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अमेरिकी वैज्ञानिकों ने किया Secret Test, सूर्य की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में भेजा; धरती को ठंडा रखने में मिलेगी मदद

ग्लोबल वॉर्मिंग के बढ़ते प्रकोप को कम करने के लिए वैज्ञानिक अनूठा प्रयोग कर रहे हैं। अमेरिका के रिसर्चर्स समुद्र में नमक के कणों की बौछार कर सूर्य की रोशनी को वापस सौर मंडल में परावर्तित कर रहे हैं। इससे वे धूप के अंश को कम किया जा सकेगा जिससे किसी क्षेत्र के तापमान को कम करने में मदद मिलेगी।

By Subhash Gariya Edited By: Subhash Gariya Updated: Mon, 08 Apr 2024 02:57 PM (IST)
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क्लाउड ब्राइटनिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे वैज्ञानिक

टेक्नोलॉजी डेस्क, नई दिल्ली। भारत में गर्मी ने दस्तक दे दी है। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते प्रकोप के चलते हर साल दुनियाभर में गर्मी के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। ऐसे में अमेरिका के वैज्ञानिक धरती को ठंडा रखने के लिए सूरज की किरणों को वापस भेजने पर काम कर रहे हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने क्लाउड ब्राइटनिंग टेक्नोलॉजी का यूज किया है, जो धूप से आने वाली रोशनी के एक अंश को रिफ्लेक्ट करेगी। इससे उस क्षेत्र का तापमान कम हो जाएगा। अगर यह प्रयोग सफल रहता है तो इससे समुद्र के बढ़ते तापमान को कम करने में मदद मिलेगी।

सीक्रेट टेस्ट कर रहे वैज्ञानिक

वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने 2 अप्रैल को एक जहाज से आसमान में तेज स्पीड में नमक के कणों की धुंध छोड़ी। इस प्रयोग को CAARE (कोस्टल एटमॉस्फेरिक एरोसोल रिसर्च एंड एंगेजमेंट) नाम दिया गया, जो सीक्रेट है।

इसके तहत वैज्ञानिक बादलों को किसी दर्पण की तरह उपयोग कर सूर्य से आने वाली रोशनी को रिफ्लेक्ट करना चाहते हैं। यह कॉन्सेप्ट 1990 में ब्रिटिश फिजिक्स साइंटिस्ट जॉन लैथम ने सबसे पहले पेश किया था। उन्होंने 1000 जहाजों का बेड़ा बनाने का प्रस्ताव रखा, जो दुनियाभर की सैर करते हुए समुद्र में इस तरह का छिड़काव करेगा, जिससे सोलर हीट और बढ़ते तापमान को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है।

यह कैसे काम करेगा?

इस टेक्नोलॉजी में वैज्ञानिक साधारण साइंस का इस्तेमाल कर रहे हैं। बड़ी संख्या में छिड़काव कर ज्यादा से ज्यादा रोशनी को रिफ्लेक्ट किया जा सकता है। ऐसे में समुद्र के ऊपर एरोसोल स्लॉट वाटर के छिड़काव से सूरज की रोशनी को वापस सौर मंडल में भेजा जा सकता है। हालांकि, इसके लिए कणों का आकार काफी महत्वपूर्ण है।

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अगर कण छोटे हुए तो वे रोशनी को परावर्तित नहीं कर पाएंगे। वहीं बड़े आकार के कण भी ज्यादा रोशनी को वापस भेजने में सक्षम नहीं होंगे। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके लिए कण का सही साइज इंसानी बाल की मोटाई का 1/700वां हिस्सा हों और हर सेकंड में करीब चार अरब कणों की जरूरत होगी।

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