसकी खूबियों को पसंद कर रहे हैं वहीं, नई टेक्नोलॉजी को लेकर बहुत सी परेशानियां भी सामने आई हैं।

टेक्नोलॉजी कंपनियों को कानूनी सुरक्षा

जानकारों की मानें तो समाज में गलत जानकारियों के फैलने का डर और साइबर क्रिमिनल द्वारा मॉडल का गलत प्रयोग जैसी बातें चैटजीपीटी से जुड़ी हैं। ऐसे में एआई तकनीक के लिए नियम-कानूनों की जरूरत समझी जा रही है।

इसी कड़ी में अब माना जा रहा है कि अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट आने वाले समय में टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए कानून में ऐसे बदलाव कर सकती है, जिसका असर चैटजीपीटी जैसी एआई टेक्नोलॉजी पर पड़ सकता है।

दरअसल अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म द्वारा ऑनलाइन कंटेंट पोस्ट करने के दौरान कानूनी जिम्मेदारियों से बचाने के लिए कानून में बदलाव करने जा रही है। ऐसे में यह कानून कंपनियों द्वारा एल्गोरिथ्म का प्रयोग कर यूजर्स को टारगेट करने की स्थिति में भी लागू हो सकता है।

जेनेरेटिव एआई टेक्नोलॉजी को बचाने की जरूरत

आने वाले समय में कोर्ट द्वारा लिया गया निर्णय एक नई बहस को छेड़ सकता है। बहस ये कि क्या ओपनएआई जैसी जेनेरेटिव एआई चैटबॉट विकसित करने वाली कंपनियां, माइक्रोसॉफ्ट, अल्फाबेट के गूगल से बार्ड को मानहानि या गोपनीयता के उल्लंघन जैसे कानूनी दावों से बचाया जाना चाहिए या नहीं।

जेनेरेटिव एआई टेक्नोलॉजी से नहीं जुड़ा कानून

इस साल फरवरी में हुई दलीलों के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने इस बात पर अनिश्चितता व्यक्त की कि कानून में निहित सुरक्षा को कमजोर करना है या नहीं।

यह कानून 1996 के संचार शालीनता अधिनियम की धारा 230 के रूप में जाना जाता है। उस दौरान जस्टिस Neil Gorsuch ने साफ कहा था कि यह कानून जेनेरेटिव एआई से सीधे तौर पर नहीं जुड़ा। ऐसे में माना जा रहा है कि जेनेरेटिव एआई को कानूनी सुरक्षा के दायरे से बाहर रखा जा सकता है।