डेढ़ माह तक माता के चरणों से निकली थी जलधार, असम के बाद मां कामाख्या विराजी हैं यहां
जसराना में है मां का प्रसिद्ध मंदिर, दूर-दूर से आते हैं भक्त। मैनपुरी एवं घिरोर से प्रतिदिन ही आते हैं यहां पर श्रद्धालु।
By Prateek GuptaEdited By: Updated: Mon, 08 Oct 2018 01:07 PM (IST)
आगरा [जेएनएन]: शक्ति की आराधना, भक्ति की साधना के पवित्र दिन बुधवार से शुरू हो रहे हैं। शारदीय नवरात्र परंपरा के साथ संस्कृति के भी संवाहक होते हैं। कण कण में विराजित ईश्वरीय शक्ति को नमन करने का अवसर लाते हैं। विश्व भर में अपने चमत्कारिक रूप के लिए प्रसिद्ध असम स्थित मां कामाख्या का मंदिर। जहां होने वाली विशेष पूजा हर किसी के लिए आकर्षण होती है। मां कामाख्या का दूसरा स्वरूप आगरा से चंद किमी की दूरी पर ही स्थित है। जहां उसी पद्धति से पूजा अर्चना भक्त करते हैं। मां की सेवा करते हैं और मन की कामनाओं की पूर्ति करते हैं।
फीरोजाबाद जिले के जसराना में स्थित मां कामाख्या धाम की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। एक एकड़ में बने इस प्राचीन मंदिर में मां कामाख्या के साथ अन्य देवी-देवता भी विराजमान हैं।जसराना में तहसील के निकट स्थित यह मंदिर भारत में मां कामाख्या का दूसरा मंदिर है। बताते हैं जब यहां पर प्रतिमा स्थापना हुई तो एक महीने 18 दिन तक उनके चरणों से जलधार निकली। यूपी के साथ मध्य प्रदेश के कई जिलों से भक्तजन आते हैं। मंदिर के प्रति भक्तों में आस्था इतनी है कि मैनपुरी एवं घिरोर से हर रोज ही यहां भक्त आते हैं।
असम की तर्ज पर होता है यहां अंबूबाची महोत्सव असम राज्य के गुवाहटी शहर से आठ किमी दूर स्थित मां कामाख्या मंदिर में हर वर्ष होने वाले अंबूबाची महोत्सव की भांति ही जसराना में भी यह उत्सव मनाया जाता है।
अंबूबाची महोत्सव में तो दूर-दूर से यहां भक्त आते हैं। तीन दिन मां के लिए मंदिर के पट यहां भी बंद रहते हैं, पट खुलने पर मां के दर्शन के लिए भीड़ उमड़ती है तो कस्बे के बाजार में भी लंबी-लंबी लाइनें लग जाती हैं।नवरात्र में गूंजेंगे माता के जयकारे
मंदिर महंत महेश स्वरूप ब्रह्मचारी बताते हैं नवरात्र में मंदिर में भजन-पूजन होंगे। मां की पूजा अर्चना होगी। इसके अलावा यहां हर वर्ष 31 अक्टूबर को स्थापना दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। मंदिर में आने वाले भक्तों के रहने एवं खाने की व्यवस्था मंदिर कमेटी द्वारा निश्शुल्क की जाती है।
खंडहर भूमि पर सन 1976 में पड़ी थी नींवमां कामाख्या देवी के मंदिर की नींव सन 1976 में पड़ी थी। यह स्थल खंडहर के रूप में था। जैथरा एटा से स्वामी माधवानंद यहां पर आए तो क्षेत्रीयजनों ने उनसे यहां मंदिर बनाने के लिए कहा। वह मां कामाख्या के भक्त थे। इस पर उन्होंने सफाई कराई एवं यहां पर पूजा अर्चना शुरू कर दी। 31 अक्टूबर 1984 में कामाख्या मंदिर की स्थापना हुई।
जयपुर से अपहृत बच्चा मिलने पर आई थी प्रतिमाक्षेत्रीयजन बताते हैं जयपुर से एक बच्चे का अपहरण हुआ था। परिजन उसे खोजते हुए जसराना पहुंचे तो कुछ लोगों के कहने पर वह यहां मंदिर में पहुंचे। उस वक्त यहां प्रतिमा नहीं थी, बस स्वामीजी पूजा करते थे। स्वामीजी ने परिजनों से कहा बच्चा कल तक मिल जाएगा, आप बस जब तक प्रयास न करें। दूसरे दिन बच्चा थाने पहुंचा। उसने बताया कि उसे जसराना में एक खेत में हाथ पैर बांध कर रखा गया था, लेकिन रात में एक बालिका आई तथा उसके आते ही हाथ खुल गए तथा उसने ही निकलने की राह दिखाई। इसके बाद से यहां की मान्यता बढ़ गई तथा उस परिवार के द्वारा चढ़ाए गए चढ़ावे में भक्तजनों ने सहयोग राशि मिलाकर प्रतिमा की स्थापना कराई।
ऐसे पहुंचे मंदिर
एटा से फीरोजाबाद आने वाले भक्त शिकोहाबाद रोड पर जसराना में स्थित मंदिर में पहुंच सकते हैं। एटा से मंदिर की दूरी करीब 26 किमी है। मैनपुरी की तरफ से आने वाले भक्त मैनपुरी एटा रोड से होते हुए जसराना पहुंच सकते हैं।। मैनपुरी से दूरी करीब 38 किमी है। आगरा एवं अन्य जगह से आने वाले भक्तजन शिकोहाबाद होकर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। शिकोहाबाद में एटा चौराहा से जसराना की दूरी करीब 16 किमी बैठती है।
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