नाहरगढ़ जैसा खूबसूरत किला है आगरा के पास, दीवारें ही 20 फीट चौड़ी, चला सकते हैं उन पर बाइक, देखें तस्वीरें
चंबल नदी के बीहड़ों में देखरेख के अभाव में जर्जर हो रहा है लाल पत्थर से बना सूबा देवहंस का खूबसूरत किला। किले के पीछे बह रही है चंबल नदी। इसकी दूरी धाैलपुर से मात्र 15 मील है। फिल्माें की शूटिंग के लिए भी बेहतरीन लोकेशन।
By Prateek GuptaEdited By: Updated: Wed, 10 Aug 2022 12:42 PM (IST)
आगरा/धाैलपुर, गजेंद्र कांदिल। नाहरगढ़ का किला (Nahargarh Fort) अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। उसी तरह आगरा के पास भी एक किला है। जिसकी लोगाें को बहुत कम जानकारी है। घने जंगल के बीचाें बीच बने इस किले पर प्राकृतिक नजारा भी बेहद खूबसूरत है। किले के पीछे चंबल नदी बह रही है और चाराें तरफ से हरियाली से घिरे लाल पत्थर के इस किले की नक्काशी भी खास है। दीवारें इतनी चौड़ी हैं और जबरदस्त मजबूत कि आज भी इन पर बाइकिंग की जा सकती है।
बाड़ी के डांग में है सूबा देवहंस किला
धौलपुर, बाड़ी के डांग क्षेत्र में सूबा देवहंस ने देवहंस गढ़ नामक किला (Sua Fort) बनाया था, जो धौलपुर से 15 मील दूर है। चम्बल (Chambal River) को जाने वाले रास्ते पर बाबू महाराज मंदिर के पास ये डांग में स्थित है। ग्राम पंचायत कुदिन्ना और पंचायत समिति बाड़ी के तालाबशाही से तीन मील पूर्व की ओर घने जंगल के बीच यह किला आज भी अपनी विरासत को समेटे हुए है। यह किला बहुत भव्य एवं सुन्दर तरीके से बनाया गया है। इसे सुआ का किला भी कहा जाता है।
हिंदू किले में नक्काशी मुगलकालीनमुख्य द्वार मुगलकालीन समतुल्यभारतीय हिन्दू किलों की तरह प्रतीत होता है। वहीं द्वार पर द्वारपालों के लिए प्रकोष्ट बने हैं। इस द्वार के उपर पंचखंडा महल जो दरबार हाल के लिए बनाया गया था। धौलपुर के लाल पत्थर से बने किले में खम्भों पर नक्काशी शहतीर डालकर पट्टियों से छत बनाई गई है। किले की शिल्पकला देखते ही बनती है।
चौक में चौकोर बावड़ी है। जिसमें आज भी पानी भरा हुआ है। इस चौक से तीन हवेली जुड़ी है, जो रनिवास और रहवास के लिए काम में लाई जाती थी। हवेली के अन्दर अनाज के लिए पत्थर की कोठी बनी हुई है। किले की चारदीवारी 20 फुट चौड़ी हैं, जिस पर वाहन भी आसानी से चल सकते है। चारों और गुम्बद हैं। किले के पश्चिम में अर्ध कलाकार एक लम्बा चौड़ा खार है, जिसे उतर पूर्व की ओर बांध की तरह बांधा है। इसमें पानी भरा रहता था। पूर्व की ओर भी एक तालाब है। दक्षिण का भाग खुला है।
इतिहास संजोए है सुबा का किलाकिवदंती है कि देवा उर्फ देवहंस बाड़ी के ऐतिहासिक बारह भाई मेले में बाबू महाराज के भजन लीला गा रहा था और लोगों की भीड़ उसे चारों और से घेरे हुई थी। तभी धौलपुर के महाराजा राणा भगवंत सिंह अपनी रानी के साथ हाथी पर सवार होकर मेले में निकले। लेकिन लोग देवा के भजनों में इतने मंत्रमुग्ध थे कि राजा की तरफ किसी ने नहीं देखा। ऐसे में राजा और रानी भी वहां रुक गए। जब उन्होंने भजनों को सुना तो वे भी सम्मोहित हो गए।
इसके बाद देवा उर्फ देवहंस को धौलपुर दरबार में बुलाया गया। वहीं से देवा का सेना में दायित्व बढ़ा और वह कुछ ही समय में धौलपुर की फौज का सर्वोच्च सेनापति बन गया। उनके सेनापति काल में सरमथुरा के ठिकानेदार ने विद्रोह कर दिया। जिसका समर्थन करौली के राजा द्वारा किया गया। इस विद्रोह को दबाने के लिए सरमथुरा की झिरी में देवहंस के नेतृत्व में धौलपुर की सेना का युद्ध करौली के राजा से हुआ।
इस युद्ध में धौलपुर की सेना ने करौली की सेना को खदेड़ दिया। इस युद्ध के बाद धौलपुर राजा भगवंत सिंह ने देवा को सूबेदार की उपाधि दे दी और उसे पूरे डांग क्षेत्र का अधिकार दे दिया गया। डांग में ग्रामीणों और गुर्जरों की सहायता से देवहंस ने यह ऐतिहासिक किला बनाया, जो आज देवहंस का किला या सुआ के किले के नाम से क्षेत्र में प्रसिद्ध है। लेकिन दुर्भाग्य है कि इसका इतिहास धौलपुर तक ही सिमट कर रह गया है।
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का गवाहबहुत ही कम लोगों को पता होगा कि धौलपुर शहर से 30 किलोमीटर दूर कुदिन्ना गांव के पास जंगलों में स्थित है, सूबा का किला जो स्वतंत्रता संग्राम का गवाह रहा है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान धौलपुर रियासत में भी विद्रोह की आग भड़की थी और उस विद्रोह का नेतृत्व किया था, इसी किले का निर्माण करवाने वाले देवहंस ने।
जानकारों का कहना है कि कुदिन्ना के डांग क्षेत्र में खेलकूद कर बड़े हुए लंबे-चौड़े कद के देवहंस की पहलवानी व वीरता की धाक धौलपुर रियासत के साथ-साथ आसपास की रियासतों में फैलने लगी तो रियासत के राजा राणा भगवंत सिंह ने उन्हें अपने पास बुलाया व उनसे प्रभावित होकर अपनी फौज में भर्ती करा दिया।देवहंस ने अंग्रेज कर दिए थे किले में कैद1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय जब विद्रोह की आग मेरठ से दिल्ली, दादरी, बुलन्दशहर, आगरा, सहारनपुर तक फैल गई तो धौलपुर भी इससे अछूता नहीं रहा। जब क्रांतिकारी दक्षिण से होते हुए दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे तो राजा भगवंत सिंह ने सूबा देवहंस को उन क्रांतिकारियों को रोकने के लिए कहा गया लेकिन स्वतंत्रता का ज्वार उनमें भी हिलोरें मार रहा था और वे भी क्रांतिकारियों के साथ हो गए। अपनी सेना के साथ देवहंस आगरा की ओर बढ़ गए। देवहंस ने आगरा जिले की खेरागढ़ व इरादतनगर सहित कई तहसीलों व थानों पर अधिकार करके इस क्षेत्र में अंग्रेजी राज को समाप्त कर दिया था।
अंग्रेज केवल किले तक सीमित रह गए जबकि पूरे आगरा पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो गया। गुस्साए अंग्रेजों ने इसके बाद क्रांतिकारियों का दमन करना शुरू कर दिया। अंग्रेज सरकार ने देवहंस को भी गिरफ्तार कर लिया तथा बनारस की जेल में उन्हें भयंकर यातनाएं दी गईं। आज भी देवहंस की वीरता की कहानियां चाहे वह क्रांति की हों, झिरी-सरमथुरा फतह की हों, डांग क्षेत्र में लोकगीतों के माध्यम से सुनी जा सकती हैं।
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