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हर मोर्चे पर खरा उतरा आगरा एयरफोर्स स्टेशन, जानिये क्‍या रहा है देश की रक्षा में योगदान

हर युद्ध में आगरा एयरबेस विमानों से भरी है उड़ान। आगरा एयरफोर्स स्टेशन में देश का इकलौता है पीटीएस। किसी भी ऊंचाई और विमान से लगा सकते हैं छलांग।

By Prateek GuptaEdited By: Updated: Wed, 27 Feb 2019 01:41 PM (IST)
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हर मोर्चे पर खरा उतरा आगरा एयरफोर्स स्टेशन, जानिये क्‍या रहा है देश की रक्षा में योगदान
 आगरा, अमित दीक्षित। द्वितीय विश्वयुद्ध हो या फिर भारत-पाक युद्ध। हर मुकाम पर आगरा एयरफोर्स स्टेशन का अहम रोल रहा है। यहां से विमानों ने उड़ान भरी है। यह ऐसा स्टेशन है जो बमवर्षक विमान कैनबरा का अड्डा रहा है। यह विमान अमेरिका में बने थे। इन विमानों का इस्तेमाल द्वितीय विश्वयुद्ध में किया गया था। विमानों का नामकरण 14वीं स्क्वाड्रन के सदस्य कैनबरा के नाम पर किया गया था। युद्ध के दौरान दुश्मन कैनबरा विमान को भी नुकसान नहीं पहुंचा सका। आगरा को मिले आधा दर्जन कैनबरा विमान कारगिल युद्ध तक रहे। इसके बाद ये बेड़े से हटा दिए गए।

वर्ष 1961-62 में कांगो (जायरे) में संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेनाओं में भी कैनबरा ने आगरा से ही भारतीय वायुसेना का प्रतिनिधित्व किया था। वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में इसने पाकिस्तानी सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। एयरफोर्स स्टेशन में एएन-32 सहित अन्य श्रेणी के विमान हैं। कारगिल युद्ध में आगरा एयरफोर्स स्टेशन ने विशेष भूमिका अदा की थी। जबकि अब आतंकी ठिकानों को तबाह करने में स्टेशन का अहम रोल रहा है। 

फैक्ट फाइल 

- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रॉयल एयरफोर्स स्टेशन आगरा का अहम रोल रहा है। 

- इस युद्ध के तुरंत बाद रॉयल इंडियन एयरफोर्स का गठन किया गया था। 

- आगरा से पाकिस्तान की सीमा नजदीक है। 

- 15 अगस्त 1947 को आगरा एयरफोर्स स्टेशन की स्थापना हुई थी। तब यहां विंग कमांडर शिवदेव सिंह को तैनात किया गया था। 12 स्क्वाड्रन से शुरुआत हुई थी। 

- जुलाई 1971 में आगरा वायु सेना मध्य कमांड में आ गया। 

- आगरा में एएन-12, एएन-32, आइएल-76, आइएल-78, सी-47 डकोटा, सी-119, एएन-12, कैनबारा विमान हैं। 

- स्टेशन परिसर में पैरा ट्रेनिंग स्कूल है। यह देश का इकलौता ट्रेनिंग स्कूल है। 

- यहां ट्रेनिंग लेने के लिए श्रीलंका, नेपाल सहित अन्य देशों से आते हैं। 

- मलपुरा ड्रॉपिंग जोन में हर साल करीब 46 हजार छलांग होती हैं।

सर्जिकल स्ट्राइक में शामिल कमांडोज ने पीटीएस में पढ़ा था जांबाजी का पाठ

मंगलवार को एयर स्ट्राइक में मिराज 2000 ने अपना दमखम दिखाया। वहीं सितंबर 2016 में जिन कमांडो ने सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था, वे आगरा स्थित पैराट्रूपर्स ट्रेनिंग स्कूल (पीटीएस) में ही जांबाजी का पाठ पढ़कर निकले थे।

म्यांमार में वर्ष 2015 में आतंकियों को मार गिराने में एयरफोर्स व 21 पैरा (स्पेशल फोर्स) का विशेष योगदान रहा है। स्पेशल कमांडोज ने एमआइ-17 हेलीकाप्टर से छलांग लगाई थी। सितंबर 2016 में पीओके पर सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी। कमांडोज ने विमान से छलांग लगाई थी।

कठिन है ट्रेनिंग

पैरा बिग्रेड में आने के बाद पैराशूट से जंप की ट्रेनिंग शुरू होती है। यह ट्रेनिंग मलपुरा ड्रॉपिंग जोन में दी जाती है। 12 दिवसीय ट्रेनिंग के तहत जवान को कुल पांच जंप लगानी होती हैं। शुरू में इन्हें तीन से पांच हजार फीट की ऊंचाई से कुदाया जाता है। पांच जंप में तीन सामान्य जंप, एक बीस किग्रा सामान के साथ और एक जंप रात में शामिल है। इन जंप को सही तरीके से करने पर पीटीएस द्वारा मैरुन कैप दी जाती है। फिर पैरा कमांडोज की ट्रेनिंग शुरू होती है। जो बेहद कठिन मानी जाती है। कमांडोज को एएन 32, हर श्रेणी के एमआइ हेलीकाप्टर, आइएल 76, हरक्युलिस विमान सहित अन्य से छलांग लगाने की प्रैक्टिस कराई जाती है।

ये है आइएल-76 की खूबियां

- एएन-12 विमानों का गढ़ रहा है आगरा।

- एएन-12 विमानों को आइएल-76 से रिप्लेस किया गया।

- आगरा में वर्ष 1985 में पहला आइएल-76 विमान आया था।

- आइएल-76 विमान, 44 स्क्वाड्रन में आता है।

- अब इस विमान का मुख्य अड्डा नागपुर हो गया है।

- स्क्वाड्रन का मोटो माइटी जेट्स है।

ये है आइएल-78 स्क्वाड्रन

- आइएल-78 विमान का 78 स्क्वाड्रन आगरा में है।

- इसका गठन मार्च 2003 में हुआ था।

- इसका निक नेम बैटल क्राई है।

- इसका मोटो एयरक्राफ्ट फ्लॉन है

- एक विमान में 118 टन फ्यूल आ सकता है।

- आइएल-78 किसी भी विमान को 500 से 600 लीटर प्रति मिनट के हिसाब से ईंधन दे सकता है।

- आइएल-78 विमान एक साथ तीन फाइटर प्लेन को ईंधन देने की क्षमता रखता है।

- मार्स यानी मिड एयर रिफ्यूलिंग स्क्वाड्रन भी गठित है।

जरूरत पड़ी तो उतरेंगे एक्सप्रेस वे पर विमान 

किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए एयरफोर्स ने तैयारी कर ली है। यूं तो एयरफोर्स स्टेशन में कई रनवे हैं, लेकिन अगर जरूरत पड़ती है तो यमुना और लखनऊ एक्सप्रेस वे पर भी विमान उतर सकते हैं। एयरफोर्स एक्सप्रेस वे के एक हिस्से को रनवे के रूप में प्रयोग कर चुकी है। एयरफोर्स के नक्शे में यमुना एक्सप्रेस वे, लखनऊ एक्सप्रेस वे को शामिल किया जा चुका है।  

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